- दुनिया की व्यथा बस यह है कि इंसान सीमित व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के साथ काम कर रहा है
- बात बस इतनी है कि आप इंसानी खुशहाली को कैसे संभालते हैं, वह इंसान-इंसान में अलग हो सकता है।
- अगर हर इंसान एक अधिक विशाल दूरदर्शिता से काम करता है, तब किसी चीज को सीमित करने की जरूरत नहीं होगी
सदगुरु: दुनिया की व्यथा बस यह है कि इंसान सीमित व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के साथ काम कर रहा है। महत्वाकांक्षा के बजाय अगर लोग अपनी ही दूरदर्शिता के लिए काम करें, जो उनके खुद के लिए और उनके आस-पास हर किसी के लिए जीवन की एक गहरी समझ से आई हो, तो उनकी महत्वाकांक्षा किसी दूसरे की महत्वाकांक्षा से कभी टकराव में नहीं होगी। क्योंकि बुनियादी रूप से सारे इंसान, इंसानी खुशहाली के लिए काम कर रहे हैं। बात बस इतनी है कि आप इंसानी खुशहाली को कैसे संभालते हैं, वह इंसान-इंसान में अलग हो सकता है। एक व्यक्ति के लिए इंसानी खुशहाली का मतलब बस उसी की खुशहाली हो सकता है। किसी दूसरे व्यक्ति के लिए, इसका मतलब उसका परिवार हो सकता है। एक और व्यक्ति के लिए इसका मतलब उसका समुदाय या उसका देश हो सकता है। किसी दूसरे व्यक्ति के लिए इसका मतलब पूरी मानवता हो सकता है। इस धरती पर ऐसा कोई नहीं है जिसे इंसानी खुशहाली की चिंता नहीं है। अंतर सिर्फ स्तर का है।
अगर हर इंसान एक अधिक विशाल दूरदर्शिता से काम करता है, तब किसी चीज को सीमित करने की जरूरत नहीं होगी। वैसे भी आप खुशहाली चाहते हैं। मैं बस यह कह रहा हूं कि आप अपनी इच्छाओं के प्रति कंजूस क्यों हैं? आप उदार क्यों नहीं हो जाते? आप अपनी इच्छाओं में अनंत क्यों नहीं हैं? यह सिर्फ 'मैं अच्छे से होना चाहता हूं' के बारे में नहीं है। 'मैं चाहता हूं कि पूरी दुनिया अच्छे से हो, मैं चाहता हूं कि पूरा अस्तित्व अच्छे से हो, मैं चाहता हूं कि सारे जीवन अच्छे से हों।' मैं चाहता हूं कि आप अपनी महत्वाकांक्षा को लेकर वाकई लालची हों। आपकी खुद के लिए जो भी महत्वाकांक्षा है, उसका पूरी मानवता के लिए या इस धरती पर सारे जीवन रूपों के लिए विस्तार कर दीजिए। तब इसे सीमित करने की जरूरत नहीं होगी। मैं आपको बता रहा हूं, इसे बढ़ाइए, इसे नीचे मत लाइए। अभी समस्या यह है कि आपने आप इसे नीचे ले आए हैं।
सारे यह तर्क, क्या यह एक बिजनेस वाले लिए संभव है? यह बिलकुल संभव है और न सिर्फ संभव है; इसकी जरूरत खासकर व्यापारियों के लिए है क्योंकि व्यापार विस्तार के बारे में होता है। क्या विस्तार समावेशी भावना के कारण होता है या यह इसलिए होता है क्योंकि आप कोई चीज जबरदस्ती ले लेते हैं? अगर आप कोई चीज जबरदस्ती लेते हैं, तो आप कभी अपनी पूरी क्षमता तक विस्तार नहीं करेंगे। अगर आप सीख लेते हैं कि कैसे दुनिया को वह स्वीकार कराएं, जैसी कि आप चाहते हैं कि वह हो, तो आप इसे पूरी ले सकते हैं। महत्वाकांक्षा अधिक के बारे में होती है, दूरदर्शिता सबके बारे में होती है।
भारतीय लोककथाओं में एक सुंदर कहानी है। एक बंदर एक घर में गया और उसे बादाम से भरी एक शीशी मिली। उसने अपना हाथ अंदर डाला और मुट्ठी भरकर बादाम निकालने चाहे। शीशी बहुत छोटे मुंह की थी, उसका हाथ फंस गया। बंदर को कुछ बादाम छोड़ने पड़ते, लेकिन वह महत्वाकांक्षी था तो वह छोड़ने को तैयार नहीं था। वह हाथ खींचता लेकिन हाथ बाहर नहीं निकलता था। फिर, एक बुद्धिमान बंदर ने आकर कहा, 'यह तरीका नहीं है। बादाम को छोड़ दो।' और दोनों ने मिलकर शीशी को पलट दिया और सारे बादाम बाहर गिर गए। हमें 'अधिक' से 'सारे' की ओर जाना होगा। अगर आप 'अधिक' से 'सारे' की ओर जाते हैं, तो इसका मतलब है कि आप 'महत्वाकांक्षा से दूरदर्शिता की ओर' बढ़ गए हैं।
(भारत में पचास सर्वाधिक प्रभावशाली गिने जाने वाले लोगों में, सद्गुरु एक योगी, दिव्यदर्शी, और युगदृष्टा हैं और न्यूयार्क टाइम्स ने उन्हें सबसे प्रचलित लेखक बताया है। 2017 में भारत सरकार ने सद्गुरु को उनके अनूठे और विशिष्ट कार्यों के लिए पद्मविभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया है।)