नई दिल्ली: काफी मशक्कत के बाद अफगानिस्तान में आखिरकार सरकार का गठन हो गया है। नई कार्यवाहक सरकार में पाकिस्तान और उसके आईएसआई (ISI)की छाप साफ तौर पर दिखती है। जिसका सीधा मतलब है कि तालिबान की नई सरकार भारत के लिए आने वाले दिनों में चुनौती बन सकती है। सरकार की कमान आतंकवादी और रहबरी-शूरा काउंसिल के प्रमुख मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद के हाथों में होगी। वह अफगानिस्तान के प्रधान मंत्री बनाए गए हैं। अखुंद वहीं हैं जिसने बामियान में यूनेस्को की धरोहर भगवान बुद्ध की मूर्ति तुड़वाई थी।
आतंकी संगठन हक्कानी नेटवर्क का प्रभाव
इसके अलावा नई सरकार में हक्कानी नेटवर्क का भी प्रभाव दिखता है। जिसके सीधे तौर पर आतंकवादी संगठन अलकायदा से संबंध हैं। हक्कानी परिवार से ही सिराजुद्दीन हक्कानी को गृह मंत्री बनाया गया है। सिराजुद्दीन हक्कानी के पास अफगानिस्तान की आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी के साथ-साथ उसके 34 प्रांतों में गवर्नर चुनने की जिम्मेदारी होगी। सिराजुद्दीन वहीं आतंकवादी है, जिसके ऊपर अमेरिका ने 50 लाख डॉलर (करीब 36 करोड़ रुपये) का इनाम रखा हुआ है। और वह अमेरिका के संघीय जांच ब्यूरो (FBI) की 'मोस्ट वांटेड' की सूची में है।
तालिबान को अफगानिस्तान में सत्ता मिलने में अमेरिका भी जिम्मेदार रहा है, इसी विरोधाभास को देखते हुए रिपब्लिकन नेता निकी हेली ने अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन पर हमला बोला है। उन्होंने तंज भरे लहजे में एक ट्वीट में कहा, 'तालिबान के नियंत्रण वाले अफगानिस्तान की नई सरकार का गृह मंत्री एक आतंकी है, जो FBI की मोस्ट वांटेड लिस्ट में शामिल है। थैंक्स बाइडेन।' जाहिर है इस तरह की सरकार दुनिया में शायद ही कभी देखी गई हो, जिसमें आतंकियों को ही कमान मिल गई है।
भारत के प्रमुख रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी ने भी ट्वीट कर लिखा है "संयुक्त राष्ट्र ने जिसे आतंकवादियों की सूची में शामिल किया है, जिसने बुद्ध की मूर्ति तुड़वाई, वो अफगानिस्तान का प्रधानमंत्री होगा। जिस सिराजुद्दीन हक्कानी को गृह मंत्री बनाया गया है, वो कुख्यात हक्कानी नेटवर्क का है और हम कह रहे हैं कि तालिबान अब पहले वाला नहीं है।"
भारत को झटका
नई सरकार में आतंकवादी संगठन हक्कानी नेटवर्क और कंधार केंद्रित तालिबान समूह का दबदबा है। तालिबान की नई कैबिनेट में 33 में से 20 कंधार केंद्रित तालिबान समूह और हक्कानी नेटवर्क के लोग हैं। उनका पाकिस्तान से कैसे संबंध हैं, इस बात का खुलासा खुद पाकिस्तान के एक पत्रकार ने किया है। अखबार 'इंटरनेशनल द न्यूज़' के पत्रकार जियाउर रहमान ने तालिबान की नई सरकार पर ट्वीट कर कहा है, ''तालिबान की अंतरिम सरकार में कम से कम छह ऐसे मंत्री हैं जिन्होंने पाकिस्तान के जामिया हक्कानिया सेमीनरी (अकोरा खट्टक) से पढ़ाई की है ।''
कार्यवाहक सरकार में मुल्ला बरादर को उप प्रधानमंत्री बनाया गया है। हालांकि पहले यह उम्मीद जताई रही थी कि उन्हें अफगानिस्तान की कमान मिलेगी। क्योंकि दोहा स्थित जिस तालिबान ग्रुप ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वार्ता, उन्ही के नेतृत्व में की जा रही थी। और इस ग्रुप ने नई दिल्ली से भी संपर्क साधा था। लेकिन नई सरकार में उसे किनारे कर दिया गया है।
सिराजु्द्दीन हक्कानी भारतीय दूतावास पर हमले का मास्टमाइंड
