आर्थिक दृष्टि से अब तक का सबसे मुश्किल वक्त अब अपनी समाप्ति की ओर है। हम आखिरी तिमाही में हैं; इसे टैक्स-सेविंग का समय माना जाता है जिसमें वेतनभोगी व्यक्ति अपनी टैक्सेबल इनकम को कम करने के तरीके तलाशता है। हालांकि, कई लोग अपने टैक्स-सेविंग वाले काम अंतिम समय के लिए टाल देते हैं। इससे गलतियां होने की संभावना है जो उस वर्ष के लिए आपकी फाइनल टैक्स-सेविंग को प्रभावित कर सकता है।
टैक्स-प्लानिंग के लिए समुचित योजना बनाने और समय देने की आवश्यकता होती है। आदर्श रूप से, वित्तीय वर्ष के आरंभ में ही टैक्स-सेविंग की प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिए। यह न केवल आपको समय-समय पर अपने निवेश फैसलों की समीक्षा करने का समय देता है, बल्कि इससे आप मिलने वाले रिटर्न और जुड़े जोखिमों के बारे में सोच पाते हैं, और त्रुटियों को समय से सुधार भी पाते हैं। इसके अतिरिक्त, अंतिम तिमाही में बड़ी राशि का भुगतान कर निवेश और बीमा करने की तुलना में 12 महीने की अवधि में टैक्स-सेविंग की दिशा में छोटे कदम उठाना आसान है।
इस प्रकार, अंतिम मिनट में टैक्स-सेविंग के कारण होने वाली समस्याओं से बचने के लिए, यह बेहतर होगा कि टैक्स-सेविंग प्रक्रिया को समझने में अपना समय निवेश करें। इस लेख में, हम ऐसी ही कुछ सामान्य गलतियों और उनसे बचने के तरीकों पर चर्चा करने वाले हैं।
अंतिम-मिनट की भगदड़ में, लोग अक्सर ऐसा निवेश चुनते हैं जो सिर्फ टैक्स-सेविंग के लिए होता है लेकिन उनके वित्तीय लक्ष्यों के अनुरूप नहीं होता है। उदाहरण के लिए, कई निवेशक अपने निवेश पर सालाना रिटर्न की कंपाउन्ड (चक्रवृद्धि) दर नहीं पूछते हैं। अगरर आपका निवेश महंगाई को हराने वाला नहीं है, तो सिर्फ अपना टैक्स बचाने के लिए इसे खरीदना कहीं से भी उचित नहीं है। आप ऐसे निवेश खरीदकर स्वयं को धोखा न दें जिनसे टैक्स की बचत तो होती है लेकिन आपके पैसे में कोई बढ़ोतरी नहीं होती।
जब आप अपने निवेश को ध्यान में रख कर टैक्स-सेविंग करते हैं, तो आप अपना सारा पैसा एक ही विकल्प में या एक ही तरह के कई विकल्पों में लगाते हैं। अच्छी निवेश रणनीति वह है जिसमें निवेश को डाइवर्सिफाई किया जाए, जिसका आसान अर्थ है- बेहतर रिटर्न और लिक्विडिटी के लिए कई निवेश में पैसे लगाना। आप टर्म इंश्योरेंस, पब्लिक प्रोविडेंट फंड (पीपीएफ), नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट (एनएससी) और इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ईएलएसएस) जैसे डेब्ट, इक्विटी और इंश्योरेंस प्रोडक्ट के बीच सही संतुलन पा सकते हैं।
इंश्योरेंस वह सुरक्षा घेरा है जो आपके असामयिक निधन के बाद आपके परिवार को सुरक्षित रखता है। टैक्स-सेविंग का समय जब समाप्त होने वाला होता है, तो लोग अक्सर टैक्स बचाने के लिए इंश्योरेंस खरीदते हैं। नतीजतन, वे ऐसी पॉलिसी खरीदते हैं जो उन्हें पर्याप्त रूप से कवर नहीं करती हैं, और संभवतः ये लंबे समय में निवेशकों के वित्तीय हित के अनुकूल भी नहीं हो सकती हैं। इसलिए, आप इंश्योरेंस न सिर्फ धारा 80सी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए खरीदें, बल्कि मुख्य रूप से इस बात को ध्यान में रख कर खरीदें कि यह आपके आश्रितों की सुरक्षा को सुनिश्चित करता हो।
