- भारत और नेपाल के बीच भौगौलिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक संबंध बहुत गहरे हैं
- नेपाल के नए विवादित नक्शे की वजह से दोनों देशों के रिश्तों में आई है कड़वाहट
- भारत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि मौजूदा हालात के लिए नेपाल जिम्मेदार है
श्वेता सिंह/नई दिल्ली: चीन की शह पाकर आज जिस तरह से नेपाल ने अपना रंग दिखाया है, उससे ये साबित होता है कि नेपाल की दशा एक नर्तिकी और चीन की ढोलकी की है। चीन अपनी धुन बजा रहा है और बेचारा नेपाल उसी पर लाखे नृत्य कर रहा है।
कहां से शुरू हुआ नक्शा विवाद?
मई महीने में जब भारत ने उत्तराखंड के लिपुलेख से कैलाश मानसरोवर के लिए सड़क का उद्घाटन किया, तो इससे पहले चीन बौखलाया और उसने नेपाल के कंधे का सहारा लेकर बंदूक चलाई। पर्दे पर तो नेपाल था लेकिन पर्दे के पीछे चीन अहम भूमिका निभा रहा था। जो किसी ने कभी नहीं सोचा था हुआ वही। दोस्त के रूप में नेपाल ने दुश्मनी का पहला रूप दिखाते हुए इसे लेकर घोर आपत्ति जताई। पहली बार नेपाल ने भारत के कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को सम्मिलित करते हुए संशोधित नक्शा जारी किया।
दोस्त ही नहीं रिश्तेदार भी है नेपाल
नेपाल और भारत का सिर्फ दोस्ती का ही रिश्ता नहीं है, बल्कि रिश्तेदारी भी है। ज्योतिरादित्य सिंधिया की मां माधवी सिंधिया का मायका नेपाल में हैं। उनके दादाजी वहां के प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं।
बॉलीवुड से नेपाल का रहा है गहरा नाता
सिर्फ राजनितिक घराने ही नहीं, बल्कि नेपाल के कई लोगों को बॉलीवुड ने स्टार बनाया और उन्हें प्रसिद्धि दिलाई। बॉलीवुड की जानी-मानी अभिनेत्री मनीषा कोइराला नेपाल से हैं, ये तो सब जानते हैं, लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे कि बॉलीवुड के बेहतरीन गायक उदित नारायण का नेपाल से गहरा नाता है। उदित नारायण के पिता नेपाली थे। उदित नारायण ने अपनी बारहवीं की पढ़ाई भी काठमांडू से की। इसके अलावा अदाकारा माला सिन्हा भी नेपाली मूल की हैं। उन्होंने एक नेपाली एक्टर से विवाह भी किया। माला सिन्हा का परिवार नेपाल से आकर पश्चिम बंगाल में बस गया। माला सिन्हा ने कई नेपाली फिल्मों में भी अभिनय किया।
मधेशियों के विरोध से बढ़ा दोनों देशों में तनाव
भारत और नेपाल दोनों देशों के मधुर संबंध 2015 में बिगड़ने शुरू हुए। साल 2015 में जब मधेशियों को नेपाल के नए संविधान के अनुसार आबादी के हिसाब से प्रतिनिधित्व कम मिला। उससे मधेशी समुदाय में आक्रोश पैदा हुआ और इससे नाराज होकर उसने भारत-नेपाल सीमा पर नाकेबंदी कर दी। इससे भारत से नेपाल जाने वाले सामान की आवाजाही बंद हो गई। नेपाल ने भारत पर आरोप लगाया कि यह आंदोलन भारत समर्थित था।
तो क्या जा सकती है ओली की कुर्सी!
नेपाल की सत्तारूढ़ पार्टी में पिछले कुछ वक्त से जमकर विवाद चल रहा है। नक्शा जारी करने के बाद से पार्टी दो गुटों में बंट गई है। पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड के नेतृत्व में पार्टी की स्थायी समिति के कई सदस्यों द्वारा प्रधानमंत्री ओली से इस्तीफा मांगा गया। इसलिए कहते हैं कि जिनके घर शीशे के हों, वो दूसरों पर पत्थर नहीं मारते। हम तो यही कहेंगे नेपाल से, जितना नाचना है नाचो, लाखे करो, भैरब करो और तो और मारुनी भी करो, लेकिन अपनी धुन पर... वरना।
डिस्क्लेमर: लेखिका मिरर नाउ में सीनियर असिस्टेंट प्रोड्यूसर हैं। इस लेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं और टाइम्स नेटवर्क इन विचारों से इत्तेफाक नहीं रखता है।