- चिदंबरम ने कहा- बाबरी मस्जिद गिराना बेहद गलत था
- जैसे किसी ने जेसिका को नहीं मारा, किसी ने बाबरी मस्जिद को नहीं गिराया: पी चिदंबरम
- लालकृष्ण आडवाणी जहां भी गए नफरत के बीज बोए: दिग्विजय सिंह
नई दिल्ली: पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के सीनियर नेता पी चिदंबरम ने बाबरी मस्जिद के विध्वंस पर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि 6 दिसंबर 1992 को जो कुछ भी हुआ वह बहुत गलत था। इसने हमारे संविधान को बदनाम किया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद चीजें अनुमानित हो गईं, एक साल के भीतर सभी को बरी कर दिया गया। तो जैसे किसी ने जेसिका को नहीं मारा, वैसे ही किसी ने बाबरी मस्जिद को नहीं गिराया।
उन्होंने कहा कि यह निष्कर्ष हमें हमेशा के लिए परेशान करेगा कि जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी, एपीजे अब्दुल कलाम के इस देश में और आजादी के 75 साल बाद हमें यह कहते हुए शर्म नहीं आती कि किसी ने बाबरी मस्जिद को नहीं तोड़ा।
अयोध्या फैसले पर कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद की किताब के लॉन्चिंग के मौके पर चिदंबरम ने ये बात कही। उन्होंने कहा कि समय बीतने के कारण दोनों पक्षों ने इसे (अयोध्या फैसला) स्वीकार कर लिया। क्योंकि दोनों पक्षों ने इसे स्वीकार कर लिया है, यह एक सही निर्णय बन गया। यह एक सही फैसला नहीं है जिसे दोनों पक्षों ने स्वीकार किया है।
चिदंबरम ने कहा कि गांधी जी जो कुछ भी 'रामराज्य' समझते थे, वह अब वो 'रामराज्य' नहीं रह गया है जिसे बहुत से लोग समझते हैं। पंडित जी ने हमें धर्मनिरपेक्षता के बारे में जो बताया, वह धर्मनिरपेक्षता नहीं है जिसे बहुत से लोग समझते हैं। धर्मनिरपेक्षता स्वीकृति से सहिष्णुता और सहिष्णुता से असहज सहअस्तित्व की ओर बढ़ गई है।
वहीं इस मौके पर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि 1984 में जब वे (बीजेपी) केवल 2 सीटों तक ही सीमित रह गए, तो उन्होंने इसे राष्ट्रीय मुद्दा (राम जन्मभूमि विवाद) बनाने का फैसला किया क्योंकि अटल बिहारी वाजपेयी का गांधीवादी समाजवाद 1984 में विफल हो गया था। इसलिए, उन्हें कट्टर कट्टर धार्मिक कट्टरवाद के रास्ते पर चलने के लिए मजबूर किया गया, जिसके साथ आरएसएस और इसकी विचारधारा को जाना जाता है। आडवाणी जी की यात्रा ही समाज को बांटने वाली थी। वह जहां भी गए नफरत के बीज बोए।
उन्होंने कहा कि हिंदुत्व का हिंदू धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। सावरकर धार्मिक नहीं थे। उन्होंने कहा था कि गाय को 'माता' क्यों माना जाता है और बीफ खाने में कोई दिक्कत नहीं है। वह हिंदू पहचान स्थापित करने के लिए 'हिंदुत्व' शब्द लाए जिससे लोगों में भ्रम पैदा हुआ। आज कहा जाता है कि हिंदू धर्म खतरे में हैं। 500 साल के मुगल और मुसलमानों के शासन में हिंदू धर्म का कुछ नहीं बिगड़ा। ईसाइयों के 150 साल के राज में हमारा कुछ नहीं बिगड़ा, तो अब हिंदू धर्म को खतरा किस बात का है। खतरा केवल उस मानसिकता और कुंठित सोची समझी विचारधारा को है जो देश में ब्रिटिश हुकूमत की 'फूट डालो और राज करो' की विचारधारा थी, उसको प्रतिवादित कर अपने आप को कुर्सी पर बैठाने का जो संकल्प है, खतरा केवल उन्हें है। समाज और हिंदू धर्म को खतरा नहीं है।