यह वही आतंकी है जिसने 7 जुलाई 2008 को काबुल में भारतीय दूतावास पर आत्मघाती हमला करवाया था। इस हमले में कई भारतीयों सहित 58 लोगों की मौत हुई थी। 2009 में भी इस आतंकी संगठन ने फिर काबुल स्थित भारतीय दूतावास को निशाना बनाया। इस आत्मघाती हमले में जबकि 63 लोगों की जान गई थी। हक्कानी नेटवर्क को अफगानिस्तान में कई हाई-प्रोफाइल हमलों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। उसने तत्कालीन अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई की हत्या का प्रयास भी किया था। हमले के समय अमेरिकी राजदूत भी वहां मौजूद थे। इसके अलावा वह अफगानिस्तान में कई हमलों में शामिल रहा है। ऐसा माना जाता है कि हक्कानी नेटवर्क ने ही अफगानिस्तान में आत्मघाती हमले की शुरूआत की थी।
भारत के लिए खतरा
अफगानिस्तान मामलों पर नजर रखने वाले मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान के रिसर्च फेलो विशाल चंद्रा ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से कहा "अभी यह अंतरिम सरकार है, अभी उनका कोई संविधान नहीं है। पिछला संविधान जो 2004 में 1964 के आधार पर बना था उसे तालिबान और हक्कानी नेटवर्क मानते नहीं हैं। उसमें सभी स्थानीय समूहों को जगह देने के साथ-साथ पुरुषों और महिलाओं को समान अधिकार दिया था।
अब जो नया संविधान तैयार होगा तो तस्वीर और साफ होगी। फिलहाल अभी सरकार का जो स्वरूप आया है उसमें 33 में से 17 मंत्री संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित आतंकवादी है। इस बात की जानकारी खुद संयुक्त राष्ट्र संघ में अफगानिस्तान के प्रतिनिधि ने दी है। अंतरिम सरकार में कट्टरपंथियों का ज्यादा प्रभाव दिखता है। इसमें तालिबान के कट्टरपंथी और हक्कानी नेटवर्क का दबदबा है। नई कार्यवाहक सरकार में तालिबान और हक्कानी समूह से बाहर किसी और पक्ष का प्रतिनिधित्व नहीं के बराबर है। साफ है कि इस सरकार में अफगानिस्तान की सामाजिक विविधता नहीं दिखाई देती है। ऐसे में भारत और दुनिया के दूसरों मुल्कों के लिए बात करना कहीं ज्यादा मुश्किल हो गया है।
एक बात हमें समझनी होगी कि हक्कानी नेटवर्क और उनके कमांडर का प्रभाव पूर्वी अफगानिस्तान के जिलों में ज्यादा है। और वह इलाका पाकिस्तान से सटा हुआ है। सिराजुद्दीन हक्कानी के जरिए जो गवर्नर नियुक्त होंगे, वहां पर पाकिस्तान का प्रभाव रहेगा। जिसे देखते हुए इस बात की आशंका है कि इन क्षेत्रों से आतंकवादी गतिविधियां बढ़ सकती हैं। हालांकि अभी तालिबान यह कह रहा है कि वह अपीन जमीन से किसी आतंकी संगठन को किसी देश के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होने देगा। लेकिन उनकी कथनी और करनी में बहुत तालमेल नहीं दिख रहा है।
एक बात और समझनी होगी कि तालिबानों के आंतरिक मतभेद भी खुलकर सामने आ गए हैं। ऐसे में देखना होगा कि अगले 6-7 महीनों में तालिबान सरकार का क्या स्वरूप रहता है। क्योंकि हमें यह भी समझना होगा कि अफगानिस्तान में एक बहुत बड़ा तबका है तो पाकिस्तान के प्रभाव को नहीं मानता है। जिसे देखते हुए आने वाले दिनों में आपसी विरोध भी सामने आ सकते हैं। 90 के दशक में भी पाकिस्तान ने ऐसी ही सरकार बनाने की कोशिश की थी लेकिन वह बिखर गई थी। ऐसे में पाकिस्तान द्वारा थोपी गई कोई भी सरकार अफगानिस्तान के लोगों को मान्य नहीं होगी ।" यही नहीं पाकिस्तान जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर -ए-तैयबा जैसे आंतकी संगठनों को हक्कानी नेटवर्क के जरिए मजबूत भी कर सकता है।