- 12 से तीन बजे तक किसान संगठनों ने चक्का जाम का ऐलान किया था
- दिल्ली-एनसीआर, यूपी और उत्तराखंड तो चक्का जाम से रखा गया था बाहर
- चक्का जाम की वजह से दिल्ली की सीमा पर सुरक्षा के थे अभूतपूर्व प्रबंध
नई दिल्ली। नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों ने तीन घंटे का चक्का जाम शांति से गुजर गया। पंजाब और हरियाणा को छोड़कर देश के अलग अलग हिस्सों में इसका असर कम दिखाई दिया। चक्का जाम को लेकर तरह तरह की शंकाएं थीं कि कहीं ऐसा ना हो कि 26 जनवरी जैसा मंजर ना दिखाई दे। लेकिन किसी तरह की तनाव वाली स्थिति नहीं बनी। यहां बता दें कि किसान संगठनों ने दिल्ली- एनसीआर के साथ साथ यूपी और उत्तराखंड को चक्का जाम से आजाद रखा था। दिल्ली पुलिस की तरफ से भी 26 जनवरी वाली हिंसा को ध्यान में रखते हुए तैयारी पूरी थी। सिंघु बार्डर, गाजीपुर बार्डर और टिकरी बार्डर पर सुरक्षा के पूरे इंतजाम थे।
26 जनवरी के उत्पात के लिए जिम्मेदार कौन
26 जनवरी को जिस तरह से दिल्ली की सड़कों पर किसानों के भेष में उत्पातियों ने आईटीओ पर हिंसा की और लालकिले को बंधक बना लिया उसके बाद आज तक कई तरह के सवाल पूछे जाते हैं कि आखिर कौन था जिम्मेदार। दरअसल यह सवाल इसलिए भी प्रासंगिक है कि क्योंकि जिस तरह से चक्का जाम शांति के साथ गुजर गया तो क्या दिल्ली पुलिस की तैयारी उस वक्त अधूरी थी या किसान नेताओं की अहम की वजह से देश को शर्मसार होना पड़ा।
क्या अहम की लड़ाई थी
किसान नेताओं ने चक्का जाम से पहले कहा था कि वो दिल्ली को इससे आजाद रखेंगे तो सवाल यहीं उठ खड़ा होता है कि जब दिल्ली पुलिस की तरफ से बार बार कहा जा रहा था कि 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड ना निकालें तो किसानों उस वक्त उनकी बातों को दरकिनार क्यों कर दिया। जब किसान संगठनों का दबाव बढ़ा तो एनओसी के साथ परेड की सहमति तय रूट पर दी गई तो उसके बाद किसान अपने परेड को अनुशासित क्यों नहीं रख पाए। हालांकि किसानों का कहना है कि जिन लोगों ने उत्पात मचाया उससे उनका किसी तरह का संबंध नहीं है।
इसके साथ ही दिल्ली पुलिस पर सवाल उठता है कि जिस तरह से दिल्ली के तीनों बार्डर करीब 50 हजार सुरक्षाकर्मियों की तैनाती की गई या जिस तरह से सिंघु बार्डर, गाजीपुर बार्डर और टिकरी बार्डर पर कीलें और कटीले तारों के साथ कई चक्र का सुरक्षा घेरा बनाया गया कि क्या उस तरह की तैयारी 26 जनवरी को नहीं की जा सकती थी। क्योंकि 26 जनवरी के बारे में तो दिल्ली पुलिस ने खुद कहा था कि 308 ट्विटर हैंडल से जो जानकारी मिली है उससे पता चलता है कि देशविरोधी ताकतें गणतंत्र दिवस के दिन देश को बदनाम कर सकती हैं।
क्या कहते हैं जानकार
6 फरवरी को शांति के साथ चक्का जाम के संपन्न होने पर हर किसी ने राहत की सांस ली है। लेकिन इस संंबंध में जानकार कहते हैं कि 26 जनवरी को हिंसा क्यों हुई अब यह खुला प्रश्न है, चक्का जाम को अगर देखें तो एक बात साफ है कि किसान संगठनों ने स्पष्ट कर दिया था कि वो यूुपी और दिल्ली में इसे आयोजित नहीं करेंगे तो निश्चित तौर पर किसानों की आड़ में जो उत्पात मचाने वाले लोग रहे होंगे उन्हें किसी तरह का रास्ता नहीं मिला। इसके साथ ही जिस तरह से दिल्ली पुलिस की तरफ से प्रो एक्टिव तैयारी की गई थी उससे स्पष्ट संदेश था कि अगर किसी ने उत्पात करने की जुर्रत की तो उसके साथ किसी तरह की ढील नहीं दी जाएगी।