- राजस्थान सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ प्रस्ताव किया पारित
- इससे पहले केरल और पंजाब की राज्य सरकारें भी कर चुकी हैं ऐसा ही प्रस्ताव पारित
- राजस्थान सरकार के कदम की बीजेपी ने की आलोचना, कहा असंवैधानिक तरीके से हुआ प्रस्ताव पारित
जयपुर: केरल और पंजाब के बाद अब राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर दिया है। गुरुवार को ही राजस्थान के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने इसकी घोषणा की थी। शुक्रवार से ही राज्य सरकार का बजट सत्र शुरू हुआ है। इसके अलावा सरकार ने प्रस्ताव में कहा है कि एनपीआर 2020 में कोई भी अतिरिक्त जानकारी नहीं देनी होगी।
सांगानेर से बीजेपी विधायक अशोक लोहाटी ने सरकार के इस कदम पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, यह सरकार द्वारा एक लाया गया असंवैधानिक कदम है और इस पर कोई वोटिंग भी नहीं हुई। इन्होंने एक संकल्प प्रस्ताव लाया और बगैर वोटिंग किए हुए इसे ध्वनिमत से पारित कर दिया। यह संकल्प आधे-अधूरे तरीके से लाया गया था जिसकी भाषा एंटी नेशनल थी।'
राजस्थान विधानसभा में सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पारित होने पर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र एस शेखावत बोले: यह लोकतंत्र की हत्या करने करने जैसा है। विधानसभाएं इन प्रस्तावों को पारित करके संविधान द्वारा दी गई सीमित स्वायत्तता से परे जा रही हैं। यह देश को विभाजित करने के लिए एक साजिश है और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
इससे पहले सचिन पायलट ने कहा था, 'हर किसी को अपना विरोध जताने का अधिकार है। हमारी सरकार भी नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव लेकर आएगी।' आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल सरकार ने भी घोषणा की है कि वह 27 जनवरी को सीएए के खिलाफ प्रस्ताव लाएगी।
नागरिकता संशोधन कानून को पिछले साल 11 दिसंबर को संसद द्वारा पारित किया गया था और 10 जनवरी को अधिसूचना जारी होने के साथ ही यह प्रभावी हो गया है। इस कानून के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 तक आए अल्पसंख्यक हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है।