- राज्य में 18 मान्यता प्राप्त दल, 3 अन्य और 91 तात्कालिक पंजीकरण के साथ चुनाव लड़ने वाले दल हैं।
- उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव में ज्यादातर सीटों पर चतुष्कोणीय मुकाबला होता है। ऐसे में 5000-10000 वोट बहुत मायने रखते हैं।
- सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और निषाद पार्टी का पूर्वांचल में अच्छा खासा वोट बैंक है।
नई दिल्ली। "टाइम्स नाउ नवभारत" के स्टिंग आपरेशन में साफ हो गया है कि किस तरह उत्तर प्रदेश में चुनाव नजदीक आते ही छोटे दल मोल-भाव में लग गए हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि यही वह समय है जब वह बड़े दलों और नेताओं को अपने साथ जोड़ने के लिए जरुरत से ज्यादा झुका सकते हैं। असल में उनको यह ताकत, उस वोट बैंक से मिलती है, जो किसी खास जाति और खास इलाके पर आधारित होता है। इन दलों की ताकत यही है कि वह अपने जाति के वोट को इकट्ठा कर सकते हैं। और जिस दल के साथ वह मिल जाते हैं, उस दल को उनका वोट मल्टीप्लायर के रुप में काम कर जाता है। इसलिए बड़ी पार्टियां भी उनको अपने साथ लेने के लिए लालायित रहती हैं।
भाजपा ने किया सफल प्रयोग
भारतीय जनता पार्टी ने 2017 के विधान सभा में ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल (एस) जैसे छोटे दलों के साथ गठबंधन का प्रयोग किया था। और उन्हें इसका फायदा भी मिला। भाजपा ने चुनावों में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को 8 और अपना दल को 11 सीटें दी थी। जबकि खुद वह 384 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। लेकिन परिणाम आए तो यह रणनीति काफी कारगर दिखी। भाजपा को जहां 312 सीटों पर जीत मिली , वहीं सुहेदेव भारतीय समाज पार्टी को 4 और अपना दल (एस) को 9 सीटें मिल गई। और 2022 के चुनावों में निषाद पार्टी के साथ भाजपा के गठबंधन की बातें चल रही हैं।
भाजपा की सफलता देखकर ही अब समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने बड़े दलों से गठबंधन नहीं करने का ऐलान कर दिया है। उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनावो में बसपा के साथ गठबंधन के बावजूद हार मिलने पर, अब छोटे दलों के साथ गठबंधन की बात कही थी। इसी के तहत इस समय उन्होंने राष्ट्रीय लोक दर, महान दल, अपना दल (के) के साथ गठबंधन कर रखा है।
यूपी में छोटे दलों का क्यों है महत्व
उत्तर प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के अनुसार राज्य में 18 मान्यता प्राप्त दल, 3 अमान्यता प्राप्त और 91 तात्कालिक पंजीकरण के साथ चुनाव लड़ने वाले दल हैं। इनमें से बड़ी पार्टियों के अलावा 10-12 छोटे दल ऐसे हैं। जो चुनावों में असर डालते हैं।
बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ शशिकांत पांडे कहते हैं " उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव में ज्यादातर सीटों पर चतुष्कोणीय मुकाबला होता है। और इन परिस्थितियों में 5000-10000 वोट बहुत मायने रखते हैं। छोटे दलों की यही ताकत है, क्योंकि उत्तर प्रदेश में अभी भी जाति आधारित चुनाव हकीकत है। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का ही उदाहरण लीजिए। ओम प्रकाश राजभर उसके मुखिया है। पूर्वांचल के करीब 10 जिलों में राजभर जाति का अच्छा खासा वोट है। उनका वोट बैंक काफी अडिग है। इस वजह से 2017 के विधान सभा चुनाव में जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें मंत्री भी बनाया।"
राजभर समुदाय के समर्थन से सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की गाजीपुर, मऊ, वाराणसी, बलिया, महाराजगंज, श्रावस्ती, अंबेडकर नगर , बहराइच और चंदौली में काफी मजबूत स्थिति में है। इसमें से भी करीब 45 सीटें ऐसी है, जिसमें राजभर समुदाय निर्णायक भूमिका निभाता है। कुल मिलाकर करीब 150 सीटों वाले पू्र्वांचल में 17-18 फीसदी राजभर मतदाता हैं। राजभर को अपनी ताकत को मजूबत करने के लिए भागीदारी संकल्प मोर्चे का गठन कर चुके हैं। जिसमें 8 छोटे दल शामिल हैं। इसमें असदुद्दीन ओवैसी का एआईएमआईएम भी शामिल है। राजभर अपनी वोट बैंक के दम पर 2022 के चुनावों के बाद 5 सीएम और 20 उप मुख्य मंत्री बनाने का दावा भी कर चुके हैं।
गोरखपुर के उप चुनाव में निषाद पार्टी को मिली थी जीत
राजभर समुदाय की तरह निषाद समुदाय का भी पूर्वांचल में अच्छा खासा वोट बैंक हैं। निषाद समुदाय के तहत निषाद, केवट, बिंद, मल्लाह, कश्यप, मांझी, गोंड आदि 22 उप जातियां आती हैं। निषाद पार्टी के मुखिया इस समय संजय निषाद हैं। और उन्होंने 2016 में बसपा का दामन छोड़ निषाद पार्टी बनाई थी। साल 2017 के विधान सभा चुनाव में निषाद पार्टी ने पीस पार्टी ऑफ इंडिया, अपना दल और जन अधिकार पार्टी जैसे दलों के साथ गठबंधन किया था। लेकिन पार्टी को केवल एक सीट पर जीत मिल पाई थी।
इसके बाद 2018 के लोक सभा उप चुनाव में गोरखपुर से प्रवीण निषाद चुनाव लड़े थे और उस चुनाव में समाजवादी पार्टी और बसपा ने उनका समर्थन किया था। और इसका परिणाम यह हुआ था कि भाजपा की प्रतिष्ठा वाली गोरखपुर सीट (योगी आदित्यनाथ वहां से सांसद थे और उनके मुख्य मंत्री बनने के बाद सीट खाली हुई थी) पर प्रवीण कुमार निषाद समाजवादी उम्मीदवार के रुप चुनाव जीत गए थे। हालांकि 2019 में प्रवीण कुमार निषाद भाजपा के टिकट पर संत कबीर नगर सीट से लड़े और चुने गए। निषाद समुदाय में 22 उपजातियां शामिल हैं, जो सामूहिक रूप से गंगा, यमुना और गंडक के किनारे वाले इलाकों में खासी राजनीतिक ताकत रखती हैं। ये मुख्य तौर पर पूर्वांचल के भदोही, जौनपुर, गोरखपुर, वाराणसी, बलिया, देवरिया से बस्ती तक 70 विधान सभा सीटों पर अपना असर रखती हैं। इसी ताकत के बल पर संजय निषाद कई बार 2022 में उप मुख्य मंत्री पद की मांग कर चुके हैं।