Opinion India Ka: मध्य प्रदेश में चयनित शिक्षक अब आंदोलन कर रहे हैं और प्रदेश के मुखिया शिवराज ना तो उनकी सुध ले रहे रहे और न ही कुछ कर रहे हैं, वही शिक्षकों का एक वीडियो भी वायरल हो रहा है इनमें कुछ महिला पुलिसकर्मी बारिश में भीगती कुछ महिला शिक्षकों के मास्क उतरवाकर उनकी फोटो खींच रही हैं। एक अन्य वीडियो में पुलिस एक शिक्षक को जबरन ले जाती दिख रही है।
बीती रात जब पुलिस ने उन्हें वहां से उठाया तो एक नया विवाद शुरु हो गया। मध्य प्रदेश टूरिज्म के एक विज्ञापन की लाइन है-एमपी गजब है। तो इस रिपोर्ट को देखकर आपको लग सकता है कि वास्तव में एमपी गजब है। लेकिन, मुद्दा एमपी का नहीं बेरोजगारों का है। हद ये कि देश में लाखों नौकरियां हैं, लेकिन फिर भी बेरोजगार एक अदद नौकरी के लिए परेशान है।
मांगी नौकरी का पत्र और बदले में मिली लाठी
इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि जिन शिक्षकों को देश के भावी युवाओं को नैतिकता और कानून का पाठ पढ़ाना है, उन्हें पुलिस की
बेइज्जती इसलिए सहन करनी पड़ती है क्योंकि वो दो जून की रोटी के संघर्ष में कानून तोड़ बैठे हैं। कइयों को समझ नहीं आ रहा कि उनकी डिग्री का मतलब है क्या, और जो मध्यप्रदेश शिक्षक पात्रता परीक्षा उन्होंने पास की है, उसका मतलब क्या है। क्योंकि ये जेपी का दौर नहीं, जब छात्रों ने जेपी के पीछे खड़े होकर डिग्री गंवाई, नौकरी छोड़ी ये 89 का मंडल आंदोलन नहीं, जब वीपी के पीछे खड़े होकर लाखों छात्रों ने आरक्षण को डिग्री पर भारी पाया ये मुलायम का दौर नहीं, जब यूपी में जाति का भर्ती घोटाला डिग्री पर भारी पड़ा ।ये दौर तो कथित तौर पर युवाओं का है। और युवाओं की बदकिस्मती देखिए
सेना के तीनों अंगों में अधिकारी और गैरअधिकारी वर्ग के सवा लाख से ज्यादा पद खाली हैं लेकिन पद खाली होने से क्या होता है। क्योंकि जहां पदों को भरने के लिए इम्तिहान हो भी जाए,वहां डिग्रीधारी युवा डिग्री हाथ में लिए सरकार की चौखट पर खड़ा है कि अपाइँटमैट लैटर दे दे।
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