- बिना वैक्सीनेशन मरने वालों की संख्या 76 फीसद
- वैक्सीनेशन के बाद मरने वालों की संख्या सिर्फ .3 फीसद
- भारत में अब तक 55 करोड़ से अधिक डोज दिए जा चुके हैं।
कोरोना महामारी के खिलाफ देश लड़ाई लड़ रहा है। एक तरफ जहां सोशल डिस्टेंसिंग और मॉस्क हथियार हैं तो वैक्सीनेशन बड़े हथियार के तौर पर सामने आया है। अगर भारत में कोरोना वैक्सीनेशन की बात करें तो अब तक 55 करोड़ डोज दिए जा चुके हैं, इसमें सिंगल और डबल दोनों डोज शामिल हैं। अभी तक सवाल उठ रहा था कि क्या कोरोना के खिलाफ लड़ाई में वैक्सीन प्रभावी हैं तो इस संबंध में एम्स की एक रिपोर्ट आई है जिसमें बताया गया है कि जिन लोगों ने वैक्सीनेशन नहीं कराया था उसमें 76 फीसद लोगों की जान चली गई जबकि वैक्सीनेशन के बाद मौत का यह आंकड़ा सिर्फ .3 फीसद का है। इससे साबित होता है कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई में वैक्सीनेशन कितना जरूरी है।
खास है यह रिपोर्ट
इस संबंध में एम्स झज्जर ने 1800 से अधिक मरीजों पर अध्ययन किया और अपने नतीजों में पाया कि 76 फीसद मरीजों की मौत के पीछे वैक्सीनेशन ना होना बड़ी वजह थी, जबकि .3 फीसद लोगों की मौत वैक्सीनेशन के बाद हुई। इसमे खास बात यह है कि दोनों डोज लेने के बाद सिर्फ एक मरीज की मौत हुई थी। रिपोर्ट के मुताबिक वैक्सीन की पहली डोज लेने के बाद करीब 258 मरीज एडमिट हुए थे और उनमें से 48 की मौत हुई थी। इसके साथ दोनों डोज लेने वाले 31 लोग भर्ती हुए थे। अगर 1800 से अधिक एडमिशन की बात करें तो सिंगल या डबल डोज लेने के बाद सिर्फ 1.7 फीसद लोगों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। जबकि 1300 से अधिक लोग ऐसे थे कि जिन्होंने वैक्सीनेशन नहीं कराया था।
क्या कहते हैं जानकार
जानकार कहते हैं कि इन आंकड़ों से साफ है कि लोगों को बिना डरे वैक्सीनेशन कराना चाहिए। इसके साथ ही जिम्मेदार लोगों की तरफ से भी जिम्मेदार बयानों की जरूरत है। बड़े पदों पर बैठे लोग जब बिना किसी पुख्ता वजह से बयान देते हैं तो उसका नकारात्मक असर पड़ता है। जहां तक भारत में इस्तेमाल लाई जा रही है कोविशील्ड, कोवैक्सीन या स्पुतनिक वी की बात करें तो ये तीनों टीके समान रूप से प्रभावी हैं। शहरों की तुलना में गांवों में भ्रांतियां अधिक है, लिहाजा उसे दूर करने की आवश्यकता है। भारत को कोरोना से मुक्त करने के लिए कम से कम 80 फीसद आबादी का टीकाकरण होना बेहद जरूरी है।