- जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाया जा चुका है।
- बीजेपी समान नागरिक संहिता की हिमायती है
- जनसंख्या नियंत्रण कानून की पक्षधर है बीजेपी
देश, आजादी का 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। 75 साल पहले देश सैकड़ों साल की गुलामी के बाद आजाद हवा को महसूस किया था। एक तरफ आजादी मिलने का जश्न था तो तरह तरह की चुनौती भी थी। देश के सामने रियासतों के विलय का मुद्दा था। ज्यादातर रियासत बिना की परेशानी के भारत संघ का हिस्सा बन चुके थे। लेकिन समस्या जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर को लेकर थी। सरदार बल्लभ भाई पटेल की कूटनीति के आगे हैदराबाद और जूनागढ़ भी भारतीय संघ का हिस्सा बन गए। समय बीतने के साथ जम्मू-कश्मीर भी भारत का हिस्सा बना लेकिन कुछ खास रियायतों के साथ। जम्मू-कश्मीर के लिए वो रियायतें बाद में विवाद का केंद्र बनीं जिसे जनसंघ ने उठाया। जनसंघ का मानना था कि भारतीय विधान के दायरे में जो अधिकारी बाकी राज्यों को मिला है उससे इतर जम्मू-कश्मीर को खास सुविधा क्यों दी जा रही है।
जब अनुच्छेद 370 खत्म हो गया
समय बीतने के साथ यानी कि 1953 में अनुच्छेद 370 के तौर पर जम्मू-कश्मीर के विषय में कुछ खास संवैधानिक अधिकार मिले हालांकि उसकी प्रकृति अस्थाई थी। समय चक्र चलता रहा और जनसंघ का भी नए रूप यानी कि भारतीय जनता के रूप में बदलाव हो चुका था। बीजेपी ने पूरजोर तरीके से आवाज बुलंद की एक देश में दो विधान का मतलब क्या है। अब सवाल यह है कि बीजेपी की इस सोच के पीछे की वजह क्या है, बीजेपी की इस सोच को विपक्षी दल विभाजनकारी क्यों मानते हैं। बीजेपी क्या इस सोच के जरिए देश के बुनियादी ढांचे को कमजोर करने की कोशिश कर रही है या बीजेपी अपनी इस सोच के जरिए उग्र राष्ट्ववाद के एजेंडे को बढ़ा रही है।
बीजेपी अपनी विचारधारा को फैलाने में कामयाब रही
इस संबंध में जानकार कहते हैं कि अगर आप देश की आजादी से लेकर 2021 के कालखंड को देखें तो जवाब खुद ब खुद मिलता है। देश को जब आजादी मिली तो लोगों ने कांग्रेस को किसी खास पार्टी के तौर पर नहीं देखा बल्कि विचार के नजरिए से देखा और कांग्रेस को सत्ता में बने रहने का भरपूर मौका भी मिला। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस ने इस देश के लिये कुछ किया ही नहीं। बीजेपी की तरफ से यह सवाल पूछा जाना शुरू हुआ कि कांग्रेस और बेहतर कर सकती थी। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। कांग्रेस की खामियों को गिनाने के लिए बीजेपी के पास इतने सारे मुद्दे आ गए कि उसमे कमियों की माला बनाकर जनता के बीच गई और समझाने का काम शुरू किया कि यह देश कांग्रेस के विचारों से नहीं बल्कि बीजेपी की विचाराधारा से ही आगे बढ़ सकता है।
2014 और 2019 के नतीजों ने की पुष्टि
2014 में आम चुनाव के जब नतीजे आए तो वो कई मायने में ऐतिहासिक साबित हुआ। 1984 के बाद देश में कोई पार्टी अपने बलबूते पर सत्ता में आई। इसके साथ ही देश की कमान कोई राष्ट्रीय स्तर का नेता नहीं बल्कि एक ऐसे शख्स ने संभाला जो दिल्ली के गलियारे से उतना परिचित नहीं था। 2014 से 2019 के कालखंड में कमियों के बाद भी उसने यह बताने की कोशिश की अगर आपके पास शक्ति है तो उसक शक्ति की ना सिर्फ पहचान होनी चाहिए बल्कि उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिले वो भी जरूरी है। बीजेपी अपने विचार को आम जनता तक पहुंचाने में कामयाब रही और उसका नतीजा 2019 के आम चुनाव में नजर भी आया।