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भारत के ऐतराज के बाद करतारपुर पर पाकिस्तान की सफाई, ETPB का ही हिस्सा है पीएसजीपीसी

MEA says Kartarpur gurdwara decision only exposes reality of Pakistani government
Updated Nov 05, 2020 | 22:22 IST

विदेश मंत्रालय के ऐतराज के बाद पाकिस्तान ने सफाई दी है कि पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी भी ईटीपीबी का हिस्सा है।

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तस्वीर साभार:&nbspPTI
करतारपुर पर उजागर हुई पाक की असलियत, फैसला वापस ले इमरान सरकार: MEA
मुख्य बातें
  • पाकिस्तान ने करतारपुर गुरुद्वारे का प्रबंधन एक गैर-सिख संस्था को सौंपा
  • इस संस्था में एक भी सदस्य सिख समुदाय से नहीं है, भारत ने किया विरोध
  • अकाली दल के नेताओं एवं सिख संगठनों ने पाक के इस फैसले की आलोचना की

नई दिल्ली : करतार साहिब गुरुद्वारे का प्रबंधन एक गैर-सिख बॉडी को सौंपे जाने के पाकिस्तान सरकार के फैसले की भारत ने निंदा की है। इसे 'अत्यंत निंदनीय' फैसला बताते हुए भारत ने कहा है कि यह सिख समुदाय की धार्मिक भावनाओं के खिलाफ है और यह फैसला पाकिस्तान सरकार एवं उसके नेतृत्व का पर्दाफाश करता है। लेकिन अब इस विषय पर पाकिस्तान की तरफ से सफाई आई है। 

भारत के ऐतराज के बाद पाकिस्तान की सफाई
पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (PSGPC) से करतारपुर साहिब गुरुद्वारा के प्रबंधन को एक अलग ट्रस्ट में स्थानांतरित करने के पाकिस्तान के फैसले पर भारत के सख्त विरोध के बीच, एक शीर्ष पाकिस्तानी अधिकारी ने गुरुवार को कहा कि सिख निकाय इसका हिस्सा होंगे। '' सिख संस्था पूरी तरह से शामिल है क्योंकि यह ईटीपीबी का हिस्सा है ''

ईटीपीबी (निकासी ट्रस्ट बोर्ड) के प्रवक्ता आमिर हाशमी ने गुरुवार को कहा कि पीएसजीपीसी इसका हिस्सा होगा। "इस हफ्ते की शुरुआत में संघीय सरकार ने करतारपुर कॉरिडोर का प्रशासनिक नियंत्रण ईटीपीबी को सौंप दिया था। इससे पहले, बोर्ड केवल गुरुद्वारा दरबार साहिब के मामलों की देखभाल कर रहा था।ETPB पाकिस्तान के सभी सिख श्राइनों का संरक्षक है और PSGPC सिख रिवाज मर्यादा के अनुसार गुरुद्वारा दरबार साहिब सहित गुरुद्वारा साहिबों में अनुष्ठान करने के लिए एक आधिकारिक निकाय है।

विदेश मंत्रालय ने जारी किया बयान
विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को जारी अपने बयान में कहा, 'हमने मीडिया रिपोर्टों में देखा है कि पाकिस्तान पवित्र गुरुद्वारा करतारपुर साहिब का प्रबंधन एवं रखरखाव पाकिस्तान गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के हाथों से लेकर एक गैर-सिख संस्था इवैक्यी ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड को सौंप रही है। पाकिस्तान का यह एकतरफा फैसला अत्यंत निंदनीय है। यह फैसला करतारपुर साहिब कॉरिडोर एवं सिख समुदाय की धार्मिक भावना के खिलाफ है।'

'पाक सरकार की असलियत उजागर'
मंत्रालय ने कहा है कि सिख समुदाय के प्रतिनिधियों ने करतारपुर साहिब का प्रबंधन एक गैर- सिख संस्था को सौंपे जाने पर गंभीर चिंता जताई है। पाकिस्तान अपने इस फैसले से अल्पसंख्यक सिख समुदाय के 'अधिकारों का उल्लंघन' कर रहा है। बयान के मुताबिक विदेश मंत्रालय ने कहा, 'इस तरह की कार्रवाई केवल पाकिस्तानी सरकार और उसके नेतृत्व की धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों और कल्याण को संरक्षित करने के लंबे दावों का पर्दाफाश करती है।'

एमईए ने फैसला वापस लेने की मांग की
विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान सरकार से अपने इस फैसले को वापस लेने की मांग की है। बता दें कि भारत और पाकिस्तान दोनों ने गत नवंबर में एक कॉरिडोर का उद्घाटन किया। यह कॉरिडोर भारत के गुरदासपुर स्थित डेरा बाबा साहिब को पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा करतार साहिब से जोड़ता है। करतारपुर साहिब गुरुद्वारा पाकिस्तान में नोरावाल जिले में रावी नदी के तट पर स्थित है। यह पवित्र स्थान डेरा बाबा नानक गुरुद्वारे से चार किलोमीटर दूर है। इस स्थान पर सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव ने अपनी अंतिम सांस ली। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम 18 वर्ष यहीं गुजारे। 

अकाली दल ने फैसले की निंदा की
पाकिस्तान सरकार के इस फैसले की आलोचना एवं निंदा भारत में सिख संगठनों एवं राजनीतिक दलों ने की है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने इस फैसले पर अपना विरोध जताते हुए पाक उच्चायुक्त को पत्र लिखा है। वहीं, दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने विदेश मंत्री एस जयशंकर को पत्र लिखकर इस मामले को पाकिस्तान सरकार के समक्ष तुरंत उठाए जाने की मांग की है।

संस्था में सिख समुदाय का एक भी सदस्य नहीं
अकाली दल के नेता दलजीत सिंह चीमा ने टाइम्स नाउ से कहा कि यह सिख समुदाय के लिए अपमान की बात है क्योंकि पाकिस्तान सरकार ने जो नई कमेटी बनाई है उसमें सिख समुदाय का एक भी सदस्य नहीं है। अकाली नेता के नेता ने पाकिस्तान सरकार से अपने इस फैसले को वापस लेने की मांग की है। वहीं, अकाली दल के नेता मजिंदर सिंह सिरसा ने भी पाकिस्तान सरकार के इस फैसले की निंदा की है। सिरसा ने कहा कि गुरुद्वारे का प्रबंधन ऐसे लोगों को सौंपा गया है जिन्हें सिख परंपरा एवं मर्यादा की कोई जानकारी नहीं है।

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