- सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने एनपीआर का विरोध किया
- कहा-एनपीआर को वापस लिए बगैर एनआरसी पर नहीं लग सकती रोक
- सरकार एक अप्रैल से सितंबर 2020 तक देश में एनपीआर करने जा रही है
नई दिल्ली: सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा है कि सरकार को राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को वापस लेने के बाद ही जनसंख्या की गणना पर काम शुरू करना चाहिए। उन्होंने कहा कि एनपीआर की वापसी से ही एनआरसी पर रोक लगाई जा सकती है। सरकार की योजना एनपीआर के बाद एनआरसी लागू करने की है और इससे देश में और अराजकता फैलेगी। उन्होंने कहा कि एनपीआर की संवैधानिक महत्ता नहीं है क्योंकि यह कानून के रूप में दोनों सदनों में पारित नहीं हुआ है।
सामाजिक कार्यकर्ता ने यह बात रविवार को सेंट मिशेल चर्च की ओर से आयोजित एक समारोह में कही। सीतलवाड़ ने कहा, 'यूपीए की सरकार ने साल 2010 में एनपीआर पर काम किया। उस एनपीआर में लोगों के माता-पिता के जन्मतिथि और जन्मस्थान के बारे में जानकारी नहीं मांगी गई लेकिन 2020 के प्रस्तावित एनपीआर में लोगों से यह जानकारी देने के लिए कहा जा रहा है। एनपीआर को वापस लिए बगैर एनआरसी को वापस नहीं लिया जा सकता। एनपीआर के साथ एनआरसी लागू करने की सरकार की योजना आने वाले समय में देश में अराजकता पैदा करेगी।'
'हम जनगणना नहीं रोकना चाहते'
उन्होंने आगे कहा, 'हम जनगणना के काम को रोकना नहीं चाहते लेकिन हमारी मांग है कि एनपीआर को वापस लेने के बाद ही इस पर काम शुरू किया जाए। एनपीआर को संवैधानिक समर्थन प्राप्त नहीं है क्योंकि यह कानून के रूप में संसद के दोनों सदनों से पारित नहीं है।' उन्होंने कहा कि कहीं भी ऐसा नहीं लिखा है कि एनपीआर को प्रत्येक 10 वर्षों के बाद किया जाना आवश्यक है।
एनपीआर को लेकर लोगों में है आशंका
बता दें कि सरकार आगामी एक अप्रैल से सितंबर 2020 तक देश भर में एनपीआर करने जा रही है। इसमें देश के सभी लोगों से उनके बारे में जानकारी ली जाएगी। विपक्ष को आशंका है कि सरकार इसके बाद देश में एनआरसी की प्रक्रिया शुरू करेगी। मुस्लिम समुदाय को आशंका है कि आने वाले समय में उन्हें संदिग्ध नागरिक बताकर उनसे अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कहा जा सकता है। इसलिए मुस्लिम समुदाय नागरिकता संसोधन कानून (सीएए) का भी विरोध कर रहा है।
सीएए का भी हो रहा विरोध
सरकार हालांकि कई बार यह स्पष्ट कर चुकी है कि सीएए के जरिए वह किसी की नागरिकता वापस लेने नहीं जा रही है क्योंकि सीएए नागरिकता छीनने वाला नहीं बल्कि नागरिकता देने वाला कानून है। सीएए के खिलाफ देश भर में विरोध-प्रदर्शन देखने को मिले हैं। विपक्ष की दलील है कि धर्म के आधार पर नागरिकता देने का प्रावधान करना संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है। जबकि सरकार का कहना है कि वह सीएए से पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न का शिकार होने वाले अल्पसंख्यकों हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन एवं पारसी को नागरिकता देगी।