- प्रदर्शनकारी नागरिक संशोधन बिल को असम समझौते के खिलाफ बता रहे हैं।
- 'कैब से एनआरसी का मतलब नहीं रह जाएगा, शरणार्थियों की संख्या में होगी बढ़ोतरी'
- असम के लिए क्लॉज 6 के फायदे से मूल लोग हो जाएंगे वंचित
नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन बिल संसद के दोनों सदनों से पारित हो चुका है और अब कानून बनने के लिए राष्ट्रपति की दस्तखत का इंतजार कर रहा है। लेकिन इस बिल की वजह से तीन बड़ी घटनाएं नजर आ रही हैं। बिल के पारित होने के बाद उन लोगों मे मिठाइयां बांटी जिन्हें दशकों तक इस बात का इंतजार था कि उन्हें पहचान मिलेगी। लेकिन इसके साथ असम एक तरह से जल रहा है, आम जनजीवन प्रभावित है। इन सबके बीच सुप्रीम कोर्ट में इस बिल के खिलाफ पहली याचिका आईयूएमएल ने दायर की है।
पीएम नरेंद्र मोदी ने खासतौर से असम के लोगों को संबोधित करते हुए ट्वीट किया। उन्होंने कहा कि लोगों के राजनीतिक, भाषाई, सांस्कृतिक सुरक्षा के लिए सरकार और वो खुद प्रतिबद्ध हैं, किसी को डरने की जरूरत नहीं है। लेकिन हालात बेकाबू हैं, केंद्रीय मंत्री के रिश्तेदार की दुकान फूंक दी गई।
सवाल ये है कि असम में कैब का इस हद तक विरोध क्यों हो रहा है, प्रदर्शनकारियों का कहना है कि असम समझौते का उल्लंघन किया गया है, उनकी पहचान को खत्म करने की साजिश की गई है ऐसे में असम समझौते के बारे में जानना जरूरी है।
ये थी असम समझौते की पृष्ठभूमि
असम में मंगलदोई सीट के लिए 1979 में उपचुनाव हो रहा था। उस समय यह पाया गया कि मतदाताओं की संख्या में अभूतपूर्व इजाफा हुआ है, जब इसकी जांच की गई तो बांग्लादेश से आए अवैध शरणार्थियों की वजह से वोटर्स की संख्या बढ़ गई और यहीं से राज्य में धरना प्रदर्शन शुरू हुआ जो कभी कभी हिंसक रूप ले लेता था। करीब 6 साल के प्रदर्शन में करीब 900 लोग मारे गए। असम की समस्या से निजात पाने के लिए तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने 1985 में समझौता किया जिसे असम समझौता के नाम से जाना जाता है।
इस समझौते में यह तय हुआ कि 25 मार्च 1971 के बाद बांग्लादेश से आए लोगों की पहचान की जाएगी और उन्हें असम से बाहर निकाला जाएगा। दूसरे राज्यों के लिए यह सीमा 1951 तय की गई। इस समझौते में ही एनआरसी की व्यवस्था की गई थी ये बात अलग था कि इसे करीब तीस वर्षों तक अमल में नहीं लाया गया और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद एनआरसी की प्रक्रिया शुरू हुई।
क्या असम समझौता और कैब एक दूसरे के खिलाफ
अब सवाल ये है कि जब असम समझौते के तहत ही एनआरसी पर काम हुआ तो असम के लोगों को कैब से विरोध क्यों है। दरअसल कैब में बांग्लादेश से आने वाले हिंदू शरणार्थियों के लिए समय सीमा 31 दिसंबर 2014 मुकर्रर की गई है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि कैब के जरिए उन शरणार्थियों को वैधानिक नागरिकता प्रदान की जा रही है जो एनआरसी की मूल भावना के खिलाफ है।
कहीं सिर्फ राजनीति तो नहीं
इसके साथ ही प्रदर्शनकारियों का कहना है कि नागरिकता संशोधन बिल और असम के लिए बना क्लॉज 6 एक दूसरे के खिलाफ हैं। असम में जब बाहर से आए शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान की जाएगी तो उसकी वजह से असम के मूल लोगों के अधिकार प्रभावित होंगे। जानकारों का कहना है कि दरअसल प्रदर्शन के पीछे राजनीतिक वजह भी है,असम में विरोधी दलों को लगता है कि उनका वोटबैंक खिसक सकता है,इसलिए भ्रम भी फैलाया जा रहा है। मसलन इनर परमिट लाइन वाले इलाकों को कैब के दायरे से बाहर रखा गया है, लेकिन इस तरह की खबरें फैलाई जा रही हैं है कि आदिवासी समाज के अधिकारों का हनन बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थी करेंगे।