- पूर्व केंद्रीय मंत्री रशीद मसूद का हाल ही में हुआ था निधन
- रशीद मसूद की तेरहवीं पर देवबंद के उलेमाओं को ऐतराज
- तेरहवीं को देवबंद के उलेमाओं ने बताया हराम
नई दिल्ली। पूर्व केंद्रीय मंत्री काजी रशीद मसूद की तेरहवीं इन दोनों शब्दों से आपका चौंकना लाजिमी है। लेकिन यह सच भी है। रशीद मसूद के परिवार ने उनके निधन के बाद बाकायदा विधि विधान से हिंदू परंपरा के मुताबिक अंतिम क्रिया कर्म को संपन्न किया। लेकिन देवबंद के उलेमाओं को यह काम नहीं भा रहा है। कुछ उलेमाओं ने तो पूरे विधि विधान को हराम तक करार दिया। यह बात अलग है कि रशीज मसूद के बेटे शादान ने कहा कि यह परंपरा उनके परिवार में पहले से रही है।
वैदिक मंत्रों के बीच तरावीह और पगड़ी समारोह रशीद मसूद के समर्थकों द्वारा हाल ही में कोविद के कारण निधन के बाद किया गया था।मसूद के बेटे शादान को पगड़ी पहनने के लिए बनाया गया था, जो पारंपरिक रूप से हिंदू उत्तराधिकारी के अनुसार मृतक से लेकर उसके उत्तराधिकारी तक के पद से गुजरने का प्रतीक है। शादान कहते हैं कि आखिर इसमें क्या गलत है, यह तो गंगा जमुनी तहजीब को और मजबूत करने की दिशा में कदम है।
शादान का कहना है कि उनके परिवार ने स्वेच्छा से समारोह में भाग लिया। वास्तव में मसूद के बेटे शादान ने कहा कि उनके भव्य पिता और चाचा के लिए भी इसी तरह का समारोह किया गया था। लेकिन अब कई देवबंद के मौलवियों ने इस समारोह को असामाजिक बताते हुए आपत्ति जताई है। देवबंद उलेमा समारोह को हराम (निषिद्ध) कहने की हद तक गया। जानकार कहते हैं कि देवबंद इस्लाम की कट्टर प्रक्रियाओं का समर्थन करता है लिहाजा उनके यहां से इस तरह की बातें कहीं जाती हैं। लेकिन देवबंद के उलेमाओं का असर अब उतना नहीं है। जिस तरह से मुस्लिम समाज में जागरुकता आई है उसकी वजह से उनका प्रभाव कम हो रहा है।