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पुलवामा हमला: भारत के कड़े तेवरों से जब चीन भी हो गया था मजबूर, आतंकी मसूद अजहर पर बदलना पड़ा था रुख

Updated Feb 14, 2021 | 09:00 IST

पुलवामा हमले में भारत ने अपने 40 सपूतों को खोया तो इस घटना ने पाकिस्तान को पूरी तरह से बेनकाब कर दिया। भारत को जिस तरह का समर्थन मिला, उससे चीन भी अपना रुख बदलने को मजबूर हुआ।

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तस्वीर साभार:&nbspBCCL
पुलवामा हमला: भारत के कड़े तेवरों से जब चीन भी हो गया था मजबूर, आतंकी मसूद अजहर पर बदलना पड़ा था रुख

नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर के पुलवामा में 14 फरवरी, 2019 को हुए आतंकी हमले ने जहां पाकिस्तान को आतंकवाद के मोर्चे पर एक बार फिर बेनकाब किया, वहीं इस मामले में भारत की कूटनीतिक जीत ने चीन को भी मजबूर कर दिया कि वह पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी मसूद अजहर को लेकर अपने रुख में बदलाव करे। दुनिया के कई देशों ने इस मसले पर भारत का साथ दिया था, जिसके बाद चीन को अपने रुख में बदलाव के लिए मजबूर होना पड़ा।

पुलवामा में 14 फरवरी, 2019 को हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी, जिसके सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 अलकायदा प्रतिबंध समिति ने 1 मई, 2019 को वैश्विक आतंकी के रूप में प्रतिबंधित किया था। इससे पहले भारत की ओर से लाए गए इस आशय के कई प्रस्तावों पर चीन ने अड़ंगा लगाया था। लेकिन पुलवामा हमले के बाद बढते अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच चीन को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी।

चीन ने कई बार डाली अड़चन

मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी के रूप में प्रतिबंधित करने के लिए भारत ने पहली बार प्रस्ताव साल 2009 में लाया था। लेकिन तब भी चीन ने इसमें रुकावट डाली थी। अजहर वही आतंकी है, जिसे भारत ने 1999 में विमान अपहरण के बाद यात्रियों की सुरक्षित रिहाई के बदले छोड़ा था। इसके बाद भारत में हुए कई आतंकी वारदातों में जैश-ए-मोहम्मद और मसूद अजहर का हाथ सामने आया था। भारत ने कई साक्ष्य सौंपे, लेकिन पाकिस्तान इन आतंकियों के लिए पनाहगाह बना रहा और उसने कार्रवाई नहीं की।

भारत के पठानकोट एयरबेस पर जनवरी 2016 में हुए आतंकी हमले में भी जैश-ए-मोहम्मद और मसूद अजहर का नाम सामने आया था, जिसके बाद भारत की ओर से मसूद अजहर को आतंकी संगठन के तौर पर प्रतिबंधित करने के लिए एक और प्रस्ताव लाया गया। तब संयुक्त राष्ट्र के तीन स्थाई सदस्यों-  अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस की मदद इस मामले में भारत को मिली थी। लेकिन चीन ने फिर पाकिस्तान के पक्ष में जाते हुए यह कहकर इसमें अड़ंगा डाला कि मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी के रूप में प्रतिबंधित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं है।


(साभार: AP)

भारत को मिला व्यापक समर्थन

मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाने के लिए इसके लिए सुरक्षा परिषद के उक्त तीन स्थाई सदस्यों ने एक बार फिर 2017 में प्रस्ताव लाया, पर वह प्रस्ताव भी गिर गया, क्योंकि चीन ने ऐतराज जताया। चीन सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्यों में से एक है, जिन्हें वीटो का अधिकार भी प्राप्त है। लेकिन पुलवामा हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय जगत ने जिस तरह भारत का साथ दिया, उससे चीन की हर चाल नाकाम हो गई।

पुलवामा हमले के बाद भी ऐसा ही प्रस्ताव लाया गया, जिस पर चीन ने कुछ ‘तकनीकी खामियों’ का हवाला देकर अड़चन लगा दी। यह बीते एक दशकों में ऐसी चैथी कोशिश थी, जिसमें भारत को आखिरकार कामयाबी मिल गई। पुलवामा हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय जगत का कूटनीतिक समर्थन भारत के साथ था। सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्यों में चीन को छोड़कर हर कोई भारत के साथ था। 10 अस्थाई सदस्यों का मत भी इस मसले पर भारत के पक्ष में था। ऐसे में चीन को अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ा।

और आतंकी घोषित हुआ मसूद अजहर

मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने को लेकर लाए गए प्रस्ताव पर भारत को मिल रहे अंतरराष्ट्रीय समर्थन को देखते हुए चीन ने अपना ‘टेक्निकल होल्ड’ हटा लिया और इस तरह मसूद अजहर वैश्विक आतंकी घोषित हुआ। इसे भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत के तौर पर देखा गया, जबकि यह पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका था। तब भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया था कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का यह फैसला उन साक्ष्यों पर आधारित है, जो भारत ने आतंकी गतिविधियों के खिलाफ वैश्विक संस्था को मुहैया कराए थे।
(साभार: BCCL)

विदेश मंत्रालय ने कहा था कि वैश्विक संस्था का यह फैसला सभी तरह की आतंकी वारदातों को लेकर है और इसमें निस्संदेह पुलवामा आतंकी हमले ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज पुलवामा में हुए आतंकी हमले को दो साल हो गए हैं, जब जैश आतंकी आदिल अहमद डार ने विस्फोटकों से भरी गाड़ी उस बस से टकरा दी थी, जिसमें सीआरपीएफ के जवान सवार थे। इस घटना में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए। हम आज उन शहीद जवानों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते और उन्हें सैल्यूट करते हैं।

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