- बिहार में 28 अक्टूबर, 3 नवंबर और 7 नवंबर को तीन चरणों में होंगे चुनाव
- एनडीए में अभी सीटों का बंटवारा नहीं हुआ है, एलजेपी ज्यादा सीटों की कर रही है मांग
- एलजेपी करीब 42 सीटों पर लड़ना चाहती है चुनाव
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर एलजेपी ने अपना रास्ता तय कर लिया है। एलजेपी ने कहा कि वैचारिक मतभेद की वजह से आगामी विधानसभा चुनाव साथ नहीं लड़ेगी। राष्ट्रीय स्तर पर और लोकसभा चुनावों में, लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ मजबूत गठबंधन किया। चुनाव परिणामों के उपरांत लोक जनशक्ति पार्टी के तमाम जीते हुए विधायक प्रधानमंत्री मोदी जी के विकास मार्ग के साथ रहकर भाजपा-लोजपा सरकार बनाएंगे।
जेडीयू से तलाक लेकि बीजेपी के साथ है एलजेपी
लोकजनशक्ति पार्टी ने कहा कि बिहार में विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी और उनकी पार्टी मिलकर सरकार बनाएंगे। जिस तरह से पीएम नरेंद्र मोदी विकास के रास्ते पर आगे का सफर तय कर रहे हैं ठीक वैसे ही हम लोग भी आगे बढ़ेंगे।
जेडीयू के साथ नहीं, एलजेपी का ऐलान
एलजेपी के राष्ट्रीय महासचिव अब्दुल खालिक ने कहा कि लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) वैचारिक मतभेदों के कारण जनता दल (यूनाइटेड) के साथ गठबंधन में आगामी #BiharElections चुनाव नहीं लड़ेगी।
मांझी जब हुए इन तो दूरी और बढ़ी
एलजेपी और जेडीयू के बीच रार किसी से छिपा नहीं है। एलजेपी सांसद चिराग पासवान अक्सर नीतीश कुमार पर निशाना साधते रहे हैं। एलजेपी ने हाल ही में नीतीश कुमार के सात निश्चय का माखौल उड़ाया था। चिराग पासवान बार बार कहते हैं कि जमीन पर जितना काम दिखना चाहिए था वो नजर नहीं आ रहा है आखिर जेडीयू किसे बेवकूफ बना रही है। सवाल यह है कि चिराग पासवान की मांग क्या है। जानकार कहते हैं कि जेडीयू और बीजेपी में आधे आधे पर सहमति बनी है, एक समझौते के मुताबिक जेडीयू, जीतन राम मांझी की पार्टी को अपने कोटे से सीट देगी तो दूसरी तरफ बीजेपी, एलजेपी को सीटें देगी।
2015 को एलजेपी बना रही है सीट बंटवारे का आधार
2015 के चुनाव में एलजेपी ने 42 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। लेकिन उस समय जेडीयू, बीजेपी के साथ नहीं थी। एलजेपी 2015 को आधार बनाकर 243 में से 43 सीटें मांग रही थी। लेकिन जेडीयू की तरफ से ऐतराज जताया गया। इस तरह के इनकार के बाद एलजेपी ने एक तरह से नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। एक तरफ चिराग पासवान कहते हैं नरेंद्र मोदी से बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं। लेकिन दबाव वाली राजनीति को वो छोड़ना भी नहीं चाहते हैं।