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World earth day: धरती का वजूद बनाए रखने से ही बचेगी मानवता नहीं तो प्रकृति लेगी बदला

Updated Apr 22, 2020 | 19:48 IST

World earth day 2020: धरती के प्रति जागरूकता ही पर्याप्त नहीं है। असल बात है कि उन चीजों, उन आदतों पर अमलीजामा पहनाना भी है जिससे धरती और प्रकृति का स्वाभाविक सौंदर्य अक्षुण्ण रहें।

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तस्वीर साभार:&nbspTimes Now
वर्ल्ड अर्थ डे यानी पृथ्वी दिवस एक ऐसा आयोजन जो धरती के प्रति जागरूकता और समर्पण के तौर पर मनाया जाता है।
मुख्य बातें
  • वर्ल्ड अर्थ डे यानी पृथ्वी दिवस एक ऐसा आयोजन जो धरती के प्रति जागरूकता और समर्पण के तौर पर मनाया जाता है
  • इसकी स्थापना अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने 1970 में एक पर्यावरण शिक्षा के रूप की थी
  • वर्ल्ड अर्थ डे 192 से अधिक देशों में प्रति वर्ष मनाया जाता है

धरा,वसुधा, वसुंधरा, धरती, ये सब धरती के ही नाम हैं। धरती जो समस्त प्राणियों का क्रीड़ांगन है लेकिन कुछ क्रीड़ाएं मानवों ने ऐसी की जो प्रकृति और धरती के बिल्कुल प्रतिकूल रहीं। हमें लगा कि सभ्यता का विकास यही है और फिर हमने इसका दोहन शुरू किया। नदियां, तालाब, वन,पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, कुछ भी संजोने की बजाय हमने विकास के नाम पर विनाश के बीज बोने शुरू किए। नदियों को इस कदर हमने गंदलाया कि उनकी प्राणवायु ही खत्म हो गई। विकास की रफ्तार को इस कदर तेज कर दिया कि तालाब नेस्तनाबूत हो गए। पेड़ों को काटते चले गए और प्रकृति और पर्यावरण के लिए जो धरती का संतुलन हुआ करता है उसमें सिर्फ सुराख करते चले गए।
92 से अधिक देशों में मनाया जाता है अर्थ डे
वर्ल्ड अर्थ डे यानी पृथ्वी दिवस एक ऐसा आयोजन जो धरती के प्रति जागरूकता और समर्पण के तौर पर मनाया जाता है। इसकी स्थापना अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने 1970 में एक पर्यावरण शिक्षा के रूप की थी। अब इसे 192 से अधिक देशों में प्रति वर्ष मनाया जाता है। पहली बार यह 1970 में मनाया गया जब  करीब 20  लाख लोगो ने इकट्ठे होकर यूनियन स्कवॉयर न्यूयॉर्क सिटी में मनाया था। 1971 में अपोलो चंद्र यान की यात्रा पर गया मून ट्री का बीज जर्मिनेट होने के बाद 1976 में नासा में बोया गया।  


'धरती बोझिल हो उठी है'
पर्यावरण-प्रकृति और धरती के कुछ मर्म को टटोलने के लिए जब पर्यावरणविद राकेश खत्री से बात की तो वह भावुक हो गए। वो कहने लगे- धरती को हमने धरती रहने कहां दिया हैं। धरा में सांस लेते हैं लेकिन उसपर ना जाने कितना प्रहार करते हैं जिससे वह बोझिल हो उठी है। वर्ल्ड अर्थ डे का मतलब क्या है? फिर हमें करना क्या चाहिए? पक्षियों को लेकर लंबे समय से जागरूक करनेवाले राकेश का कहना है - धरती का कर्ज सिर्फ अर्थ डे के दिन चुकता नहीं किया जा सकता है। ठीक है आप अर्थ डे के दिन संकल्प लें और फिर उसे पूरे साल करके दिखाएं तब तो बात है। धरती का कर्ज हमेशा के लिए है और सिर्फ एक दिन या एक व्यक्ति से कुछ भी नहीं होगा।

