शुक्रवार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत सौभाग्य प्रदान करने वाला होता है। 27 नवंंबर यानी आज इस व्रत को करने से मनुष्य को सभी संकटों से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। प्रदोष-व्रत प्रत्येक मास की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। दिन यानी वार के अनुसार प्रदोष-व्रत के महत्व में और भी अधिक वृद्धि हो जाती है। वार के अनुसार प्रदोष व्रत का नाम भी होता है, सोमवार दिन होने वाला प्रदोष-व्रत सोम प्रदोष, मंगलवार के दिन होने वाला प्रदोष-व्रत भौम प्रदोष व्रत कहलाता है। हर प्रदोष व्रत का वार के अनुसार फल भी मिलता है। प्रदोष व्रत वाले दिन भगवान शिव का षोडषोपचार पूजन करना चाहिए। दिन में केवल फलाहार ग्रहण कर प्रदोषकाल में भगवान शिव का अभिषेक पूजन कर व्रत का पारण करना चाहिए।
इस विधि से करें प्रदोष व्रत
सुबह स्नान के बाद सूर्यास्त के बाद एक बार फिर स्नान कर शिवजी का षोडषोपचार से पूजन करें। इसके बाद नैवेद्य में जौ का सत्तू, घी एवं शकर का भोग लगाएं और इसके बाद आठों दिशाओं में 8 दीपक रखकर प्रत्येक की स्थापना कर उन्हें 8 बार नमस्कार करें। फिर नंदीश्वर को जल व दूर्वा चढ़ाने के बाद शिव-पार्वती समेत उनकी पूजा करें। इस दिन नमक का त्याग करना चाहिए।
प्रदोष काल का जानें महत्व
प्रदोष-व्रत में प्रदोषकाल का बहुत महत्व होता है। प्रदोष वाले दिन प्रदोषकाल में ही भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। प्रदोषकाल सूर्यास्त से 2 घड़ी (48 मिनट) तक रहता है। यानी पूजा सूर्यास्त से 2 घड़ी पूर्व व सूर्यास्त से 2 घड़ी पश्चात तक के बीच कर लेनी चाहिए।
वार के अनुसार जानें प्रदोष व्रत का फल
मनुष्य अपनी मनोकामना के अनुसार भी प्रदोष व्रत कर सकता है। हालांकि हर माह प्रदोष व्रत करने से अपने आप सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
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