नई दिल्ली। आज से 101 साल पहले अमृतसर में एक ऐसी घटना घटी थी जिसकी टीस आज भी कायम है। 13 अप्रैल की तारीख जब दस्तक देती है तो न चाहते हुए वो खौफनाक मंजर आंखों के सामने से गुजर जाता है जिसमें खून आंखों के सामने पसरा नजर आता है तो बच्चों, युवा और बुजुर्गों और महिलाओं की चीख कानों में गूंजती रहती है। जलियांवाल के उस छोटे से बाग में हजारों की संख्या में लोग बैसाखी के मौके पर जुटे हुए थे। लेकिन ब्रितानी हुकुमत को लग रहा था कि लोगों की भीड़ रौलेट एक्ट की नाफरमानी कर रही है। पंजाब के गवर्नर ओ डायर ने आदेश दिया कि विरोध के सुर को सख्ती से कुचल दिया जाए, जबकि हकीकत में भीड़ का कोई भी हिस्सा रौलेट एक्ट के बारे में बात भी नहीं कर रहा था।
संभलने का मौका तक नहीं मिला
गवर्नर के आदेश पर डायर उस जगह पहुंचा और बोला कि शहर में धारा 144 लागू है, इस लाइन के खत्म होते ही उसने अंधाधूंध गोलियां बरसानी शुरू कर दी। इस काम के लिए उसने ज्यादातर अंग्रेज सिपाहियों का इस्तेमाल किया था। कहा जाता है कि जब सिपाहियों की बंदूकों में गोलियां खत्म हो गईं तो नरसंहार रुका। जलियांवाला बाग दरअसल कोई बाग नहीं था। बल्कि चारों तरफ से इमारतों से घिरा हुआ छोटा सा मैदान था। उस मैदान से निकलने के लिए संकरी गली थी। मैदान में एक कुआं था। जब अंग्रेजों की तरफ से गोलियां चलनी शुरू हुई तो लोगों में भगदड़ मच गई और लोग कुएं में कूदने लगे थे।
ब्रिटिश सरकार की चूलें हिल गईं
इस घटना का असर पूरे देश में दिखाई दिया। वाइसरॉय की काउंसिल से कई सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया। महात्मा गांधी ने अपनी उपाधि वापस कर दी। रविंद्रनाथ टैगोर ने नोबल पुरस्कार को लौटा दिया जो उन्हें गीतांजलि के लिए मिला था। कांग्रेस के विरोध के बाद इस घटना की जांच के लिए हंटर कमीशन बनाया गया। कमीशन ने ब्रिटिश सरकार को क्लीन चिट दे दिया। लेकिन जनरल डायर की आलोचना की। कमीशन ने माना कि डायर जैसी सोच किसी की नहीं थी। बाद में डायर ने भी अपनी गलती स्वीकारी थी। इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विरोध कि जिस लहर ने जन्म दिया था उसने आगे के रास्ते को प्रशस्त कर दिया।
Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।