आपको अपनी उम्र, जोखिम उठाने और सहने की क्षमता के अनुसार निवेश करना चाहिए। यहां जोखिम उठाने की क्षमता से आशय जोखिम लेने की आपकी इच्छा से है, जबकि जोखिम सहने की क्षमता यह बताती है कि आप किस हद तक जोखिम सह सकते हैं। जोखिम उठाने की आपकी क्षमता आपकी उम्र व आय पर आधारित होती है, वहीं जोखिम सहने की आपकी क्षमता आपके वास्तविक खर्च, बचत, इंश्योरेंस, देनदारियों आदि पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए, अगर आपने अपने सभी लोन चुका दिए हैं और आपके पास पर्याप्त इंश्योरेंस कवर है, तो आपके पास संभवतः जोखिम उठाने और सहने की क्षमता अधिक है। एक युवा वेतनभोगी पीपीएफ जैसे कम जोखिम वाले डेब्ट इंस्ट्रूमेंट की तुलना में बेहतर पूंजी वृद्धि के लिए ईएलएसएस फंड जोखिम भरे निवेश विकल्पों पर विचार कर सकता है, जबकि रिटायरमेंट के करीब पहुंचने वाले व्यक्ति के लिए अपनी पूंजी की सुरक्षा के मद्देनजर एनएससी या पीपीएफ जैसे विकल्पों में निवेश करना बेहतर हो सकता है।
धारा 80सी, टैक्स-कटौती का एक लोकप्रिय विकल्प है। टैक्स की बचत करते समय, लोग अक्सर धारा 80सी पर ध्यान केंद्रित करते हैं और अन्य उपलब्ध कटौतियों को अनदेखा कर बैठते हैं। 80सी के अलावा, धारा 24, 80डी, 80जी और 80ई जैसी विभिन्न धाराओं में भी कटौतियां उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए, आप धारा 80डी के तहत स्वयं, जीवनसाथी, बच्चों और माता-पिता के निमित्त भुगतान किए गए हेल्थ प्रीमियम पर कटौती का दावा कर सकते हैं। आयकर अधिनियम की धारा 80जी के तहत आपको चैरिटेबल संस्थाओं और राजनीतिक दलों को किए गए दान के लिए कटौती का विकल्प मिलता है। सुनिश्चित करें कि आप अपनी टैक्स देनदारी को कम करने के लिए उन सभी पात्र कटौतियों से परिचित हैं।
अंत में,
इन सब के अलावा, अपनी टैक्स देनदारी को जानने के लिए अपने सैलरी स्ट्रक्चर और टैक्सेबल इनकम को समझें। मानक कटौतियों, घर किराया भत्ते से जुड़ी कटौतियों, बच्चों की स्कूल फीस पर छूट, होम लोन कटौतियों, प्रोविडेंट फंड आदि के बारे में भी जानें ताकि आप अपनी टैक्सेबल इनकम में किए जाने वाले एडजस्टमेंट कर सकें। इस महत्वपूर्ण फैक्टर पर विचार करने के बाद ही टैक्स-सेविंग निवेश की दिशा में आगे बढ़ें।
इस लेख के लेखक, BankBazaar.com के CEO आदिल शेट्टी हैं)
(डिस्क्लेमर: यह जानकारी एक्सपर्ट की रिपोर्ट के आधार पर दी जा रही है। बाजार जोखिमों के अधीन होते हैं, इसलिए निवेश के पहले अपने स्तर पर सलाह लें।) ( ये लेख सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसको निवेश से जुड़ी, वित्तीय या दूसरी सलाह न माना जाए)
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