- पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले एक्साइज ड्यूटी में कमी की गई है
- केंद्र सरकार के फैसले के बाद कई राज्य सरकारों ने की कमी
- एनडीए शासित सरकारें अब कांग्रेस शासित राज्यों पर बना रही हैं दबाव
पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर हाहाकार मचा हुआ था। केंद्र सरकार पर विपक्ष हमलावर था कि सस्ते दिन का वादा करने वाली मोदी सरकार खामोश क्यों है। चौतरफा हमले को देखते हुए दिवाली के दिन केंद्र सरकार मे पेट्रोल और डीजल की एक्साइज ड्यूटी में कटौती की और उसके बाद एनडीए की कई सरकारों ने भी वैट दरों में कटौती की और सवाल पूछा कि गैर बीजेपी सरकारें क्या कर रही हैं। अब महाराष्ट्र में उद्धव सरकार की सहयोगी एनसीपी और छत्तीसगढ़ सरकार ने अलग राग अलापा है।
जीएसटी क्षतिपूर्ति के बगैर मदद संभव नहीं
एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने कहा कि उन्होंने महाराष्ट्र सरकार से बात की है, सरकार ने भरोसा दिया है कि वो इस संबंध में फैसला करेगी। लेकिन सवाल भी किया कि आखिर जीएसटी क्षतिपूर्ति के बदल में जो रकम मिलनी है वो अब तक क्यों नहीं मिली। केंद्र सरकार को जीएसटी क्षतिपूर्ति की दिशा में काम करना चाहिए। जीएसटी क्षतिपूर्ति के बाद ही लोगों को मदद करना संभव होगा।
पहले 30 रुपए दाम बढ़ाना, पांच रुपए की कमी लालीपॉप
पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर राहत देने के मुद्दे पर कहा कि अगर केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी को 30 रुपए से 9 रुपए कर दे जैसा कि यूपीए सरकार ने किया था, पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी आ जाएगी। पेट्रोल की कीमतों में 30 रुपए की बढ़ोतरी और फिर पांच रुपए की कमी करना लालीपॉप है।
क्या इस विषय पर हो रही है राजनीति
बता दें कि केंद्र सरकार ने राज्यों को जीएसटी क्षतिपूर्ति की मद में 17000 करोड़ रुपए दिए हैं। ऐसे में सवाल यह है कि जो राज्य सरकारें कांग्रेस के शासन में नहीं हैं उनकी तरफ से जनता को राहत कैसे मिली। इसे लेकर जानकारों का कहना है कि सरकारों के लिए पेट्रोलियम पदार्थों से कमाई एक बेहतर रास्ता होता है और कमाई के उस स्रोत को वो खोना नहीं चाहती हैं। जहां तक एनडीए सरकारों द्वारा कीमतों में कमी किया गया है उसे राजनीतिक हथकंडा के तौर पर देखा जा रहा है। लेकिन राजनीतिक लाभ के बीच भी आम लोगों को राहत मिली है। अब जबकि एनडीए शासित सरकारों की तरफ से पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत में कटौती की गई है तो निश्चित तौर पर कांग्रेस शासित राज्यों पर नैतिक दबाव का बनना लाजिमी है।