अबुजर कमालुद्दीन/पटना : जिस राज्य में विश्व के पहले गणतंत्र की स्थापना हुई हो वो राज्य आज भारत देश का सबसे पिछड़ा राज्य है। इससे ज्यादा दुर्भाग्य की बात नहीं होगी। एतिहासिक प्रमाण यह बताते हैं कि बिहार के जिला वैशाली में ही विश्व के पहले गणतंत्र की स्थापना हुई थी। आज यह राज्य भारत के सभी राज्यों के मुकाबले में लगभग हर चीज में पिछड़ा हुआ है। लचर शिक्षा व्यवस्था ने इस राज्य को बदहाल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। फिर भी यहाँ के छात्र अपनी लगन और मेहनत के बलबूते यूपीएससी की परीक्षा में अपना परचम लहराते आए हैं। एक जमाने से सिविल सेवा में बिहार का बोलबाला रहा है। सिस्टम का हिस्सा होने के बावजूद बिहार के लोग इस राज्य की किस्मत की लकीरों को नहीं बदल पाए।
IAS की फैक्ट्री है बिहार
आपको यह जानकर हैरानी होगी के बिहार में 2.87 लाख व्यक्ति में से एक व्यक्ति IAS बनता है। वहीं देश में हर बारहवां आईएएस अधिकारी बिहारी है। अगर आप इस समय कुल आइएएस कैडर की बात करेंगे तो करीब 4964 में से 416 आईएएस अफसर बिहार से हैं। यह आंकड़े तब इतने ज्यादा हैं जब पिछले बीस वर्षों में सिविल सेवा में बिहार का दबदबा कम हुआ है। बीते 10 सालों में करीब 25 प्रतिशत आइएएस का संबंध बिहार से रहा है।
बिहार के छात्रों को सिविल सेवा से क्यों है लगाव और क्या है कामयाबी का रहस्य
लालू यादव के राज को आमतौर पर बिहार में जंगलराज के तौर पर याद किया जाता है। जंगलराज के उस दौर में अफसरशाही भी अपने चरम पर थी। लाल बत्ती और एंबेसडर कार की हनक सर पर सवार थी। यह वो दौर था जब बिहार के छात्र पद और पॉवर के पीछे खूब भागे। इसका परिणाम भी सिविल सेवा की परीक्षा में देखने को मिला। आईएएस अफसर बनने के बाद सुरक्षा और देश की सेवा करने का मौका दोनों की गारंटी थी। राजनीतिक और सामाजिक सूझबूझ में तेज बिहारियों के लिए यह काम आसान था। अखबार और चाय पर चर्चा बिहारियों को मानसिक रूप से सिविल सेवा के लिए तैयार कर देती है। सामान्य ज्ञान के साथ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों में दिलचस्पी भी इनके लिए कामयाबी के द्वार खोल देती है। परिणाम यह है कि बीते 20 सालों में 3655 अफसरों की नियुक्ति हुई जिसमें 251 बिहार से थे।
खनिज संपदा से धनी राज्य की झोली अचानक कैसे हो गई खाली
देश की आजादी के बाद बिहार की पहचान खनिज संपदा से परिपूर्ण राज्य के रूप में होती थी। कोयला, बॉक्साइट तथा लोहे का 50 प्रतिशत, तांबा सौ प्रतिशत बिहार में पाया जाता था। लेकिन इसका लाभ भी दूसरे राज्यों को मिलता रहा क्योंकि इन खनिज और रसायनों से जुड़े मुख्यालय (दफ्तर) बिहार से बाहर थे। इसके बाद 15 नवंबर 2000 को झारखंड को बिहार से अलग किया गया और बिहार ने अपनी खनिज संपदा को खो दिया। फिर भी बिहार के पास यूवा वर्ग की एक बड़ी आबादी थी। लेकिन बिहार सरकार की उदासीनता ने इस राज्य को कई वर्ष पीछे धकेल दिया। पहले 15 साल लालू-राबड़ी शासन ने राज्य को शुन्य पर लाकर खड़ा कर दिया। नीतीश सरकार भी अपने पंद्रह साल के शासन में राज्य के अंदर मूलभूत सुविधाओं में कोई बड़ा बदलाव करने में नाकाम रही।
क्या है बिहार के पिछड़ेपन की वजह?