प्लास्टिक से करें तौबा
उन्होंने कहा प्लास्टिक से तौबा करो. उसकी तरफ देखों भी नहीं। पर्यावरण के मानकों पर जो खरा उतरे बस उन्हीं का संतुलित इस्तेमाल हो बाकि सब बंद, बिल्कुल बंद। कागज का कम से कम उपयोग और डिजिटल बनने की कोशिश हो। लोकल पेड़ जरूर लगाएं ताकि उन पर निर्भर प्रजातियां पनप सकें और घर बना सकें। रीसाइक्लिंग पर पूरा जोर रहे। ई वेस्ट कम करें। सबसे जरूर पानी को बचाना है क्योकि पानी का मैन्युफैक्चर नहीं हो सकता। पानी कोई सामान नहीं जिसे आप जब चाहेंगे बना डालेंगे। 

प्रकृति रिमाइंडर देकर थक चुकी है
सबसे जरूरी है क्या आखिर। खुद को जागरूक करना। आप ही नहीं समझेंगे, आप हीं नहीं करेंगे तो फिर कौन करेगा। क्या फिर आप अपनी पीढ़ी से उम्मीद करेंगे। तो ये जरूरी कि उन्हें आप सिखाएं, समझाएं बताएं। प्रकृति,पर्यावरण,धरती के बगैर हम इंसानों का भला कहां अस्तित्व है। कोरोना वायरस जैसी प्राकृतिक आपदा से दुनिया पीड़ित है। कहीं ना कहीं तो मानव ने गलती की है जिसका अंजाम पूरा विश्व भुगत रहा है।

याद रखिये किसी भी अच्छे काम को अंजाम देने के लिये रिमाइंडर की जरूरत नहीं और प्रकृति तो रिमाइंडर देकर थक चुकी है। अब रिमांडर का समय भी नहीं बचा। बेमौसम वातावरण बदलने, समुद्र का जलस्तर बढ़ने, क्लाइमेट चेंज से भी हम नहीं चेत रहे हैं। हम सबको मिलकर तय करना होगा अपनी आदतों से धरती को संतुलित करें या फिर अपनी असंतुलित आदतों से धरती को और बोझिल बनाएं। 
नेस्टमैन ऑफ इंडिया राकेश खत्री लोगों को करते हैं जागरूक
लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में नाम दर्ज करा चुके राकेश खत्री नेस्टमैन ऑफ इंडिया के नाम से भी जाने जाते हैं। उनके कार्यों के लिए उन्हें अर्थ डे नेटवर्क ने भी सराहा और दिल्ली का अर्थ डे नेटवर्क स्टार घोषित किया। हाउस ऑफ कॉमन लंदन मैं गौरैया को बचाने पर एक इंटरनेशनल ग्रीन एप्पल अवार्ड से भी उन्हें नवाजा गया। अर्थ डे स्टार बनने की बाद इनकी जिम्मेदारी बढ़ गई है। अब यह रोजाना दिल्ली के किसी ना किसी स्कूल में वर्कशॉप करते हैं। क्लाइमेंट चेंज, गौरैया, ई-वेस्ट जैसे कई ऐसे विषय होते हैं जिनसे सैकड़ों, हजारों सवालों से यह रूबरू होते आए हैं।  

प्रकृति और पर्यावरण से करें प्यार
अर्थ हमसे किसी अर्थ की डिमांड नहीं करती। प्रकृति और पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखना हमारा दायित्व है। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि पर्यावरण के इस अटूट श्रृंखला को प्रदूषित ना होने दें। हमें अपने वजूद से प्यार है तो लिहाजा हमें प्रकृति और पर्यावरण से भी प्यार करना होगा। ताकि हम पर्यावरण और प्रकृति के खूबसूरत पहलुओं को हमेशा के लिए संजो सकें। धरती के समस्त जीवों और पर्यावरण के बीच अटूट रिश्ता है जिसकी बुनियाद है उसका वजूद। प्रकृति का दिया पर्यावरण एक ऐसा आवरण है जो धरती के सभी जीवों के जीवन का केंद्र बिंदु है।

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