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Bharat bandh : किसान आंदोलन में राजनीतिक पार्टियां भी कूदीं, 8 दिसंबर के भारत बंद में ये दल होंगे शामिल

Updated Dec 07, 2020 | 09:39 IST

तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के 8 दिसंबर के भारत बंद में कांग्रेस, एनसीपी, आरजेडी, सपा, लेफ्ट समेत तमाम विपक्षी पार्टियों ने शामिल होने का फैसला किया है। 

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तस्वीर साभार:&nbspPTI
किसानों का आंदोलन तेज हुआ
मुख्य बातें
  • किसानों ने 8 दिसंबर के भारत बंद का आह्वान किया है
  • तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग
  • किसानों के समर्थन में विपक्ष दल भी खुलकर मैदान में आ गए हैं

नई दिल्ली : तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध तेज होता जा रहा है। किसानों ने 8 दिसंबर के भारत बंद का आह्वान किया है। किसानों के आंदोलनों के समर्थन राजनीतिक पार्टियां भी खुलकर मैदान में आ गई है। वे बंद में शामिल होंगी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख शरद पवार, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव सीताराम येचुरी, द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) के प्रमुख एम के स्टालिन और पीएजीडी के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला समेत प्रमुख विपक्षी नेताओं ने रविवार को एक संयुक्त बयान जारी कर किसान संगठनों द्वारा 08 दिसंबर को किए गए ‘भारत बंद’ के आह्वान का समर्थन किया और केंद्र पर प्रदर्शनकारियों की वैध मांगों को मानने के लिए दबाव बनाया।

हजारों प्रदर्शनकारी किसानों के प्रतिनिधियों ने कहा है कि मंगलवार को पूरी ताकत के साथ देशव्यापी हड़ताल की जाएगी। ये किसान 3 कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग करते हुए 26 नवंबर से राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर डेरा डाले हुए हैं। बयान में कहा गया है कि राजनीतिक दलों के हम दस्तखत करने वाले नेतागण देशभर के विभिन्न किसान संगठनों द्वारा आयोजित भारतीय किसानों के जबरदस्त संघर्ष के साथ एकजुटता प्रकट करते हैं और इन पश्चगामी कृषि कानूनों एवं बिजली संशोधन बिल को वापस लेने की मांग को लेकर उनके द्वारा 08 दिसंबर को किए गए भारत बंद के आह्वान का समर्थन करते हैं।

इस बयान पर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव, समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के महासचिव डी राजा, भाकपा (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य, ऑल इंडिया फारवार्ड ब्लॉक (एआईएफबी) के महासचिव देवव्रत विश्वास और आरएसपी के महासचिव मनोज भट्टाचार्य ने भी दस्तखत किए हैं।

बयान में कहा गया है कि संसद में ठोस चर्चा और मतदान पर रोक लगाते हुए अलोकतांत्रिक तरीके से पारित किए गए ये नए कृषि कानून भारत की खाद्य सुरक्षा, भारतीय कृषि एवं हमारे किसानों की बर्बादी का खतरा पैदा करते हैं, न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था के खात्मे की बुनियाद डालते हैं, भारतीय कृषि एवं हमारे बाजारों को बहुराष्ट्रीय कृषि कारोबारी औद्योगिक एवं घरेलू कॉरपोरेट घरानों की मर्जी के आगे गिरवी रखते हैं। इन नेताओं ने कहा कि केंद्र सरकार को लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं एवं नियमों का पालन करना चाहिए और किसान-अन्नदाताओं की वैध मांगों को पूरा करना चाहिए।

सरकार और प्रदर्शनकारी किसानों के बीच पांच दौर की चर्चा के बाद भी शनिवार को वार्ता बेनतीजा रही। किसान संगठनों के नेता नये कृषि कानूनों को वापस लेने की अपनी मांग पर अड़ गए और उन्होंने केंद्र को गतिरोध दूर करने के लिए 09 दिसंबर को अगले दौर की बैठक बुलाने के लिए बाध्य कर दिया।

कृषक (सशक्तीकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार अधिनियम, 2020, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम, 2020 और आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम, 2020 का विरोध कर रहे हैं।

सितंबर में बनाये गए तीनों कृषि कानूनों को सरकार ने कृषि क्षेत्र में एक बड़े सुधार के रूप में पेश किया है और कहा कि इससे बिचौलिये हट जाएगे एवं किसान देश में कहीं भी अपनी उपज बेच पाएंगे।

किसान समुदाय को आशंका है कि केन्द्र सरकार के कृषि संबंधी कानूनों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था समाप्त हो जायेगी और किसानों को बड़े औद्योगिक घरानों की अनुकंपा पर छोड़ दिया जायेगा। सरकार ने कहा है कि एमएसपी एवं मंडी व्यवस्था बनी रहेगी।
 

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