- डॉ. कोटनिस को आज भी भारत और चीन के बीच मित्रता का प्रतीक माना जाता है
- चीन में हर साल शहीदों की याद में किंगमिंग फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है
- डॉ. कोटनिस ने पहले चीनी क्रांति के दौरान और फिर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान चीन की मदद की थी
भारत के महाराष्ट्र के सोलापुर के रहने वाले द्वारकानाथ कोटनिस का जन्म एक मध्यम वर्गीय मराठी देशस्थ ऋग्वेदी ब्राह्मण परिवार में हुआ था।उनके दो भाई और पांच बहनें थीं। उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय के सेठ जी.एस. मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी की पढ़ाई की थी।
1938 में चीन पर जापानी आक्रमण के बाद, कम्युनिस्ट जनरल झू डी ने जवाहरलाल नेहरू से कुछ चिकित्सकों को चीन भेजने का अनुरोध किया था। तब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 30 जून 1938 को लोगों से इसके लिए अपील की थी। उन्होंने स्वयंसेवी डॉक्टरों की एक टीम और 22,000 रुपये का फंड इकट्ठा करके एक एम्बुलेंस भेजने की व्यवस्था की थी।
पांच डॉक्टरों में (इलाहाबाद से डॉ एम अटल, नागपुर से एम चोलकर, शोलापुर से डी कोटनिस, कलकत्ता से बीके बसु और देबेश मुखर्जी थे।सितंबर 1938 में मेडिकल मिशन टीम वापस लौटी लेकिन डॉ. कोटनिस चीन में ही रह गए, वो भारत नहीं आए। कोटनिस वहीं रह गए और उन्होंने वहां की एक नर्स से शादी भी कर ली। 1942 में उनकी मौत हो गई।
कोटनिस की मौत भले ही 1942 में हो गई लेकिन जंग के दौरान उन्होंने जिस तरह से चीन की मदद की थी, घायलों का इलाज किया था। उससे वहां के लोग और नेता उनके आगे आज भी सिर झुकाते है। माओ से-तुंग से लेकर जिनपिंग तक उनके आगे नतमस्तक दिखे हैं।
3 सितंबर 2020 को जब चीन ने जापान पर चीनी सेना की जीत का जश्न मनाया, तो चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी डॉ कोटनिस को याद किया। एक भाषण में, जिनपिंग ने कहा- "भारत से डॉक्टर कोटनिस चीन तब आए, जब उनकी सबसे ज्यादा जरूरत हमें थी।"