अपने नेताओं की गलत कार्यशैली ने बिहार को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया है। वहीं केंद्र सरकार की अनदेखी ने इस आग में घी का काम किया है। बिहार के पिछड़ेपन के कई वाजिब कारण है-
जनसंख्या
आप बिहार की जनसंख्या का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि जब सरकार ने जनसंख्या पर नियंत्रण करने के लिए विभिन्न प्रकार के अभियान चलाए तो पूरे देश में प्रजनन दर में 23 प्रतिशत की गिरावट आई वहीं बिहार में यह गिरावट केवल 7.8 प्रतिशत दर्ज की गई। चौथे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार देश का प्रजनन दर 2.18 प्रतिशत और बिहार का 3.4 प्रतिशत है। बिहार में 42 फीसदी बच्चीयों की शादी 18 वर्ष की उम्र से पहले हो जाती है। जनसंख्या का सबसे बड़ा दबाव मुलभूत सुविधाओं पर पड़ता है।
खनिज एवं उघोग
लालू-राबड़ी के पंद्रह साल के शासनकाल में बिहार के उघोगों की हालत पूरी तरह से चरमरा गई। क्राइम दर अधिक होने कि वजह से कोई भी बड़ा उघोगपति बिहार में निवेश को तैयार नहीं हुआ। राज्य के इंडस्ट्रियल इलकों के हालात बद से बदतर हो गए। बिजली आपूर्ति भी इनकी बर्बादी का एक बड़ा कारण बना। बीते 30 सालों में अनगिनत सरकारी और ग़ैरसरकारी कारखानों पर सरकार की अनदेखी की वजह से ताला लटक गया। समस्तीपुर के जूट मिल से लेकर दरभंगा का अशोक पेपर मिल इसका जीता जागता उदाहरण है। 2011-12 मूल्यों (फीसदी) पर सकल मूल के विभिन्न क्षेत्रों की हिस्सेदारी पर 2014-15 में आई रिपोर्ट के अनुसार बिहार में 19 प्रतिशत लोग कृषि, 19 प्रतिशत उघोग और 63 प्रतिशत लोग विभिन्न सेवाओं में अपना योगदान दे रहे थे।
बुनियादी सुविधाएं
बिहार में स्वास्थ्य सुविधाओं का अंदाजा लगाना है तो आप अप्रैल 2020 में सामने आई उस वीडियो को याद कीजिये जब एक माँ अपने तीन साल के मृत बेटे के मुर्दा शरीर को लेकर तीन किलोमीटर से ज्यादा पैदल चली थी। नवजात शिशुओं की मौत के मामले में बिहार चौथे पायदान पर है। सड़क की हालत ऐसी है कि बिहार में सालाना करीब दस हजार सड़क दुर्घटना दर्ज की जाती है। बिहार की शिक्षा व्यवस्था को आप रूबी रॉय के टॉपर घोटाले से याद कर सकते हैं। बिहार का कोई भी विश्वविद्यालय शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी टॉप विश्वविद्यालयों की सूची में शामिल नहीं है।
गरीबी
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि बिहार देश का सबसे गरीब राज्य है। संयुक्त राष्ट्रसंघ की ओर से जारी वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (ग्लोबल मल्टी डाइमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स - एमपीआई) के अनुसार बिहार देश का सबसे गरीब राज्य है। स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर पर आधारित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार के 38 ज़िले में से 11 जिले में हर 10 में से 6 व्यक्ति गरीबी रेखा के निचे जीवन व्यतीत करता है। अररिया और मधेपुरा जिले में यह आंकड़ा 7 तक पहुंच जाता है।तेंदुलकर कमीटी की 2011-12 की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 33.17 फीसदी लोग गरीबी रेखा से निचे जिंदगी गुजारते हैं।
उपेक्षा
बिहार बीते कई सालों से विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रहा है। बिहार के करीब पंद्रह जिले बाढ़ प्रभावित हैं। प्रत्येक वर्ष आने वाली बाढ़ से बिहार को करोड़ों रुपये का नुकसान होता है। बाढ़ के खत्म हो जाने के बाद स्कूल, अस्पताल, सड़क ओर मकान के पुनर्निर्माण में करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। नुकसान के अनुरूप केंद्र सरकार से उतनी मदद नहीं मिलती है। विशेष राज्य का दर्जा मिलने से बिहार को प्रत्येक वर्ष 90 प्रतिशत अनुदान प्राप्त होगा। इसके अतिरिक्त विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को एक्साइज, कस्टम, कॉर्पोरेट, इनकम टैक्स में भी छूट मिलती है।
बिहार की प्रतिभा का डंका देश विदेश हर जगह बज रहा है। यह इस राज्य की बदकिस्मती है कि भ्रष्टाचार और अपने ही नेताओं के सौतेले रवैये की वजह से यह राज्य दूसरे राज्यों की तुलना में बहुत पीछे है। जिस राज्य से गांधीजी ने आजादी के आंदोलन की शुरुआत की वो आज आजादी के 73 साल बाद भी देश का सबसे गरीब राज्य है।
(डिस्क्लेमर-लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं, टाइम्स नेटवर्क इन विचारों से इत्तेफाक नहीं रखता।)
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