- देसराज की कहानी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है
- कई लोगों ने उन्हें मदद देने की अपील की है
- बेहद संघर्ष कर जीवन यापन कर रहे हैं देसराज
नई दिल्ली: किसी भी माता-पिता के लिए अपने बच्चे को सबसे दर्दनाक होता है। ऐसे ही एक ऑटोरिक्शा चालक की दिल दहला देने वाली कहानी आपकी आंखों में आंसू ला देगी क्योंकि उसने अपने दोनों बेटों को असमय खो दिया। Humans of Bombay पर शेयर की गई देसराज की कहानी दर्द से भरी है और लेकिन अभी भी बहुत उम्मीद से भरी है। उन्होंने बताया है कि अपने दोनों बेटों को खोने के बाद अपनी बहू और उसके बच्चे उनकी जिम्मेदारी बन गए। वो बताते हैं, 'छह साल पहले मेरा सबसे बड़ा बेटा घर से गायब हो गया। वह हमेशा की तरह काम पर निकला था लेकिन कभी वापस नहीं लौटा।'
एक हफ्ते के बाद उनके बेटे का शव मिला। वह केवल 40 साल का था। सबसे दुखद बात यह है कि देसराज के पास बेटे की मौत का शोक मनाने का समय भी नहीं था। वो कहते हैं, 'मेरा एक हिस्सा उसके साथ मर गया, लेकिन जिम्मेदारियों के बोझ से मुझे शोक मनाने का भी समय नहीं मिला। अगले दिन मैं सड़क पर वापस आ गया और अपना ऑटो चला रहा था।'
दोनों बेटों को खो दिया
उनके दुखों में कोई कमी नहीं हुई और दो साल बाद देसराज ने अपने दूसरे बेटे को भी खो दिया। उसने आत्महत्या कर ली थी। इसके बाद बहू और उनके चार बच्चों की जिम्मेदारी बुजुर्ग देसराज पर आ गई। उनकी पोती तब 9वीं कक्षा में थी और उनसे पूछा था कि क्या उसे स्कूल छोड़ना होगा। उन्होंने उसे आश्वासन दिया कि कुछ भी नहीं होगा। फिर उन्होंने बहुत अधिक काम करना शुरू कर दिया। वह अपने ऑटोरिक्शा को सुबह 6 बजे से आधी रात तक चलाने के बाद प्रति माह लगभग 10,000 रुपए कमाने में कामयाब रहे। 10 हजार में से वह अपने बच्चों के बच्चों के फीस के रूप में 6,000 रुपए का भुगतान करते हैं। बाकी 4,000 रुपए में 7 लोगों का परिवार चलता है।
पोती की पढ़ाई के लिए बेच दिया घर
देसराज कहते हैं, 'कई दिन हम मुश्किल से कुछ भी खा पाते हैं।' जब उनकी पोती ने 12वीं कक्षा की परीक्षा में 80 प्रतिशत अंक हासिल किए तो इस खुशी में उन्होंने दिन भर ग्राहकों को मुफ्त सवारी दी। उनकी पोती ने उनसे पूछा कि क्या वह बीएड कोर्स के लिए दिल्ली जा सकती हैं। यह जानते हुए कि वह इसे वहन करने में सक्षम नहीं होंगें उन्होंने रास्ता निकाल लिया। उन्होंने कहा कि मुझे उसके सपने पूरे करने थे ... किसी भी कीमत पर। इसलिए, मैंने अपना घर बेच दिया और उसकी फीस चुकाई।
ऑटो में ही सोते हैं
उन्होंने अपनी पत्नी, बहू और बच्चों को अपने गांव में एक रिश्तेदार के घर भेज दिया, जबकि वह मुंबई में अपना ऑटो चलाते रहे। वो कहते हैं, 'अब एक साल हो गया है और ईमानदारी से कहूं तो जीवन बुरा नहीं है। मैं अपने ऑटो में खाता हूं और वहीं सोता हूं और दिन में चलाता हूं।' वो कहते हैं कि उनका सारा दर्द तब दूर हो जाता है, जब उनकी पोती उन्हें बताती है कि वह अपनी कक्षा में प्रथम स्थान पर रही।
देसराज कहते हैं, 'मैं उसके टीचर बनने की प्रतीक्षा कर रहा हूं, ताकि मैं उसे गले लगा सकूं और कह सकूं, 'तुमने मुझे इतना गौरवान्वित किया है।' वह हमारे परिवार में पहली स्नातक बनने जा रही है।'