क्षितीज पांडेय/महेंद्र कुमार सिंह। विपदा कभी अपने आगमन की पूर्व सूचना नहीं देती। हमारे शास्त्रों ने भी कहा है कि दूरदर्शी सुविज्ञ जन आने वाले संकटों को पहले ही भांप लेते हैं। संकटकाल में नेतृत्व का धैर्य ही शासन प्रशासन की दृढ़ता का आधारस्तंभ होता है। कोरोना महामारी आपदा के कारण लागू राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बीच बीते 12 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांचवीं बार देश को संबोधित किया। उम्मीदों के मुताबिक लॉकडाउन को बढ़ाने की बात तो उन्होंने की ही, भविष्य के लिए रोडमैप भी बताया। करीब 34 मिनट के इस संदेश में प्रधानमंत्री जी ने भारीभरकम विशेष आर्थिक राहत पैकेज की घोषणा की और तमाम अन्य जरूरी हिदायतें, अपील और जानकारियाँ दीं।
कोरोना आपदा के कारण उपजी परिस्थितियों के बीच भारत की उन्नति के लिए प्रधानमंत्री ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम श्रेणी के उद्योगों यानी एमएसएमई को आधार बनाने की बात पर खासा जोर दिया। अपनी विशिष्ट संवाद शैली के अनुरूप ही उन्होंने 'लोकल के लिए वोकल' होने की जरूरत बताई। जाहिर है कि अब प्रधानमंत्री का यह संदेश तमाम प्रान्तों खासतौर पर भाजपा शासित राज्यों के लिए भविष्य की औद्योगिक नीतियों का आधार बनेगा। प्रधानमंत्री द्वारा स्वावलंबी भारत बनाने के लक्ष्य के साथ आत्मनिर्भर भारत अभियान की घोषणा परोक्ष रूप से स्वदेशी आर्थिक क्रांति का बदला हुआ स्वरूप ही है, ये दोनों ही मोर्चों पर यानि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत दो तरह से फायदा पहुंचाएगा, जिसमें अव्वल तो देशी कम्पनियों और कुटीर उत्पादों को प्रोत्साहन मिलेगा और दूसरा परोक्ष रूप से आयात तथा विदेशी उत्पादों पर निर्भरता में कमी आएगी। हालांकि उत्तर प्रदेश वासियों के पास इस मामले में खुद पर गर्व करने का अवसर है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की औद्योगिक नीतियों की बारीकी से समीक्षा करें तो हमें "थिंक-ग्लोबल, एक्ट-लोकल" का स्वर स्पष्ट सुनाई देता है। योगी आदित्यनाथ ने ' थिंक-ग्लोबल, एक्ट-लोकल’ की सोच के अनुसार, स्थानीय कौशल को प्रोत्साहन देते हुए कई योजनाएं शुरू की हैं। बात चाहे राष्ट्रीय स्तर पर सराहना पाने वाली 'एक जनपद-एक उत्पाद' योजना हो, नदियों के तटीय क्षेत्रों में ऑर्गेनिक कृषि को प्रोत्साहित करने की नीति हो अथवा रक्षा उत्पादों के मैन्युफैक्चरिंग के लिए डिफेंस कॉरिडोर जैसा प्रोजेक्ट। योगी सरकार की हर योजना का के केंद्र में "लोकल से ग्लोबल" पहुंचने की उम्मीद परिलक्षित होती है। इन नीतियों से योगी सरकार एक तरकश से कई तीर चलाकर अलग अलग लक्ष्यों पर निशाना साधने की अपनी कोशिश में कामयाब होती दिख भी रही है।
मिसाल के तौर पर अगर एक जिला -एक उत्पाद योजना को ही लें। यह सर्वविदित है कि उत्तर प्रदेश के जनपदों के कई ऐसे उत्पाद हैं जिन्हें अगर थोड़ा प्रोत्साहन मिले तो इन्हें अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार के लायक बनाया जा सकता है। इस योजना का उद्देश्य भी यही था। स्थानीय शिल्प/कौशल एवं कला के संवर्धन के साथ संरक्षण एवं विकास करने, रोजगार एवं आय में वृद्धि, उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार, आर्थिक असमानता को दूर करने के उद्देश्य से प्रारम्भ इस योजना में स्थानीय प्रतिभाओं को समुचित प्रोत्साहन देकर उनकी क्षमता का व्यावसायिक उपयोग किया जा रहा है तथा कई नए ब्रांड विकसित किए जा सकते हैं। ब्रांडिंग पर विशेष ध्यान देकर, उत्पादों की विभिन्न बाज़ारों में पहुँच बढ़ाई जा सकती है।
