- राजस्थान विधानसभा के स्पीकर बोले- मैंने केवल विधायकों को जारी किया नोटिस
- मैंने कोर्ट के फैसले का सम्मान किया, लेकिन मुझे है नोटिस भेजने का अधिकार- सीपी जोशी
- प्रतिनिधि को अयोग्य ठहराने का अधिकार केवल स्पीकर को है- सीपी जोशी
जयपुर: राजस्थान में चल रहे सियासी घमासान के बीच राजस्थान विधानसभा के स्पीकर सीपी जोशी ने आज मीडिया के सामने कई सवालों के जवाब देते हुए कहा कि विधानसभा की गरिमा को बनाए रखना जरूरी है। सीपी जोशी ने मीडिया से बात करते हुए कहा, 'देश और प्रदेश की एक ऐसी समस्या के बारे में आकर्षित करना चाहता हूं जो जरूरी है। संसदीय व्यवस्था में हर किसी के रोल डिफाइन हैं कि कौन क्या काम करेगा। अयाराम गयाराम जैसी व्यवस्था के खिलाफ कानून बना। कोई भी कोर्ट तब तक इंप्लीमेंट नहीं करेगी जब तक स्पीकर फैसला ना सुना दे। यही संसदीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है। 1992 में एंटी डिफेक्शन लॉ में कोर्ट ने साफ कहा है कि स्पीकर का फैसला डिसक्वालिफिकेशन का ही होगा। उसके बाद ज्यूडिशरी कर सकती है अपनी कार्रवाई। स्पीकर को नोटिस देना होता है।'
दायर करेंगे एसएलपी
सीपी जोशी ने कहा कि कोर्ट मेरे अधिकार क्षेत्र में दखल दिया है। उन्होंने कहा, 'स्पीकर को कारण बताओ नोटिस भेजने का पूरा अधिकार है। मैंने अपने वकील से सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करने के लिए कहा है। 'स्पीकर की जिम्मेदारियों को सुप्रीम कोर्ट और संविधान द्वारा अच्छी तरह से परिभाषित किया गया है। स्पीकर के रूप में मुझे एक आवेदन मिला और इस पर जानकारी लेने के लिए, मैंने कारण बताओ नोटिस जारी किया। यदि कारण बताओ नोटिस ऑथिरिटी द्वारा जारी नहीं किया जाएगा, तो ऑथिरिटी का काम क्या है।'
उन्होंने कहा कि मैंने तो केवल विधायकों को नोटिस जारी किया था और उनका पक्ष जानना चाहा था। उन्होंने कहा कि वो कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं लेकिन प्रतिनिधि को अय़ोग्य ठहराने का अधिकार केवल स्पीकर को है। उन्होंने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में कोर्ट का दखल लोकतंत्र के लिए खतरा है। स्पीकर के अधिकार में कोर्ट दखल नहीं दे सकता है।
कोर्ट के फैसले का पूरा सम्मान
इस दौरान उन्होंने कोर्ट के पिछले कई फैसलों का हवाला दिया जिसमें उत्तराखंड और मणिपुर का फैसला शामिल था। पायलट पर निशाना साधते हुए कहा, 'उनका कोर्ट में जाना संसदीय मर्यादाओं पर चोट करने जैसा है। मैं आज भी विधानसभा अध्यक्ष की उसी भूमिका का निर्वहन कर रहा हूं जो संविधान में प्रदत्त है। मैंने महसूस किया कि कोर्ट ने जो भी फैसला किया उसका सम्मान है। लेकिन यही स्वीकार्यता का मतलब ये है कि यदि एक ऑथिरिटी को दूसरी का अतिक्रमण करती है फिर खतरा है।'