- गत पांच मई को लद्दाख के पूर्वी भाग में भारत और चीन के जवानों के बीच हुई झड़प
- एलएसी के पास चीनी सैनिकों के दाखिल होने से दोनों देशों के बन गया है गतिरोध
- भारत इन इलाकों को अपना मानता है, एक इंच भी पीछे हटने के लिए तैयार नहीं
नई दिल्ली : लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास भारत और चीन की फौजों के आमने-सामने डंट होने से गतिरोध बन गया है। साल 2017 के डोकलाम विवाद के बाद यह दूसरा मौका है जब दोनों देशों की फौज अपने-अपने दावे पर कायम है और पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं। सीमा पर उभरे इस तनाव को कम करने के लिए भारत और चीन दोनों की तरफ से सैन्य स्तर पर लगातार उच्च बैठकें हो रही हैं। फिलहाल इस समस्या का अभी समाधान नहीं निकला पाया है। इस गतिरोध को लेकर बुधवार को दिल्ली में शीर्ष सैन्य कमांडरों की बैठक में इस मसले पर चर्चा होनी है। समझा जाता है कि नॉर्दन कमान के सैन्य प्रमुख लद्दाख की ताजा स्थिति के बारे में अपनी शीर्ष अधिकारियों को जानकारी देंगे।
सैटेलाइट तस्वीरें आईं सामने
सीमा पर बने इस गतिरोध की कुछ सैटेलाइट तस्वीरें सामने आई हैं। इन तस्वीरों से जाहिर है कि चीन की सेना पीएलए ने एलएसी को पार कर भारतीय इलाके में अतिक्रमण किया है। चीन चाहता है कि भारतीय सेना यहां से पीछे हट जाए लेकिन भारतीय फौज ने अपनी मंशा साफ कर दी है कि वह अपने इलाके से एक इंच भी पीछे हटने वाली नहीं है। तस्वीरों से साफ पता चलता है कि चीन की सैन्य टुकड़ी भारतीय क्षेत्र में दाखिल होकर अवैध दावा कर रही है। अतिक्रमण की इस कार्रवाई पर भारत ने चीन को कड़ा संदेश दिया है। नई दिल्ली ने स्पष्ट कर दिया है यह इलाका उसका है और भारतीय फौज एक इंच भी पीछे नहीं हटेगी। भारत एलएसी के पास अपने विकास कार्यों को भी किसी हालत में नहीं रोकेगा।
गत पांच मई को हुई झड़प
गत पांच मई को लद्दाख के पैंगोंग त्सो झील के पास भारतीय सेना के साथ झड़प के बाद चीनी सेना के जवानों ने लद्दाख के पूवी इलाके में स्थित गलवान वैली के पास तीन जगहों पर अतिक्रमण किया। इसके बाद इन जगहों से करीब 500 मीटर की दूरी पर भारतीय जवान भी तैनात हो गए। बताया जा रहा है कि हाल के दिनों में चीन ने अपनी तरफ 5000 से ज्यादा सैनिकों को तैनात कर लिया है और टेंट लगाए हैं। चीन के इस कार्रवाई का भारत ने भी जवाब दिया है। भारत ने भी अपनी तरफ उसी संख्या में सैनिकों को खड़ा कर दिया है।
भारत के विकास कार्यों से चिढ़ा है चीन
दरअसल, चीन एलएसी के पास भारत की ओर से किए जा रहे विकास कार्यों से चिढ़ा हुआ है। वह नहीं चाहता कि एलएसी तक भारत की आसान पहुंच कायम हो। बीजिंग ने अपनी तरफ तो सड़कों एवं अन्य विकास सुविधाओं का विकास तो कर लिया है लेकिन जब इस तरह के कार्यों को भारत अंजाम देता है तो उसे परेशानी होने लगती है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कुछ दिनों पहले लिपुलेख-धारचुला 90 किलोमीटर मार्ग का लोकार्पण किया है। इसके बाद चीन की तरफ से आक्रामक कार्रवाई की जा रही है। बताया जा रहा है कि चीन के इशारे पर ही नेपाल ने अपना नया नक्शा तैयार किया है और भारतीय क्षेत्रों लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी पर अपना दावा किया है। भारत लंबे समय से इन इलाकों को अपना मानता रहा है।
अपने अवैध दावों को मनवाना चाहता है चीन
चीन की विस्तारवादी नीति से दुनिया वाकिफ है। सभी को पता है कि वह पड़ोसियों से अपनी बात मनवाने के लिए हेकड़ी दिखाते है। ताइवान, हांग कांग और दक्षिण चीन सागर मामले में उसकी रवैये को देखा जा सकता है। समय-समय पर वह भारत को भी अपने दबाव में लेने की कोशिश करता है। साल 2017 में उसने एक कोशिश डोकलाम में की थी जहां उसे मुंह की खानी पड़ी। यहां भी दोनों देशों की सेना आमने-सामने हो गई थीं। भारत यहां से भी पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हुआ जिसके बाद चीन को 72 दिनों के बाद अपनी सेना पीछे करनी पड़ी। चीन की मंशा है कि भारत उन इलाकों को उसका मान ले जिन पर वह अवैध तरीके से दावा करता है। चीन की नीयत ठीक नहीं है। वह सिक्किम, अक्साई चीन और अरूणाचल के एक बड़े भू भाग पर अपना दावा करता है लेकिन उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत अब किसी दबाव में आने वाला नहीं है। वह अपनी संप्रभुता की रक्षा करने में पहले से कहीं ज्यादा सचेत और सक्षम है।