इस योजना की खासियत है कि इसमें सभी उत्पादों से जुड़ी पूरी ‘प्रोसेस-चेन’ और ‘वैल्यू-चेन’ पर ध्यान दिया गया है। इन प्रयासों के द्वारा उत्पादकों और ग्राहकों के बीच सीधा संपर्क और भी सुगम हो पाया यानि सप्लाई चेन भी मजबूत हुई, यही नहीं केंद्र सरकार की स्किल इंडिया मिशन, स्टैंड-अप इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया, रोज़गार प्रोत्साहन योजना तथा ‘मुद्रा’ योजनाओं से इस योजना के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिल रही है।
इस योजना में वह क्षमता है, जिसके द्वारा अंतिम पंक्ति के लोगों को कौशल-विकास एवं रोज़गार के अवसर प्रदान करके, जमीनी स्तर पर व्यापक बदलाव लाया जा सकता है और शायद इसी कारण से योगी आदित्यनाथ ने इसे अपनी प्राथमिकता में रखा है। ऐसे हालात में जबकि विकास और कल्याण के मानदंडों पर पीछे रह गए देश के 117 आकांक्षी ज़िलों में उत्तर प्रदेश के 8 ज़िले शामिल हैं,यह योजना इन आकांक्षी ज़िलों में स्वास्थ्य एवं पोषण, शिक्षा, कौशल विकास तथा वित्तीय समावेश के मापदण्डों में सुधार लाने में भी सहायक होगी।
यानि कुल मिलाकर आसान भाषा में कहें तो अकेले ओडीओपी जैसी योजना से कौशल विकास, सहकारिता, कुटीर उद्योग, रोज़गार, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और समावेशी आर्थिक विकास आदि जैसे कई प्रक्षेत्र एक साथ बेहतरी की ओर बढ़ते दिखाई पड़ रहे। इन कोशिशों का एक परिणाम गोरखपुर के टेराकोटा शिल्प के रूप में देखा जा सकता है, जिसे हाल ही में "बौद्धिक संपदा अधिकार" का दर्जा भी मिला है। इससे शासन का भी हौसला बढ़ा और पिछले दिनों मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यहां तक कह दिया कि अबकी दीपावली में देश चीन में बनी गौरी-गणेश की प्रतिमाओं की जगह गोरखपुर टेराकोटा शिल्प की मूर्तियों को तरजीह दे। यह एक संदेश बहुत दूर तक असर करने वाला है । शायद प्रधानमंत्री ने इसी लोकल के लिए वोकल होने की ज़रूरत बताई थी, जिसके जरिये अपने उत्पादों को ग्लोबल बनाने का सपना पूरा हो सकेगा, और ऐसा होना भी चाहिए क्योंकि अब वक़्त आ गया है कि आर्थिक क्षेत्र में हम गैरों पर निर्भर होने की बजाय अपनों पर भरोसा करें। देशी माल की गुणवत्ता और देशी उद्यमियों को प्रोत्साहन देने की केंद्र सरकार की नीति आने वाले समय में भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय मंच पर दूरगामी असर डालने वाली साबित होने जा रही।
प्रधानमंत्री मोदी के पहले कार्यकाल में 'मेक इन इंडिया' नारा खासा चर्चा में रहा था। राष्ट्रीय स्तर पर क्या हुआ, इसकी विवेचना ज़रूर की जानी चाहिए लेकिन उत्तर प्रदेश में इस नारे को योगी आदित्यनाथ ने मंत्र मान लिया। प्रधानमंत्री जी द्वारा 20 हजार करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले डिफेन्स इण्डस्ट्रियल मैन्यूफैक्चरिंग कॉरीडोर पर काम शुरू हो चुका है जो रक्षा उत्पादन के लिहाज से आने वाले वर्षों में भारत की नई तस्वीर गढ़ेगा। इस एक परियोजना से करीब 2.5 लाख लोगों का रोजगार सृजन होने की उम्मीद ही नहीं है बल्कि उसके साथ साथ रक्षा प्रौद्योगिकी में निवेश आकर्षण और वैश्विक रक्षा तकनीकों के अनुसंधान तथा विकास का भी वैश्विक रूप से बड़ा मॉडल बनने की संभावना है।
