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2 दिनों तक दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद के 9 अस्पतालों के चक्कर काटे, नहीं किया भर्ती, महिला की मौत

Updated Jun 09, 2020 | 09:24 IST

एक महिला को सांस लेने में दिक्कत होती है और 2 दिन तक उसे दिल्ली, नोएडा और गाजियाबाद के 9 अस्पतालों में एडमिट नहीं किया जाता है। बाद में मेरठ मेडिकल कॉलेज में इलाज के दौरान उसकी मौत हो जाती है।

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महिला को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी
मुख्य बातें
  • 48 साल की ममता की कहानी हमारे सिस्टम की बदहाली को बयां करती है
  • उसका बेटा और परिवार अस्पताल से अस्पताल के चक्कर लगाते रहे
  • कोरोना काल में दूसरे मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है

नई दिल्ली: कोरोना काल में हमारी चिकित्सा व्यवस्था किस तरह चरमरा रही है, इसके कई उदाहरण सामने आ रहे हैं। नोएडा, गाजियाबाद और दिल्ली के 9 अस्पतालों के चक्कर लगाने के बाद रविवार शाम मेरठ मेडिकल कॉलेज में इलाज के दौरान सांस की तकलीफ से पीड़ित 48 साल की एक महिला की मौत हो गई। महिला 2 दिनों तक अस्पतालों के चक्कर काटती रही, लेकिन उसे कहीं भर्ती नहीं किया गया।

पिछले कुछ दिनों में यह तीसरा उदाहरण है जब एनसीआर के अस्पतालों में प्रवेश न कर पाने के मरीज को इमरजेंसी हालत में भर्ती नहीं किया गया। इससे पहले नोएडा में 8 महीने की एक गर्भवती महिला को लेकर उसका परिवार 13 घंटे तक अस्पतालों के चक्कर काटता रहा लेकिन एक भी अस्पताल में उसे प्रसव के लिए जगह नहीं मिल सकी और अंतत: एंबुलेंस में ही उसकी मौत हो गई है।

नहीं मिला एक बेड

'द टाइम्स ऑफ इंडिया' की खबर के अनुसार, शनिवार की सुबह खोड़ा में प्रताप विहार कॉलोनी निवासी ममता देवी को सांस की समस्या पैदा हुई। उनका बेटा अर्जुन सिंह और कुछ रिश्तेदार उन्हें एम्बुलेंस में दिल्ली के एक अग्रणी अस्पताल में ले गए। वहां उनसे कहा गया कि कोई बेड नहीं है। अर्जुन ने पूरा दिन अपनी मां को दूसरे अस्पतालों में भर्ती कराने की कोशिश में बिताया, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।

कोरोना टेस्ट नहीं तो भर्ती नहीं

महिला के बेटे ने बताया, 'हम दिल्ली में तीन और अस्पतालों में गए। हर जगह हमें बताया गया कि कोई बिस्तर नहीं है।' इसके बाद ममता को नोएडा के मेट्रो और कैलाश अस्पतालों में ले जाया गया। लेकिन दोनों जगहों पर उनसे पूछा गया था कि क्या उनका कोविड-19 टेस्ट किया गया है, उसके बिना उन्हें भर्ती नहीं किया जाएगा।

'आपातकालीन रोगी को भर्ती नहीं कर सकते'

अर्जुन ने बताया, 'वहां से हम गाजियाबाद के एमएमजी जिला अस्पताल गए। उन्हें कुछ इंजेक्शन दिए गए और फिर उन्हें छुट्टी दे दी गई क्योंकि उनको सांस लेने की समस्या एक हद तक कम हो गई थी। जब वह एमएमजी अस्पताल में थीं, उस दौरान मैंने वैशाली और कौशाम्बी में कुछ नर्सिंग होम से पूछताछ की थी। लेकिन उन्होंने मुझे बताया कि वे आपातकालीन रोगी को भर्ती नहीं कर सकते थे क्योंकि उनके पास उपकरणों की कमी है।' उस रात ममता को घर लाया गया। 

बड़ी मुश्किल से मिली एंबुलेंस

ममता के पति बेंगलुरु में एक निजी कंपनी में काम करते हैं और तालाबंदी के कारण घर नहीं आ पाए हैं। अगली सुबह ममता को फिर से सांस लेने में समस्या होने लगी। अर्जुन ने कहा कि उसने 112 पर सरकारी एंबुलेंस के लिए कोशिश की, लेकिन वो नहीं पहुंची। एक स्थानीय राजनेता ने उन्हें एक निजी एंबुलेंस दिलाने में मदद की और ममता को फिर से एक अन्य सरकारी अस्पताल दिल्ली ले जाया गया। यहां ममता को भर्ती करने के लिए तैयार हुए, लेकिन परिवार को कथित तौर पर प्रारंभिक टेस्ट के बाद दूसरे अस्पताल में ले जाने के लिए कहा गया। अर्जुन ने कहा कि वो मरीज को कड़कड़डूमा में एक निजी अस्पताल में ले जाया गया, लेकिन उन्होंने भी कहा कि कोई बिस्तर नहीं है।

शाम 4 बजे के आसपास ममता का परिवार उन्हें फिर से MMG अस्पताल लाया। लेकिन तब तक उसकी हालत काफी बिगड़ चुकी थी। डॉक्टरों ने उसे दवाइयां दीं और मेरठ रेफर कर दिया। रविवार रात करीब 10 बजे इलाज के दौरान ममता की मौत हो गई। 
 

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