- हर व्यक्ति के लिए पहली और सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है एक आनंदमय मनुष्य बनना
- कई तरीकों से, लोगों की खुशी बाहरी स्थितियों पर निर्भर करती है
- प्रत्येक अनुभव का आपके भीतर एक रासायनिक आधार होता है
सद्गुरु, ईशा फाउण्डेशन
हर व्यक्ति के लिए पहली और सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है एक आनंदमय मनुष्य बनना। इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप जीवन में किसके पीछे जा रहे हैं, चाहे व्यापार, पैसा, परिवार, या आध्यात्मिकता, यह बस खुशी पाने का प्रयास है। आपने हमशा समझा है कि खुश होने का मतलब है कि आप वह कर पा रहे हैं, जो आप करना चाहते हैं, और जो आप बाहरी दुनिया में हासिल करना चाहते हैं। खुश और शांतिमय होना एक सफल जीवन का चरम पहलू माना जाता है, लेकिन ये जीवन का वाकई सबसे बुनियादी पहलू है।
कई तरीकों से, लोगों की खुशी बाहरी स्थितियों पर निर्भर करती है। जब आप बाहरी सिथतियों पर निर्भर हों, तो आप अपने जीवन में कभी सच्चा आनंद नहीं जानेंगे, क्योंकि बाहरी चीजों पर आपका कभी पूर्ण नियंत्रण नहीं होगा। जब आप अपने कार्यों द्वारा खुशी खोजते हैं, तो आप हमेशा बाहरी चीजों के गुलाम होते हैं। जब आप गुलाम होते हैं, तो आप हमेशा पीड़ा के किसी स्तर में रहेंगे। इससे फर्क नहीं पड़ता कि किसी व्यक्ति के पास क्या है, उसमें फिर भी कुछ और पाने की लालसा हर समय होगी। जब तक कि व्यक्ति को खुशी का आंतरिक आधार नहीं मिल जाता, वह हमेशा एक भिखारी की तरह जिएगा।
आप अपने जीवन में जिसे भी खुशी, या प्रेम, या शांति समझते या अनुभव करते हैं, उसका एक खास आंतरिक आधार होता है। आज अगर आप मानसिक शांति खो देते हैं, तो आपका डॉक्टर आपको एक गोली दे देगा। यह रसायन आपके शरीर के अंदर जाकर आपको शांत बना देता है, बस थोड़ी देर के लिए। या दूसरे शब्दों में, जिसे आप शांति कहते हैं, वह आपके भीतर एक खास तरह की रासायनिकता है। इसी तरह से, जिसे आप आनंद, या प्रेम, या पीड़ा, या डर कहते हैं, प्रत्येक अनुभव का आपके भीतर एक रासायनिक आधार होता है। योग की पूरी प्रक्रिया आपकी आंतरिकता को पूरी तरह से आपके नियंत्रण में लाने के लिए है। यह बाहरी दासता की अवस्था से आंतरिक पूर्णता की ओर, जो असीमता की अवस्था है, जाने की संभावना है। अगर आपकी आंतरिक प्रकृति असीम है, तो आपका जीवन भी असीम है। आप या तो अपनी आंखें बंद करके बैठ सकते हैं, या आप कार्य कर सकते हैं - दोनों तरह से आपका जीवन पूर्ण रहता है। यही सच्ची खुशी की अवस्था है।
पहले हमें यह जानने की जरूरत है कि हमारी पीड़ा का आधार है कि हमने स्वयं को असत्य में स्थापित किया हुआ है। जीवन की राह में कहीं हमने अपने आस-पास की चीजों के साथ पहचान बना ली है। हमने अपने शरीर और मन से पहचान जोड़ ली है। हम जो नहीं हैं, उन चीजों से पहचान तोड़ देने, और अज्ञान की धूल की परतों को गिरा देने की प्रक्रिया ही आध्यात्मिकता है, ताकि हम जान जाएं कि हम क्या नहीं हैं। जब वह पूरा हो जाता है, तो हम ऐसी चीज पर पहुंचते हैं जिसे नकारा नहीं जा सकता। यह बोध दिव्यता को पहचानना होगा, और हम देखेंगे कि दुनिया में पीड़ा का कोई कारण नहीं है।
भारत में पचास सर्वाधिक प्रभावशाली गिने जाने वाले लोगों में, सद्गुरु एक योगी, दिव्यदर्शी, और युगदृष्टा हैं और न्यूयार्क टाइम्स ने उन्हें सबसे प्रचलित लेखक बताया है। 2017 में भारत सरकार ने सद्गुरु को उनके अनूठे और विशिष्ट कार्यों के लिए पद्मविभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया है।