- यूनाइटेड लिब्ररेशन फ्रंट, द रेजिस्टेंट फ्रंट (टीआरएफ) जैसे नए संगठन कश्मीर में आतंकी घटनाओं की जिम्मेदारी ले रहे हैं।
- आतंकी कश्मीर में रहने वाले करीब 10 हजार हिंदू और कश्मीरी पंडितों में खौफ फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।
- सुरक्षा बलों को चकमा देने के लिए कश्मीर में हाइब्रिड आतंकी का इस्तेमाल आतंकवादी संगठन कर रहे हैं।
नई दिल्ली: अक्टूबर में कश्मीर में हालात बिगड़ने वाले हैं, इस बात को जब टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के प्रेसिडेंट संजय टिक्कू ने 6 अक्टूबर को बयां कर रहे थे, तो उनकी बातों में बिगड़ते हालात का खौफ साफ तौर पर झलक रहा था। उन्होंने कहा था कि दवा कारोबारी माखनलाल बिंद्रू और 2 हिंदुओं की हत्या, कश्मीर में रहने वाले करीब 10 हजार हिंदू और कश्मीरी पंडितों में खौफ फैलाने की कोशिश है और ऐसे ही हालात 1990 के दशक में बने थे, जब कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से पलायन करना पड़ा था।
टिक्कू का अंदेशा अब सही होता दिख रहा है, पिछले दो हफ्ते में 9 नागरिकों की आतंकवादियों ने हत्या कर दी है। रविवार रात जम्मू और कश्मीर के कुलगाम जिले के वानपोह इलाके में हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ने ली है। सोशल मीडिया पर जारी बयान में उसने कहा है कि यह हमला हिंदुत्ववादी ताकतों की ओर से मुस्लिमों को लिंच किए जाने के जवाब में है। यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ने कहा कि बीते एक साल में बिहार में 200 मुस्लिमों को लिंच करके मारा गया है। आंतकी संगठन ने इस बात की धमकी भी दी है कि जम्मू-कश्मीर से बाहर के लोग लौट जाएं । रविवार को आतंकवादियों ने 2 प्रवासियों की हत्या कर दी थी।
अक्टूबर में बड़े हमले
5 अक्टूबर : श्रीनगर के इकबाल पार्क क्षेत्र में फार्मासिस्ट माखनलाल बिंद्रू को आतंकियों ने उनके मेडिकल स्टोर में घुसकर गोली मार दी थी। बिंद्रू पर हमले के बाद अवंतीपोरा में आतंकियों ने बिहार के वीरेंद्र पासवान की हत्या कर दी थी। इसके थोड़ी देर बाद बांदीपोरा के मोहम्मद शफी लोन की गोली मारकर हत्या कर दी गई।
7 अक्तूबर : श्रीनगर के ईदगाह इलाके में एक स्कूल में घुसकर दो शिक्षकों को मार डाला। इनमें प्रिंसिपल सुपिंदर कौर और शिक्षक दीपक चांद को आतंकियों ने निशाना बनाया। सुपिंदर सिख समुदाय से और दीपक चांद कश्मीरी पंडित थे। आतंकियों ने दोनों के आईडी कार्ड चेक करने के बाद उन्हें गोली मारी थी।
16 अक्तूबर : श्रीनगर के ईदगाह इलाके में बिहार के रहने वाले अरविंद कुमार साह की हत्या कर दी। दूसरी घटना पुलवामा में हुई। जहां यूपी के निवासी कारपेंटर सगीर अहमद की हत्या कर दी।
17 अक्टूबर: कुलगाम जिले के वानपोह इलाके में हुई । जहां राजा ऋृषि, जोगिंदर ऋृषि की हत्या कर दी थी। जबकि एक शख्स चुनचुन ऋृषि घायल हैं। ये तीनों लोग बिहार के हैं।
बाहरी और गैर मुस्लिम जनता निशाने पर
पिछले दो हफ्ते में आतंकियों के हमले का पैटर्न देखा जाय तो इसमें जम्मू और कश्मीर में काम करने के लिए आए गरीब तबके और गैर मुस्लिम लोग निशाने पर हैं। बिंद्रू की हत्या होने पर, टिक्कू ने कहा था ' 2003 में कश्मीर के शोपिया जिले (उस वक्त पुलवामा जिला) नंदीमार्ग गांव में आतंकवादियों ने 24 कश्मीरी पंडितों की हत्या कर दी थी। उसके बाद से बिंद्रू साहब की हत्या से पहले ऐसी कोई घटना नहीं घटी थी। यह बहुत बड़ा संदेश है। साल 2018 के बाद से अब तक जो परिस्थितियां बदली है, उसके आधार पर हमें इस हमले को देखना चाहिए।'
हाइब्रिड आतंकवादियों का इस्तेमाल
कश्मीर में धारा 370 को खत्म करने के बाद, आतंकवादियों के खिलाफ जिस तरह से आपरेशन चलाया है, उसके बाद से बड़े पैमाने पर आतंकियों को मारा गया है। अकेले इस साल जनवरी से जुलाई के दौरान करीब 90 आतंकवादी मारे गए हैं। ऐसे में अब आतंकवादियों ने नए तरीके अपनाने शुरू किए हैं। इसी के तहत, वह ऐसे लोगों को आतंकी घटनाओं के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, जो आम तौर पर स्थानीय युवा हैं। वह पिस्टल से हमलाकर, गायब हो जा रहे हैं। और सामान्य जीवन जीने लग रहे हैं। ऐसे लोगों आसानी से लोगों के बीच घुल-मिल जाते है। ऐसे में उनकी पहचान मुश्किल है। इस तरीके को हाइब्रिक आतंकी कहा जा रहा है।
नए संगठनों के नाम से हुए सक्रिय
कश्मीर में अब जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों के नाम आतंकी हमलों में नाम नहीं आ रहे हैं। बल्कि यूनाइटेड लिब्ररेशन फ्रंट, द रेजिस्टेंट फ्रंट (टीआरएफ) जैसे संगठन सामने आ गए हैं। जो कि आतंकी हमलों की जिम्मेदारी ले रहे हैं। साफ है कि आतंकी संगठन हर वह हथकंडे अपना रहे हैं, जिसके जरिए सुरक्षा बलों को चकमा दे सकें।
कश्मीर में 10 हजार हिंदू और कश्मीरी पंडित
इस समय कश्मीर घाटी में पुश्तैनी 800 हिंदू और कश्मीरी पंडितों के परिवार हैं। इसके अलावा बाहर से आकर यहां काम करने वाले 3565 हिंदू हैं। यूपीए सरकार के समय 2009 में दिए गए पैकेज के जरिए 4000 लोग घाटी में आए थे। कुल मिलाकर करीब 10 हजार हिंदू और कश्मीरी पंडित हैं। 15 मार्च 1989 से लेकर अब तक 735 से ज्यादा कश्मीरी पंडितों की हत्या हो चुकी है।