दुनिया के नक्शे पर अफगानिस्तान (Afganistan) को एक मुल्क के तौर पर अहम मुकाम हासिल है इसकी वजह है कि इसका काफी समृद्ध इतिहास मगर पिछले तमाम सालों से इस मुल्क को ना जाने किसकी नजर लग गई कि वहां हालात संभलने में ही नहीं आ रहे हैं वहां पिछले कई सालों से युद्ध की विभीषिका झेलते हुए अवाम की करीब एक पीड़ी अपने बचपन से जवानी की दहलीज छूने के करीब आ गई लेकिन हालात जस के तस हैं बल्कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना (US Army) की वापसी के बाद एक बार फिर से तालिबान (Taliban) सिर उठा रहा है और भी काफी आक्रमकता के साथ, इन सबके बीच पिस रही है अफगानी अवाम जिसका पुरसाहाल कोई नहीं....
"तालिबान" पश्तो भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है ज्ञानार्थी (छात्र)... ऐसे छात्र, जो इस्लामिक कट्टरपंथ की विचारधारा पर यकीन करते हैं तालिबान इस्लामिक कट्टपंथी राजनीतिक आंदोलन हैं। सबको पता है कि अफगानिस्तान में 20 सालों के टकराव के बाद अमेरिका अब अपनी सेना वापस बुला रहा है और अगस्त 2021 के खत्म होते-होते ये भी पूरी हो जाएगी।
एक बार फिर से अफगानिस्तान में तालिबानी उभार उनकी चिर परिचित बर्बरता सामने आने लगी है, अमेरिकी सेना की वापसी के समानांतर ही तालिबानी बढ़त भी जारी है तालिबान का दावा है कि उसने देश के ज्यादातर हिस्से पर कब्जा कर लिया है, ऐसे में इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले दिनों में समूचा अफगानिस्तान एकबार फिर तालिबान के पास चला जाएगा।
तालिबान देश के बड़े भूभाग को अपने नियंत्रण में ले चुका है अब वह हमले कर आईटी एवं अन्य बुनियादी संरचनाओं को नुकसान पहुंचाने में जुटा है बताते हैं कि देश के तमाम इलाकों को अपने नियंत्रण में लेने वाला तालिबान अपनी मध्यकालीन सोच को लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है इसकी बानगी उस वक्त सामने आई जब हाल के दिनों में उसने देश में बिजली के टावर गिराए हैं और कई जगहों पर उसने विस्फोट से फाइबर ऑप्टिक्स उपकरणों को उड़ा दिया है, एटीआरए की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन महीनों में तालिबान ने देश भर में दूरसंचार के 28 टावरों को गिराया है जिससे लोगों को इंटरनेट कनेक्शन की भारी दिक्कत हो गई है, तालिबानी एजेंडे में ये आम बात है।
तालिबान के अफगानिस्तान में बढ़ रहे प्रभाव का ये असर है कि वहां की अवाम बेहद सहमी हुई है कि क्या पता कब क्या हो जाए, वहीं तालिबान की सक्रियता बढ़ने के कारण हजारों लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हो गए हैं, तालिबानी स्थानीय लोगों के गांव पर कब्जा कर रहे हैं साथ ही अपनी कट्टर सोच के चलते स्कूलों को भी जलाकर खाक करने में जुटे हैं, वहीं इस स्थिति के चलते तमाम अपना घर छोड़ने को मजबूर हुए हैं चिलचिलाती गर्मी में लोग प्लास्टिक के टेंट और गंदगी भरे माहौल में रहने को मजबूर हैं। सूत्रों के मुताबिक तालिबानी गतिविधियों के बढ़ने के कारण पिछले 15-20 दिनों में 56,000 से अधिक परिवार अपना घर छोड़ने को मजबूर हुए हैं, जिनमें से अधिकतर देश के उत्तरी हिस्से से हैं।
1990 की शुरुआत में उत्तरी पाकिस्तान में तालिबान का उदय माना जाता है। इस दौर में सोवियत सेना अफगानिस्तान से वापस जा रही थी। पश्तून आंदोलन के सहारे तालिबान ने अफगानिस्तान में अपनी जड़े जमा ली थीं। 1996 में तालिबान ने अफगानिस्तान के अधिकतर क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। 2001 के अफगानिस्तान युद्ध के बाद यह लुप्तप्राय हो गया था पर एक बार फिर से बदली हुई परिस्थितियों में फिर से शक्तिशाली हो रहा है।