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Babri demolition verdict: फैसले से पहले जानें 1992 में अयोध्या में क्या हुआ था, BJP के नेता क्यों बने आरोपी

Babri demolition verdict: फैसले से पहले जानें 1992 में अयोध्या में क्या हुआ था
Updated Sep 30, 2020 | 08:15 IST

babari demolition case: इस केस में बुधवार को अहम फैसला आना है। इस मामले में कुल 32 आरोपी है जिसमें बीजेपी के कुछ कद्दावर नेता भी शामिल हैं, आज तक इस मामले में क्या हुआ एक नजर डालते हैं।

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Babri demolition verdict: फैसले से पहले जानें 1992 में अयोध्या में क्या हुआ थाBabri demolition verdict: फैसले से पहले जानें 1992 में अयोध्या में क्या हुआ था
6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा गिराया गया था
मुख्य बातें
  • 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा गिरा, बीजेपी और हिंदूवादी संगठनों के नेताओं पर आरोप लगे
  • कुल 32 नेताओं के खिलाफ केस दर्ज हुआ , 28 साल के बाद सुनाया जाएगा फैसला
  • विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद बीजेपी शासित यूपी, एमपी और राजस्थान की राज्य सरकारें की गई थीं बर्खास्त

नई दिल्ली। 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में भावनाओं का ज्वर उफान पर था। कारसेवक अयोध्या के चप्पे चप्पे पर नजर आ रहे थे। विवादित ढांचे से कुछ सौ मीटर दूर बीजेपी और हिंदू संगठनों के नेता राम मंदिर से आंदोलन से जुड़ी बातों का जिक्र कर रहे थे। लेकिन शायद ही किसी को पता रहा हो कि कुछ वैसा होने वाला है जिसे सोच पाना भी मुश्किल रहा होगा क्योंकि विवादित ढांचा अदालती कार्रवाई का सामना कर रहा था। लेकिन जो कुछ हुआ उसके बाद भारतीय राजनीति की तस्वीर बदल गई। भारतीय राजनीति में एक तरह से वर्टिकल डिविजन हो चुका था। 

6 दिसंबर को गिरा था विवादित ढांचा
विवादित ढांचे को गिराये जाने में बीजेपी के यहां विश्व हिंदू परिषद के नेताओं की कितनी भूमिका रही है इसे लेकर तरह तरह के विचार हैं, हालांकि बीजेपी नेताओं समेत 32 लोगों को बाबरी ढांचा विध्वंस में आरोपी बनाया गया जिसमें मुरली मनोहर जोशी, लालकृष्ण आडवाणी और उमा भारती का नाम शामिल है। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि तत्कालीन बीजेपी सरकार ने दिए गए हलफनामे की अवहेलना की और यूपी सरकार की लापरवाही की वजह से ढांचा गिरा दिया गया। यहां यह भी जानना जरूरी है कि ढांचा गिराए जाने के बाद बीजेपी शासित राज्यों को बर्खास्त भी कर दिया गया। 

1992 से अब तक क्या हुआ

  1. शीर्ष अदालत ने पहले फैसले की घोषणा सहित कार्यवाही पूरी करने की समय सीमा 31 अगस्त तय की थी। हालांकि, इसने मामले में विशेष न्यायाधीश एसके यादव द्वारा दायर रिपोर्ट पर ध्यान देने के बाद समयसीमा को 30 सितंबर तक बढ़ा दिया।
  2. सीबीआई की विशेष अदालत ने मामले में सीआरपीसी की धारा 313 के तहत 32 आरोपियों के बयानों की रिकॉर्डिंग पूरी कर ली है।
  3. जिन अन्य आरोपियों के खिलाफ 19 अप्रैल, 2017 को शीर्ष अदालत ने साजिश का आरोप लगाया था, उनमें राजस्थान के पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह, भाजपा सांसद साध्वी ऋतंभरा शामिल हैं। तीन अन्य हाई-प्रोफाइल आरोपियों - विश्व हिंदू परिषद के नेताओं गिरिराज किशोर, अशोक सिंघल और विष्णु हरि डालमिया की मौत मुकदमे के दौरान हुई और उनके खिलाफ कार्यवाही समाप्त कर दी गई।
  4. 6 दिसंबर 1992 को, कथित हिंदू कार्यकर्ताओं द्वारा 16 वीं शताब्दी की बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया था, जिन्होंने दावा किया था कि यह एक प्राचीन मंदिर के अवशेषों पर बनाया गया था जो भगवान राम के जन्मस्थान को चिह्नित करते थे।
  5. शीर्ष अदालत ने 19 अप्रैल, 2017 को विशेष सीबीआई अदालत को मामले में एक दिन का परीक्षण करने और इसे दो साल में समाप्त करने का निर्देश दिया था।
  6. विध्वंस को एक "अपराध" करार दिया, जिसने "संविधान के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने" को हिला दिया, 2017 में SC ने आडवाणी सहित हाई-प्रोफाइल आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ आपराधिक साजिश के आरोपों को बहाल करने की सीबीआई की याचिका स्वीकार कर ली। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 12 फरवरी, 2001 के षड्यंत्रकारी आरोपों को "गलत" करार देने के फैसले को रद्द कर दिया था।
  7. 2017 के फैसले से पहले, लखनऊ और रायबरेली में विध्वंस से जुड़े दो मामले थे। अनाम कारसेवकों से जुड़े पहले मामले की सुनवाई लखनऊ की एक अदालत में चल रही थी, जबकि दूसरे आठ हाई-प्रोफाइल आरोपियों से संबंधित रायबरेली की एक अदालत में सुनवाई की जा रही थी।
  8. अप्रैल 2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने रायबरेली मामले को लखनऊ की विशेष अदालत में स्थानांतरित कर दिया।

जानकारों  की राय अलग अलग
सवाल यह है कि 6 दिसंबर 1992 को जब विवादित ढांचा गिराया गया तो उस वक्त बीजेपी के नेताओं की भूमिका क्या था। इस पर जानकारों की राय बंटी हुई है। कुछ लोग कहते हैं कि बीजेपी और हिंदुवादी संगठनों के नेताओं के जोशीले भाषण से माहौल गरमा चुका था और विवादित ढांचा गिरने के अलावा और कोई दूसरा विकल्प नहीं था। लेकिन दूसरे लोगों का मानना है कि ऐसा कहना उचित नहीं होगा। बीजेपी के नेता राम मंदिर के संबंध में अपनी बात कह रहे थे लेकिन इसका अर्थ यह नहीं था कि वो कारसेवकों को उकसा रहे थे। 

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