- शरद पवार ने कहा कि उन्हें पीएम के लद्दाख दौरे से हैरानी नहीं हुई
- राकांपा नेता ने कहा कि 1962 की लड़ाई के बाद नेहरू भी वहां गए थे
- गलवान घाटी की हिंसा के बाद सीमा पर भारत-चीन के बीच तनाव बढ़ा
मुंबई : राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के मुखिया शरद पवार ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लद्दाख यात्रा में जानकर उन्हें कोई हैरानी नहीं हुई क्योंकि चीन के साथ 1962 की लड़ाई के बाद तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू ने लद्दाख का दौरा किया था। नेहरू के अलावा रक्षा मंत्री यशवंत राव चव्हाण ने भी वहां की यात्रा की थी। पुणे में पत्रकारों के साथ बातचीत में पवार ने उस समय को याद किया जब 1993 में वह देश के रक्षा मंत्री थे। राकांपा नेता ने कहा कि जब वह रक्षा मंत्री थे तब वह चीन के दौरे पर गए थे। इस दौरे पर दोनों देशों के बीच इस बात पर समझौता हुआ कि विवाद होने पर एक-दूसरे देश के सैनिक पीछे लौटेंगे।
'सैनिकों का पीछे हटना अच्छी बात'
पवार ने कहा, 'उस समय दोनों देशों के बीच नो-वीपन ट्रीटी पर भी हस्ताक्षर हुए। प्रधानमंत्री मोदी के साथ सर्वदलीय बैठक में मैंने कहा था कि मौजूदा विवाद का हल कूटनीतिक चैनल से किए जाने की जरूरत है। हमें चीन पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाना चाहिए। समाचार पत्रों में मैंने देखा है कि राजनयिक स्तर पर बातचीत के बाद दोनों देशों के सैनिक वापस लौटे हैं, यदि ऐसा है तो यह अच्छी बात है।'
नेहरू भी लद्दाख गए थे-पवार
पीएम मोदी की हाल की लद्दाख यात्रा के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में पवार ने कहा, 'साल 1962 की लड़ाई में चीन ने भारत को हरा दिया था। तब उस समय के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू लद्दाख गए थे। यहां तक कि रक्षा मंत्री यशवंत राव चव्हाण जो कि उस समय रक्षा मंत्री थे वह भी सैनिकों का मनोबल ऊंचा करने के लिए चीन सीमा पर गए थे।'
'सैनिकों का मनोबल ऊंचा रखना जरूरी'
पवार ने कहा, 'जब दो देशों के बीच संघर्ष की स्थिति बन जाती है और सेनाएं एक-दूसरे के आमने-सामने होती हैं तो ऐसे में देश के नेतृत्व को यह सुनिश्चित करना होता है कि सैनिकों का मनोबल ऊंचा बना रहे। मुझे पीएम मोदी की लद्दाख यात्रा से आश्चर्य नहीं हुआ।'