- चार धाम प्रोजेक्ट के तहत 889 किलोमीटर लंबी सड़कों का निर्माण किया जाना है।
- प्रोजेक्ट का करीब 70 फीसदी काम पूरा हो चुका है, 30 फीसदी बचा काम हिमालय के अति संवेदनशील क्षेत्र में होना है।
- पर्यावरणविदों ने सड़कों के चौड़ीकरण होने से हिमालय के कमजोर होने और भूस्खलन जैसी घटनाओं की आशंका जताई थी।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में चार धाम प्रोजेक्ट (ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट) को हरी झंडी दे दी है। इसके साथ ही डबल लेन हाइवे बनाने का रास्ता साफ हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि अदालत न्यायिक समीक्षा में सेना के सुरक्षा संसाधनों को तय नहीं कर सकती। कोर्ट ने यह भी कहा है कि राजमार्ग के लिए सड़क की चौड़ाई बढ़ाने में रक्षा मंत्रालय की कोई दुर्भावना नहीं है। साथ ही उसने यह भी हवाला दिया कि हाल के समय में सीमा पर सुरक्षा के लिहाज से गंभीर चुनौतियां सामने आई है। नरेंद्र मोदी सरकार की चार धाम परियोजना उसका ड्रीम प्रोजेक्ट है, जिसका शिलान्यास 2016 में किया गया था।
इन 3 सड़कों को मिली मंजूरी
चार धाम प्रोजेक्ट पर गठित उच्चाधिकार प्राप्त समिति के सदस्य और जिओलॉजिस्ट नवीन जुयाल ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कहा, देखिए जब सुरक्षा के मामले की बात आ गई तो उस पर सुप्रीम कोर्ट ने उसे ही सर्वोपरि रखा है। लेकिन अच्छी बात यह है कि कोर्ट ने केवल 3 सड़कों को ही 10 मीटर चौड़ी करने की मंजूरी दी है। जबकि बाकी सड़कों को 5.5 मीटर चौड़ा रखने का ही आदेश है। इससे साफ है कि सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा को देखते हुए ऐसा किया है। और जब सुरक्षा की बात आती है तो दूसरे मुद्दे गौड़ हो जाते हैं।
देखिए कल के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सड़कों का उल्लेख नहीं किया है। लेकिन सेना की जरूरतों को देखते हुए ऋषिकेश से लेकर माना, टनकपुर से लेकर पिथौरागढ़ और ऋषिकेश से गंगोत्री तक की सड़क को 10 मीटर चौड़ा किया जाएगा। जबकि ऋषिकेश से यमुनोत्री और ऋषिकेश से केदारनाथ की सड़क 5.5 मीटर रहेगी।
पर्यावरण हितों के लिए बनाई निगरानी समिति
जुयाल के अनुसार कल के फैसले में सुप्रीम कोर्ट पर्यावरण हितों को देखते हुए एक ओवरसाइट कमेटी भी बना दी है। जिसमें उसने कहा है कि उच्चाधिकार प्राप्त समिति की सिफारिशों का सड़क निर्माण पालन हो। यह एक अच्छा कदम है। जो कि एक पूर्व न्यायधीश की निगरानी में काम करेगी।
प्रोजेक्ट का 70 फीसदी काम पूरा
जुयाल के अनुसार प्रोजेक्ट का करीब 70 फीसदी काम पूरा हो चुका है। इसके तहत केवल गंगोत्री क्षेत्र में ही काम कम हुआ है। क्योंकि यह पर्यावरण के लिहाज से बेहद संवेदनशील क्षेत्र में आता है। जो 30 फीसदी काम बचा है, उच्च हिमालय क्षेत्र में आता है। जो बेहद संवेदनशील माना जाता है। इसके तहत समिति ने सिफारिश की थी एक तरफा अंधाधुंध कटाई (यूनिफॉर्म कटिंग) और चौड़ीकरण नहीं किया जाय। वहां पर स्थानीय परिस्थितियों को देखते हुए कदम उठाया जाय। अब मैं उम्मीद करता हूं कि समिति की सिफारिशों को ओवरसाइट कमेटी सख्ती से पालन कराए, जिससे भू-स्खलन और दूसरी परिस्थितियां खड़ी नहीं हो।
क्या है ऑलवेदर प्रोजेक्ट
बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री तक पहुंच आसान करने के लिए केंद्र सरकार ने इस प्रोजेक्ट का खाका तैयार किया था। जिसका शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 दिसंबर 2016 को किया था। सरकार इस प्रोजेक्ट के जरिए न केवल पर्यटन को बढ़ावा देना चाहती है बल्कि चीन की सीमा तक सेना की पहुंच भी आसान करना चाहती है। जिससे कि 12 महीनें आसानी से सेना का मूवमेंट आसान हो सके।
पूरी परियोजना 889 किलोमीटर लंबी है। जिस पर 11,700 करोड़ रुपये का खर्च आने की संभावना है। अब तक 560 किलोमीटर सड़क का निर्माण किया जा चुका है। मूल रूप से सरकार चारों धामों को जोड़ने के लिए 10 किलोमीटर चौड़ी सड़क बनाना चाहती थी। लेकिन 2019 में एनजीओ और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यनल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में रवि चोपड़ा की अध्यक्षता में 25 सदस्यीय हाई पावर कमेटी का गठन किया था। कमेटी की सिफारिशों के आधार पर सितंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने 5.5 मीटर सीमित रखने की बात कही थी। और अब नए फैसले में तीन सड़के 10 मीटर तक चौड़ी होंगी। बल्कि बची सड़कें 5.5 मीटर तक ही सीमित रहेंगी।