- आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक में राजनाथ सिंह ने चीन और पाकिस्तान को लताड़ा
- पाकिस्तान के संदर्भ में आतंकवाद और कट्टरपंथ का खास जिक्र
- दक्षिण चीन सागर के विषय को उठा चीन की विस्तारवादी नीति का किया जिक्र
आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक प्लस में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने साफ कहा कि इस समय दुनिया के सामने आतंकवाद और कट्टरपंथ विश्व शांति और सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है। वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) के सदस्य के रूप में, भारत आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करने के लिए प्रतिबद्ध है। भारत हिंद-प्रशांत के लिए साझा दृष्टिकोण के कार्यान्वयन के लिए आसियान के नेतृत्व वाले तंत्र के उपयोग का समर्थन करता है। इंडो-पैसिफिक में एक मुफ्त, खुले और समावेशी आदेश की मांग करता है।
दक्षिण पूर्व एशिया से भारत का खास रिश्ता
दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र के साथ भारत का जुड़ाव नवंबर 2014 में पीएम मोदी द्वारा घोषित 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी' पर आधारित है। यह द्विपक्षीय और बहुपक्षीय स्तरों पर निरंतर जुड़ाव के माध्यम से आर्थिक सहयोग और सुसंस्कृत संबंधों को बढ़ावा देता है।दक्षिण चीन सागर के विकास ने इस क्षेत्र और उसके बाहर ध्यान आकर्षित किया है। भारत इन अंतरराष्ट्रीय जलमार्गों में नेविगेशन, ओवरफ्लाइट और अबाधित वाणिज्य की स्वतंत्रता का समर्थन करता है।रैंसमवेयर, वानाक्राई हमलों और क्रिप्टोकरेंसी की चोरी की घटनाओं के रूप में साइबर खतरे बड़े पैमाने पर चिंता के कारण हैं।
इसलिए पाकिस्तान का जिक्र
अब सवाल यह है कि आसियना देशों में रक्षा मंत्री ने चीन और पाकिस्तान का सीधे तौर पर नाम तो नहीं लिया। लेकिन चीन और पाकिस्तान की मंशा का जिक्र जरूर किया। आतंकवाद और कट्टरपंथ का जिक्र कर उन्होंने साफ किया कि एक तरफ तो भारत का पड़ोसी मुंहजबानी बड़ी बड़ी बातें करता है लेकिन जमीन पर उसकी कथनी और करनी में अंतर साफ दिखाई देता है। सीमापार से घुसपैठ की कोशिशें चलती ही रहती हैं। इसके साथ पाकिस्तान ने कट्टरपंथ का पाठ पढ़ाया जा रहा है कि जिसका नकारात्मक असर खुद पाकिस्तान में ही दिखाई देता है।
दक्षिण चीन सागर पर खास कमेंट
इसके साथ ही चीन का जिक्र कर उन्होंने साफ किया कि विकास और विस्तारवाद की बातें एक साथ नहीं हो सकती है। दरअसल चीन यह नहीं चाहता है कि भारत उसके विषय खासतौर पर दक्षिण चीन सागर या वन बेल्ट, वन रोड पर जुबां खोले। लेकिन अब भारत सभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुलेआम दक्षिण चीन सागर का जिक्र कर बताता है कि दुनिया के देशों को यह देखना चाहिए कि चीन की नीति किस तरह से विश्व परिदृ्श्य के अनुकूल नहीं है।