राज्य सरकार किसानों की आय बढ़ाने की दिशा में तेज़ी से काम कर रही है। फ़ूड प्रोसेसिंग के क्षेत्र में निवेश लाया जा रहा है जिसका लाभ किसानों को मिलेगा। किसान सम्मान योजना से प्रदेश के लाखों किसानों को आर्थिक मदद भी दी गयी है। इसका परिणाम यह है कि कृषि के क्षेत्र में आज उत्तर प्रदेश बाकी राज्यों से काफी अच्छा उत्पादन कर रहा है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के तहत बिजनेस रिफार्म एक्शन प्लान लागू है। इससे प्रदेश 92.87 प्रतिशत स्कोर के साथ अग्रणी राज्यों में शामिल है। निवेशकों के लिए सिंगल विंडो क्लियरेंस सिस्टम, बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे, पूर्वांचल एक्सप्रेस वे, गंगा एक्सप्रेसवे जैसी परियोजनाएं उत्तर प्रदेश के मजबूत होते इंफ्रास्ट्रक्चर की बानगी हैं।
यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि प्रधानमंत्री की बातों को मानने में अन्य भाजपा शासित राज्यों की अपेक्षा उत्तर प्रदेश में काफी तत्परता रही है। 12 मई को प्रधानमंत्री ने एमएसएमई को खास तरजीह दिए जाने की बात कही और महज 48 घण्टे के भीतर योगी आदित्यनाथ ने 56,000 से अधिक एमएसएमई उद्योगों को करीब 2002 करोड़ के लोन बांट दिए। छोटे, मंझोले उद्योगों के लिए संजीवनी सरीखे इस लोन के वितरण कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि कोविड-19 से उपजे हालात का सफलतापूर्वक सामना करने में एमएसएमई की बड़ी भूमिका होगी।
वास्तव में, वैश्वीकरण के इस दौर में "आत्मनिर्भर भारत" का अर्थ आत्म केंद्रित भारत नहीं है । एक बंद अर्थव्यवस्था नहीं,बल्कि एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जो एक बड़ी छलाँग लगाने वाली है जिससे वो अपनी जरूरतों के साथ विश्व की जरूरतों को भी पूरा कर सके, अपने यहां रोजगार पैदा करने वाले मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को टेक्नोलॉजी की मदद से बढ़ावा दे सके। और यह करने के लिए हमें खुद को पहचानना होगा। अपनी विशिष्टताओं को ब्रांड बनाकर दुनिया के सामने पेश करना होगा। आज के यह बुरे हालात हमें आईना दिखाते हैं कि हम अपने पैरों की बुलंदी पर खुद को खड़ा करने की बजाय गैरों की रहमत और सोहबत पर कहीं ज़्यादा भरोसा कर रहे थे। हमें भारतीय आर्थिक स्वाभिमान और स्वावलंबन के मोर्चे पर किसी तरह का समझौता न करते हुये पूरी ताकत के साथ विश्व बाजार में धमक बनानी होगी और इसका रास्ता 'लोकल के लिए वोकल' होने के मंत्र में छिपा है। पूरा भारत उत्तर प्रदेश में इस मन्त्र के असर का अक्स देख सकता है।
हालांकि यह काम आसान नहीं है और अभी भी ज़मीनी स्तर पर बहुतेरी चुनौतियों से आये दिन सामना होता रहता है और इस बात की भी पूरी संभावना है कि आने वाले वक्त में भी नई चुनौतियां तैयार खड़ीं होंगीं पर कहा जाता है कि उड़ान के लिए पँखों की नहीं बल्कि हौसले की ज़रूरत होती है, और उत्तर प्रदेश सहित पूरे भारत का हौसला अब मजबूत होता दिख रहा है क्योंकि निर्मम तूफ़ान का सामना करने के बावजूद जलते रहने वाले दिये का आत्मविश्वास उसकी लौ की चमक से ज़ाहिर हो जाता है और ऐसी चमक हर देशवासी के चेहरे पर कमोबेश ज़रूर नज़र आ रही है।
(क्षितीज पांडेय वरिष्ठ पत्रकार है, महेंद्र कुमार सिंह स्तंभकार व सहायक आचार्य राजनीति विज्ञान गोरखपुर विश्वविद्यालय हैं।)
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