रबी की बुआई से ठीक पहले देश में हो रही उर्वरक संकट से निपटने के लिए रेलवे ने मालगाड़ियों के रैक बढ़ा दिए हैं। बुआई सीजन की शुरुआत में देश भर में उर्वरकों की अचानक बढ़ी मांग को देखते हुए ये फैसला लिया गया हैं। टाइम्स नाउ को मिली जानकारी के मुताबिक अब उर्वरकों की ढुलाई 40 की जगह 60 मालगाड़ियों से की जाएगी। पिछले साल की तुलना में घरेलू उर्वरक की ढुलाई बढ़ी है जहां अक्टूबर के महीने में इस साल रेलवे ने 39 रेक घरेलू उर्वरक की हर रोज ढुलाई की है, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 36 रेक का था। बीते सोमवार को रेलवे ने 1838 वैगन यानी डब्बे उर्वरक की ढुलाई की। जबकि बीते साल जबकि 25 अक्टूबर के दिन यह 1575 वैगन था।
मौजूदा समय में उर्वरक की कमी की एक बड़ी वजह आयात वाले उर्वरक की कमी है दरअसल दुनियाभर में उर्वरकों की कीमतों में भारी इजाफा हुआ है वही कोविड के बाद जैसे-जैसे इकॉनमी में सुधार हो रहा हैं उसकी वजह से मांग बढ़ी है जिससे कंटेनर की कमी आ गयी है। दूसरी तरह कई बड़े बंदरगाहों पर शिप के लिए वेटिंग टाइम बढ़ गया है। इन सारी वजहों से आयात किये जाने वाले उर्वरकों की सप्लाई पर असर पड़ा है।
देश भर में उर्वरक का सालाना 42 मिलियन मैट्रिक टन का उत्पादन है वही 14 मिलियन मेट्रिक टन बाहर से आयात किया जाता है। वही देश मे घरेलू उर्वरक में सबसे ज्यादा 38 मिलियन टन यूरिया और काम्प्लेक्स फर्टीलाइजर का उत्पादन करता है। इसका उत्पादन नेचुरल गैस की उपलब्धता और आयात किये जाने वाले कच्चे माल पर निर्भर करता है। मिनिस्ट्री ऑफ फर्टीलाइजर हर साल प्रोडक्शन और कंजप्शन को लेकर दो बार प्लान बनाती है, जिसमें कृषि और रेल की अहम भूमिका होती है। सबसे पहले कृषि मंत्रालय राज्यों से खपत के मुताबिक मांग रखती है जिसपर उर्वरक मंत्रालय मांग पूरा करने के लिए लोकल मैन्युफैक्चरिंग के साथ ही इम्पोर्ट के जरिये प्रोक्योरमेंट किया जाता है। इसकी प्लानिंग के लिए साल में 2 बार रवि और खरीफ फसलों के लिए अलग-अलग मीटिंग होती है। दरअसल रेलवे ही मूल रूप से देशभर में फर्टीलाइजर्स का ट्रांसपोर्टेशन करता है। वो हर महीने के लिए फर्टीलाइजर्स मूवमेंट प्लान बनाता है और अलग-अलग राज्यों तक पहुंचाता है। फिर राज्य सरकारें इसे जिला स्तर पर भिजवाती हैं।
भारत में यूरिया और DAP के दाम निश्चित होते हैं। इसलिए किसान ठीक जरूरत के समय इसे खरीदते हैं। जबकि उर्वरक का उत्पादन करने वाली कंपनियों के सामने समस्या ये होती है कि वो लाखों टन उर्वरक तैयार कर अपने पास नहीं रख सकतीं, सो इसे लगातार मार्केट तक भेजा जाता है। लेकिन जब इसकी मांग अचानक बढ़ जाती है तो समस्या शुरू हो जाती है। किसान पहले से खरीददारी इसलिए नहीं करते कि उन्हें पता है कि इसकी कीमत नहीं बढ़ने वाली।
जानकरों की माने तो पिछले साल लॉक डाउन की वजह से उर्वरकों की मांग कम थी और लेकिन इस साल अच्छी बारिश की वजह से भी ज्यादा पैदावार की संभावना है और इसने उर्वरकों की मांग बढ़ा दी है। वहीं इस सितंबर-अक्टूबर महीने में कोयले की कमी के कारण भी रेलवे पर ज्यादा दबाव था और इस दौरान कोयले की ढुलाई युद्ध स्तर पर की गई। रेलवे ने उर्वरकों की ढुलाई को लेकर भी अब फोकस शिफ्ट कर दी है। उम्मीद है जल्द ही इसकी मांग और आपूर्ति के अंतर को खत्म किया जा सकेगा।
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