नई दिल्ली : भारत और चीन के बीच बीते साल अप्रैल के आखिर से ही पूर्वी लद्दाख में तनाव की स्थिति बनी हुई है। इस बीच डेपसांग, दौलत बेग ओल्डी (DBO), गलवान, पैंगोंग त्सो झील, फिंगर एरिया और डेमचोक समेत कई इलाकों का जिक्र लगातार आता रहा है। अब विवाद के करीब 9 माह बाद भारत और चीन के बीच पैंगोंग त्सो झील को लेकर अहम समझौता हुआ है, जिसमें इस बात पर सहमति बनी है कि भारत और चीन की सेनाएं पैंगोंग त्सो झील इलाके से पीछे हटेंगी और फिंगर 4 से लेकर फिंगर 8 तक का इलाका 'नो मैन लैंड्स' रहेगा। लेकिन क्या आप जानते हैं, इस इलाके का नाम फिंगर एरिया क्यों पड़ा?
इस इलाके को फिंगर एरिया क्यों बुलाया जाता है, इसे समझने के लिए लद्दाख की भौगोलिक पृष्ठभूमि पर एक नजर डालना प्रासंगिक होगा। लद्दाख अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर है तो यहां के पहाड़ी इलाके सामरिक दृष्टि से कई चुनौतियां भी पैदा करते हैं, जो कई मायनों पर दुश्मन पर बढ़त का अवसर पर भी मुहैया कराते हैं। यहां बर्फ से ढके ऊंचे पहाड़ हैं तो संकरे दर्रे भी हैं, जो हिमालय पवर्त शृंखला का हिस्सा हैं। यहां सियाचिन ग्लेशियर जैसी कई जगहें हैं, जहां सुरक्षा बलों को कड़ाके की ठंड और तेज हवा के कारण मुश्किलों का सामना भी करना पड़ता है। जैसे-जैसे ऊंचाई बढ़ती है चुनौतियां भी बढ़ती चली जाती हैं।
बेहद ऊंचाई पर है ये इलाका
ऊंचाई वाले इलाकों में जहां वजन लेकर चलने की क्षमता कम हो जाती है, वहीं चट्टानी इलाका होने की वजह से यहां बंकर बनाने में भी सुरक्षा बलों को खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। ऊंचाई वाले इन स्थानों तक सुरक्षा की दृष्टि से अहम मशीनरी को ले जाने में भी मुश्किलें पेश आती हैं। इन इलाकों की भौगोलिक संरचना कुछ इस तरह की है कि दूर से देखने पर जो इलाका समतल प्रतीत होता है, थोड़ा करीब पहुंचने पर उसकी हकीकत का अंदाजा हो जाता है। पूर्वी लद्दाख के इन्हीं ऊंचाई वाले इलाकों में फिंगर एरिया भी है, जिन्हें 1 से लेकर 8 तक की संख्या दी गई है। भारत और चीन दोनों इस इलाके को इसी नाम से बुलाते हैं।
फिंगर्स एरिया पैंगोंग त्से झील के उत्तरी किनारे पर है। पैंगोंग त्से झील जहां 14,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, वहीं फिंगर्स एरिया की ऊंचाई इससे भी कहीं अधिक है। नंगी आंखों से देखने पर ये छोटी लकीरों और चोटियों जैसी दिखाई देती हैं। पैंगोंग त्से झील के उत्तरी किनारे की रिजलाइन से ये इलाके हाथ की उंगलियों जैसे दिखते हैं। पहाड़ों पर यह उभार 8 उंगलियों जैसे नजर आते हैं, जिन्हें 1 से लेकर 8 तक का नाम दिया गया है। इनमें फिंगर 1 से लेकर फिंगर 4 तक भारत की सड़क है, जबकि चीन की सड़क फिंगर 8 तक है। लेकिन चूंकि यह इलाका विवादास्पद रहा है, इसलिए दोनों पक्ष एक-दूसरे को वहां तक आने की इजाजत नहीं देते रहे हैं।
भारत-चीन में बनी इस बात पर सहमति
अब इसी इलाके को लेकर भारत और चीन के बीच समझौता हुआ है, जिसमें तय किया गया है कि दोनों देशों की सेनाएं पैंगोंग त्सो झील इलाके से पीछे हटेंगी और फिंगर 4 से लेकर फिंगर 8 तक का इलाका 'नो मैन लैंड्स' रहेगा। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में इस बारे में जानकारी दी तो सेना ने वीडियो जारी कर पैंगोंग त्सो झील इलाके से टैंकों की वापसी की तस्दीक की। इस समझौते के अनुसार, चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) अब फिंगर एरिया 8 से और पूरब चली जाएगी, जो बीते साल अतिक्रमण करते हुए फिंगर 4 तक आ गई थी। अब इस समझौते के बाद दोनों देशों के बीच गतिरोध दूर होने की उम्मीद जताई जा रही है।
भारत और चीन की सेना के बीच कई दौर की बातचीत के बाद यह सहमति बनी है। हालांकि चीन के इरादों को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है। खासकर जिस तरह उसने कई बार सीमा पर चालबाजी की है, उसे देखते हुए भारतीय रक्षा प्रतिष्ठान अधिक सतर्कता बरत रहे हैं। इस बीच इस मसले पर सियासत भी गर्म है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि पैंगोंग त्सो में भारत का क्षेत्र फिंगर-4 तक है लेकिन अब भारतीय सेना को फिंगर-3 पर लौटने की बात कही गई है। रक्षा मंत्रालय ने उनके बयान को सिरे से खारिज किया तो बीजेपी ने इस पर पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस नेता इस मामले में गलतबयानी कर रहे हैं।