कानपुर। 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस क्यों मनाया जाता है। इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए हमें 1826 के उस वर्ष की तरफ चलना होगा जब भारत अंग्रेजों की गुलामी में जकड़ा था। समाचार पत्रों को लेक अंग्रेजी सरकार मुखर थी। लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी की मनमानी के बारे में लेख लिखे जाते थे। 30 मई 1826 को हिंदी भाषा में पंडित युगर किशोर त्रिवेदी ने उदन्त मार्तंड समाचार पत्र निकालना शुरु किया। हिंदी का यह समाचार पत्र अंग्रेजी सरकार के दमन के खिलाफ आवाज उठाता था और उसका असर यह हुआ कि इसे तरह तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
तेवर के चलते फंड मिलने में थी परेशानी
उदन्त मार्तंड का 1827 में प्रकाशन बंद करना पड़ा। पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने इसे कोलकाता से साप्ताहिक पत्रिका के तौर पर शुरू किया था। इस समाचार पत्र के पहले अंक की 500 प्रतियां छापी गई। लेकिन उसे पाठक नहीं मिले। संपादक जुगल किशोर शुक्ल इसे कोलकाता से आगे भी ले जाना चाहता था लेकिन डाक दर ज्यादा होने से ऐसा करना संभव नहीं हो पाता था। उन्होंने सरकार से डाक दर कम करने की अपील की हालांकि उसे सरकार ने मानने से इंकार कर दिया था।
27 साल बाद 1854 में फिर शुरू हुआ हिंदी समाचार पत्र
उदन्त मार्तंड का प्रकाशन बंद होने के बाद 27 साल तक लंबा इंतजार करना पड़ा। 27 वर्ष बाद वर्ष 1854 में पहला दैनिक समाचार पत्र 'समाचर सुधावर्षण' का प्रकाशन शुरू हुआ। उदन्त मार्तंड के बारे में खास बात यह थी कि इस समाचार पत्र के रास्ते में अलग अलग तरह की मुसीबतें आईं। लेकिन अपने धार और तेवर को कम नहीं किया। ईस्ट इंडिया कंपनी की तरफ से अंग्रेजी पेपरों को प्रोत्साहन मिलता था। लेकिन क्षेत्रीय भाषाओं के अखबारों को तमाम तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता था।
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