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Nandigram: सियासी संग्राम में नंदीग्राम, इस दफा ममता को प्रयोग पड़ न जाए भारी

Updated Jan 19, 2021 | 09:44 IST

पश्चिम बंगाल की सियासत में नंदीग्राम एक बार फिर चर्चा में हैं। दरअसल सीएम ममता बनर्जी ने भवानीपुर के साथ यहां से भी किस्मत आजमाने का फैसला किया है। नंदीग्राम एकाएक फिर चर्चा में क्यों आया, विस्तार से बताएंगे।

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नंदीग्राम से भी चुनाव लड़ने का ममता बनर्जी ने ऐलान किया है।
मुख्य बातें
  • ममता बनर्जी ने नंदीग्राम से भी चुनाव लड़ने का किया है ऐलान
  • ममता के सहयोगी रहे शुभेंदु अधिकारी का माना जाता है गढ़
  • नंदीग्राम आंदोलन के जरिए ही ममता बनर्जी ने लेफ्ट का किला गिराया था

कोलकाता। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है। लेकिन सियासी पारा चढ़ता जा रहा है। बीजेपी और टीएमसी एक दूसरे के ऊपर तीखे हमले कर रहे हैं तो टीएमसी को अपने बागियों के हमले का भी जवाब देना पड़ रहा है। दरअसल ममता के कई विशवस्त सहयोगी अब उनके साथ नहीं हैं। अगर बात शुभेंदु अधिकारी की करें तो उनका पार्टी छोड़कर जाना एक बड़ा घटना इसलिए है क्योंकि वो नंदीग्राम इलाके के प्रभावशाली नेता हैं। नंदीग्राम का जिक्र जब आता है तो 2012 के पहले का ममता बनर्जी का वो संघर्ष भी याद आता है जब उन्होंने बंगाल की वाम मोर्चे की सरकार को घुटने के बल ला दिया और उसका असर यह हुआ कि टाटा को सिंगुर परियोजना से तौबा करना पड़ा। बात सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं रही बल्कि रायटर्स बिल्डिंग पर जो लाल झंडा फहरा करता था वो इतिहास बन गया। इन सबके बीच एक बार फिर नंदीग्राम चर्चा में है। ऐसे में सबसे पहले नंदीग्राम को समझना जरूरी है। 

एक बार फिर क्यों चर्चा में है नंदीग्राम
पूर्वी मिदनापुर जिले के हल्दिया सबजिविजन में नंदीग्राम आता है। दरअसल इस पूरे इलाके में करीब 40 विधानसभा की सीटें हैं। 2012 से पहले यह एक सामान्य कस्बे की ही तरह था। लेकिन जब सिंगुर में टाटा ने अपने लखटकिया कार को स्थापित करने के बारे में सोचा तो उसे ममता बनर्जी ने मुद्दा बनाया और नंदीग्राम भारत की मानचित्र पर चमक उठा। नंदीग्राम से जिस अंदाज में वाम दलों के खिलाफ ममता ने संघर्ष को हवा दी उसका फायदा भी उन्हें मिला और लेफ्ट का 35 साल का किला ढह गया।


यह बात सच है कि पूरी मुहिम में ममता बनर्जी चेहरा बनकर उभरीं। लेकिन एक और शख्स थे जो पूरे आंदोलन में सहायक की भूमिका में रहे और उनका नाम था शुभेंदु अधिकारी।  शुभेंदु अधिकारी ने जिस तरह से मुहिम को आगे बढ़ाया उसका नतीजा भी सामने आया। नबन्ना भवन पर टीएमसी का कब्जा हो गया। लेकिन इस दफा तस्वीर बदली है। शुभेंदु अधिकारी जो ममता के लेफ्टिनेंट हुआ करते थे पाला बदल लिया है। बताया जा रहा है कि जिस तरह से ममता के सहयोगियों के जरिए बीजेपी आक्रामक अंदाज में हमला कर रही है उसके बाद दीदी के असहज हालात का सामना करना पड़ रहा है। 

आक्रामक अंदाज में बीजेपी का मिशन बंगाल
अगर बात बीजेपी की करें तो दिग्गज नेता पिछले 2 महीनों में कोलकाता का दौरा कर चुके हैं। पिछले महीने जे पी नड्डा के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने दौरा किया था और अभी कुछ दिन पहले जे पी नड्डा ने एक मुट्ठी चावल के जरिए बंगाल के 44 हजार गांवों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। इसके साथ ही 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर पीएम मोदी खुद जाने वाले हैं तो जनवरी के अंत में गृहमंत्री अमित शाह बंगाल का दौरा करेंगे। इन सबके बीच ममता बनर्जी के नंदीग्राम से चुनाव लड़ने के ऐलान को जानकार किस तरह देखते हैं उसे भी समझना जरूरी है। 

क्या है जानकारों की राय
ममता बनर्जी के नंदीग्राम से चुनाव लड़ने के ऐलान को जानकार दो नजरिए से देखते हैं। पहला यह है कि वो खुद अपने कैडर को संदेश दे रही हैं कि भले ही शुभेंदु अधिकारी अब पार्टी में नहीं हो उससे किसी तरह का फर्क नहीं पड़ेगा। अगर सियासी हल्के में यह चर्चा रहती भी हो कि टीएमसी की कामयाबी के पीछे शुभेंदु अधिकारी थे तो वो उसे गलत साबित कर देंगी। इसके साथ दूसरा तर्क यह है कि ममता बनर्जी इस दांव के जरिए शुभेंदु अधिकारी के साथ साथ बीजेपी को घेर रही हैं कि उनके लिए व्यावहारिक तौर पर दिक्कत आए। इन सबके बीच चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा देखने वाली बात होगी। लेकिन बंगाल का चुनाव दिलचस्प रहने वाला है। 

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