मुंबई : यस बैंक के बाद दूसरा प्राइवेट सेक्टर बैंक लक्ष्मी विलास बैंक डूबने के कगार पर पहुंच गई है। उससे बचाने के लिए सरकार आगे आई है। सरकार ने डीबीएस इंडिया के साथ लक्ष्मी विलास बैंक के अधिग्रहण की योजना की घोषणा की। आरबीआई ने लक्ष्मी विलास बैंक को डीबीएस बैंक के साथ विलय की बात कही और मसौदा योजना भी सार्वजनिक की है। आरबीआई ने कहा कि विलय योजना को मंजूरी मिलने पर इसकी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए डीबीएस बैंक इंडिया लिमिटेड (डीबीआईएल) में सिंगापुर का डीबीएस बैंक 2,500 करोड़ रुपए (46.3 करोड़ सिंगापुर डॉलर) लगाएगा। इसकी फंडिंग पूरी तरह से डीबीएस के मौजूदा संसाधनों से की जाएगी। इस तरह बैंक को बचाने का प्लान तैयार किया गया है।
आरबीआई ने कहा कि इसके अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। इसलिए बैकिंग नियमन अधिनियम 1949 की धारा 45 के तहत केंद्र सरकार ने प्राइवेट सेक्टर के बैंक पर पाबंदी लगाई है। बयान में कहा गया है कि रिजर्व बैंक के परामर्श पर विचार करने के बाद केंद्र सरकार ने मंगलवार से बैंक पर 30 दिन के लिए पाबंदियां लगाई हैं। यस बैंक के बाद इस साल मुश्किलों में फंसने वाला लक्ष्मी विलास बैंक प्राइवेट सेक्टर का दूसरा बैंक बन गया है। यस बैंक के ऊपर मार्च में पाबंदियां लगाई गई थीं। सरकार ने तब भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की मदद से यस बैंक को उबारा था। एसबीआई ने यस बैंक की 45% हिस्सेदारी के बदले 7,250 करोड़ रुपए लगाया था।
आरबीआई ने मंगलवार को एक बयान में कहा कि बैंक की ओर से विश्वसनीय पुनरोद्धार योजना नहीं पेश करने की स्थिति में जमाधारकों के हित में यह फैसला किया गया है। साथ ही बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र की स्थिरिता के हितों का भी ख्याल रखा गया है। रिजर्व बैंक ने लक्ष्मी विलास बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर को भी हटा दिया है और केनरा बैंक के पूर्व गैर-कार्यकारी चेयरमैन टीएन मनोहरन को 30 दिनों के लिए उसका प्रशासक नियुक्त किया है।
गौर हो कि सरकार ने वित्तीय संकट से गुजर रहे प्राइवेट सेक्टर के लक्ष्मी विलास बैंक पर 30 दिनों के लिए पाबंदियां लगा दी है। इस पाबंदी के बाद बैंक के खाताधारक ज्यादा से ज्यादा 25,000 रुपए तक निकल पाएंगे। बैंक की खस्ता वित्तीय हालत को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की सलाह के बाद सरकार ने यह कदम उठाया है। आदेश के मुताबिक लक्ष्मी विलास बैंक रिजर्व बैंक की अनुमति के बिना बचत, चालू या किसी तरह के जमा खाते से किसी जमाकर्ता को कुल मिलाकर 25,000 रुपए से अधिक का भुगतान नहीं करेगा।
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