- मोदी सरकार के खाते में बीते एक बरस के दौरान कई उपलब्धियां आईं
- नागरिकता संशोधन कानून और कोरोना संकट पर सरकार के लिए चुनौतियां
- कोरोना की वजह से अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना सबसे अहम चुनौती
नई दिल्ली: मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का एक साल पूरा हो गया है। 2019 में जब लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए तो हर कोई हैरान था। दरअसल बीजेपी ने इस चुनाव में 2014 के रिकॉर्ड को भी ध्वस्त कर दिया था और अपने बूते पर 300 का आकंड़ा पार कर लिया। बीते एक साल के अंदर सरकार ने कई उपलब्धियां हासिल कीं, चाहे वो जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाना हो या फिर नागरिकता संशोधन कानून। सरकार ने एक आक्रामक रूख के साथ आगे बढ़ना जारी रखा। कई उपलब्धियों के अलावा सरकार के लिए विभिन्न मोर्चों पर चुनौतियां भी पेश आईं और जिससे सरकार को काफी हद तक जूझना पड़ा है।
कोरोना संकट
पूरी दुनिया के लिए चुनौती बना कोरोना संकट भी भारत सरकार के लिए भी सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है। सरकार ने इस संकट को फैलने से रोकने के लिए अर्थव्यवस्था की परवाह किए बगैर सबसे पहले देशव्यापी लॉकडाउन लगा दिया। तब देश में कोरोना मरीजों की संख्या 6 हजार से भी कम थी लेकिन धीरे-धीरे यह संक्रमण इस कदर फैला कि आज हालात गंभीर हो गए हैं और कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या डेढ़ लाख को पार कर गई है। मौतों का आंकड़ा भी दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है।
इस संकट में लॉकडाउन के दौरान सरकार की सबसे बड़ी फजीहत जब हुई जब लाखों श्रमिक सड़कों पर पैदल चलते हुए सैंकड़ों किलोमीटर की दूरी तय करते हुए नजर आए। एक राज्य से दूसरे राज्य में पैदल चलते श्रमिकों के लिए बाद में सरकार ने रेल और बसों का इंतजाम किया लेकिन तब तक काफी देरी हो चुकी थी। जिस तरह से कोरोना संकट भड़ा है उसकी मार अर्थव्यव्स्था के हर सेक्टर को पड़ी है और आने वाले दिन सरकार के लिए चुनौती से भरे होने वाले हैं।
आर्थिक चुनौती
कोरोना संकट के बीच सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक मोर्चे पर आ रही है। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी आधिकारिक तौर पर कह दिया है कि भारत की जीडीपी की दर नकारात्मक में जा सकती है। उद्योग धंधे ठप्प हैं और राजकोषीय घाटा बढ़ता जा रहा है। सरकार ने अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का भी ऐलान किया लेकिन जिस तरह से हालात नजर आ रहे हैं ये भी नाकाफी दिख रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि अगला एक साल मोदी सरकार के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण रहने वाला है और इससे सरकार किस तरह निपटती है यह देखना होगा।
नागरिकता संशोधन कानून
दिसंबर 2019 में जब मोदी सरकार नागरिकता संशोधन कानून लेकर आई तो तब शायद उसने भी नहीं सोचा होगा कि इतने बड़े स्तर पर इस कानून का विरोध होगा। दिल्ली से लेकर पूरे देश में इसे लेकर हिंसक प्रदर्शन हुए और कई लोगों की जान भी गई। दिल्ली के जामिया और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में जो प्रदर्शन हुए उसे लेकर सरकार की खूब आलोचना हुई। शाहीन बाग में तो एक अलग ही तरह का प्रदर्शन हुआ और महिला प्रदर्शनकारियों ने नोएडा से दिल्ली जाने वाली सड़क पर ऐसा डेरा डाला कि यह मार्ग ही बंद हो गया। मार्च में जब कोरोना का खतरा बढ़ा तो तब जाकर सड़क खाली हुई। नागरिकता कानून मोदी सरकार के लिए ऐसी चुनौती बनकर उभरा जिसकी सरकार ने भी कल्पना नहीं की थी। लेकिन इन सबके बावजूद भी सरकार अपने रूख से टस से मस नहीं हुई।
दिल्ली हिंसा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जब भारत आए थे तो उनका अहमदाबाद में भव्य स्वागत हुआ लेकिन इसी दौरान 24 फरवरी को उत्तर पूर्वी दिल्ली के कुछ इलाकों में नागरिकता कानून को लेकर हिंसा का जो दौर शुरू हुआ वो बेहद खौफनाक मंजर था। इस हिंसक प्रदर्शन की शुरूआत जाफराबाद में मेट्रो स्टेशन के नीचे बीच सड़क पर बैठी महिलाओं के विरोध प्रदर्शन से शुरू हुई। देखते ही देखते इसकी आंच चांदबांग तक पहुंच गई जहां प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर ही हमला कर दिया। इसके बाद जो हिंसा का दौर चला उसमें 45 से अधिक लोगों की जान चले गई जिसमें दिल्ली पुलिस के जवान रतन लाल, आईबी ऑफिसर अंकित कुमार भी मारे गए। हालात पर काबू पाने के लिए खुद एनएए अजीत डोभाल को पूर्वी दिल्ली की सड़कों पर उतरना पड़ा।