नई दिल्ली : सेना में स्थायी कमीशन की चाह रखने वाली महिला अधिकारियों के साथ भेदभाव करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सेना की आलोचना की। सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिए सेना ने जो मानक बिंदु तय किए हैं वे 'मनमाना एवं भेदभाव करने वाले' हैं। अदालत ने सेना से अपने 'एनुवल कॉन्फिडेंशियल रिपोर्ट' (एसीआर) पर दोबारा विचार करने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने एसससी के जरिए आने वाली योग्य महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने का निर्देश दिया है। इनमें वे भी महिला अधिकारी शामिल हैं जिन्हें पहले फिटनेस के आधार पर बाहर किया गया है।
एससी पहुंची हैं करीब 80 महिला अधिकारी
बता दें कि शीर्ष अदालत ने अपने फरवरी 2020 के आदेश में एसएससी के जरिए चुनकर आने वाली महिला अधिकारियों को सेना में स्थायी कमीशन देने का फैसला दिया है। करीब 80 महिला अधिकारियों ने यह कहते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था कि उसके आदेश का उल्लंघन हो रहा है। मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को स्थायी कमीशन देने के लिए सेना ने जो मानदंड तय किए हैं, वे 'भेदभाव' करने वाले हैं।
सेना को अपने नियमों की समीक्षा करने के निर्देश
कोर्ट ने मानकों को पूरा करने वाली सभी महिला अधिकारियों को स्थानीय कमीशन देने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि विजिलेंस एवं अनुशासनात्मक रिपोर्ट में खरा उतरने वाली महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के योग्य समझा जाए।
पुरुषों ने खड़ा किया है सामाजिक ढांचा-कोर्ट
जस्टिस डीआई चंद्रचूड़ ने कहा, 'हमारे समाज का ढांचा पुरुषों ने पुरुषों के लिए खड़ा किया है। कहीं कहीं यह ढांचा ठीक है लेकिन ज्यादातर यह हमारे पितृसत्तात्मक व्यवस्था को ही प्रदर्शित करता है। समान अधिकारों वाला समाज बनाने के लिए सोच में बदलाव लाने एवं तालमेल बिठाने की जरूरत है।'
'चैरिटी मांगने नहीं आईं महिला अधिकारी'
सेना की आलोचना करते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, 'यह कहना गलत नहीं होगा कि सेना में महिलाएं सेवा दे रही हैं जबकि वास्तविक तस्वीर कुछ दूसरी है। समानता का कृत्रिम आवरण संविधान में दिए गए सिद्धांतों के सामने सही नहीं ठहरता।' कोर्ट ने कहा कि महिला अधिकारियों ने स्थायी कमीशन दिलाने की मांग की है। वे चैरिटी अथवा उनका पक्ष लेने के लिए नहीं आई हैं।