- भाजपा का दावा है कि योगी आदित्यनाथ की सरकार ने कैराना से पलायन किए हुए हिंदू परिवारों की घर वापसी शुरू करा दी है।
- गैंगस्टर मुकीम काला ने पूरे इलाके में आतंक मचा रखा था, जिसके गैंग का पूरी तरफ सफाया योगी सरकार के दौर में हुआ।
- स्थानीय निवासियों के अनुसार 1992 के बाबरी मस्जिद कांड के बाद ग्रामीण इलाकों से निकलकर बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी कस्बों में बस गई ।
नई दिल्ली: पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली जिले में करीब 6 लाख आबादी वाला कैराना कस्बा एक बार फिर चुनावों से पहले सुर्खियों में है। भाजपा के प्रमुख चुनावी रणनीतिकार और गृहमंत्री अमित शाह कैराना से पश्चिमी यूपी में भाजपा का चुनावी बिगुल फूंकने जा रहे हैं। इसके पहले मुख्यमंत्री आदित्यनाथ नवंबर में कैराना पहुंचे थे। तब उन्होंने कहा था अराजकता करने की कोशिश करेगा,दंगा करेगा, उसकी आने वाली पीढ़ियां भूल जाएंगी कि दंगा कैसे होते हैं। उन्होंने एक बच्ची से भी पूछा था कि अब कोई डर नहीं है न ! दावा यह है कि अब 2016 में जिन परिवारों ने एक विशेष समुदाय के डर से अपने घरों को छोड़ा था, वह अब घर वापसी कर रहे हैं। असल में कैराना भाजपा को 2017 के विधानसभा चुनावों में भी रास आया था। और पश्चिमी यूपी में भाजपा को एकतरफा जीत हासिल हुई। अब अमित शाह के दौरे से साफ है कि भाजपा 2022 में एक बार फिर कैराना पर दांव खेल, 2017 जैसा इतिहास दोहराना चाहती है।
2016 में सुर्खियों में आया कैराना
कैराना को इतना महत्व मिलने पर जेहन में सीधा सवाल उठता है कि इस छोटे से कस्बे की कहानी क्या है। तो उसके लिए 2017 के यूपी विधान सभा चुनाव के पहले 2016 की यादें ताजा करनी होगी। मई 2016 में भाजपा के तत्कालीन सांसद हुकूम सिंह ने दावा किया कि वहां भय के कारण कैराना से हिंदुओं का पलायन हो रहा है। इसको साबित करने के लिए उन्होंने 346 परिवारों की एक सूची भी पेश की। भाजपा नेताओं ने दावा किया कि कैराना कश्मीर बनता जा रहा है। इसके बाद यह मामला ऐसा सुर्खियों में आया की भाजपा के लिए 2017 के चुनाव में मौजूदा समाजवादी पार्टी की सरकार के खिलाफ ट्रंप कार्ड बन गया। और फिर जो हुआ है, वह इतिहास बना और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की करीब 80 फीसदी सीटें भाजपा ने जीत ली। और अब फिर किसान आंदोलन के बीच भाजपा को 2022 में ऐसे ही कारनामे की उम्मीद है।
कैराना कैसे बना फैक्टर
पश्चिमी यूपी की राजनीति पर बारीकी से नजर रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक और स्थानीय निवासी रक्षित के अनुसार, भाजपा को कैराना को मुद्दा बनाने का मौका, मिलने की वजह करीब 30 साल पुराना इतिहास है। 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद से गांवों से बड़ी संख्या में मुसलमान कस्बों में आकर बसने लगे थे। इसकी वजह से आपको पश्चिमी यूपी के हर जिले में 4-5 कस्बे ऐसे मिल जाएंगे, जहां पर मुस्लिम आबादी, हिंदुओं की तुलना में ज्यादा है। मसलन बिजनौर में ही चांदपुर, निंदूड़, नूरपुर ऐसे इलाके हैं। ऐसे में कैराना का मुद्दा उठा तो इन इलाके के लोगों में यह भावना घर कर गई कि मुस्लिम आबादी बढ़ती जा रही है।
गैंगस्टर मुकीम काला ने मचाया था आतंक
कैराना में माहौल बिगाड़ने में गैंगस्टर मुकीम काला का भी हाथ रहा है। उसके गुर्गों ने पूरे इलाके में आतंक फैला रखा था। इसी वजह से वहां पर सिनेमाघर और इलाके का एकमात्र पेट्रोल पंप भी बंद हो गया। मुकीम और उसके गुर्गे व्यापारियों से रंगदारी मांगने, लूट मार और हत्या में शामिल थे। 20 अक्तूबर 2015 को एसटीएफ ने मुकीम काला और उसके शार्प शूटर साबिर जंधेड़ी को गिरफ्तार किया गया। लेकिन इस बीच सख्त कार्रवाई नहीं से होने उसको राजनीतिक संरक्षण मिलने के भी आरोप लगते रहे।
2017 में प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ और भाजपा की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने सबसे पहले माफियाओं पर नकेल कसने के लिए कदम उठाए। इसके बाद पुलिस ने पूरे गैंग को भी खत्म कर दिया। मुकीम काला के भाई 50 हजार के इनामी वसीम को मेरठ में पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया। बाद में चित्रकूट जिला जेल में बंद बदमाश अंशुल दीक्षित ने मुकीम काला की हत्या कर दी। उसके बाद पुलिस ने अंशुल दीक्षित को भी मार गिराया।
पलायन का ये भी है पहलू
रक्षित कहते हैं कि कैराना और आसपास के दूसरे इलाकों से पलायन की एक वजह पानीपत और देहरादून का पास होना भी है। संपन्न लोग एजुकेशन और रोजगार के अच्छे मौके को लेकर यहां से जा रहे हैं। जिसमें सभी समुदाय के लोग शामिल हैं।
किसानों की नाराजगी का भाजपा को मिला तोड़ !
2017 में भाजपा के पक्ष में वोट होने का एक बड़ा फैक्टर कैराना और मुजफ्फरनगर के दंगे बने थे। इसकी वजह से जाट और मुस्लिम वोट बिखर गए थे और भाजपा को पश्चिमी यूपी में 80 फीसदी सीटें मिल गईं थी। लेकिन किसान आंदोलन की वजह से यह समीकरण बदलता दिख रहा है। इस बार महंगाई, गन्ने की कीमत आदि मुद्दों से एक बार फिर जाट-मुस्लिम वोट एक होते दिख रहे हैं। रक्षित कहते हैं इसलिए भाजपा के लिए कैराना जैसा मुद्दा मुफीद है। अगर छोटे-छोटे मुद्दों की जगह वोटर एक बार फिर हिंदू-मुस्लिम को एजेंडा बना लेंगे, तो निश्चित तौर पर भाजपा को फायदा मिलेगा। शायद यही वजह है कि एक बार फिर भाजपा को कैराना याद आने लगा है।