- राहुल द्रविड़ ने कहा कि मेरे इंटरनेशनल करियर में ऐसा समय रहा जब असुरक्षा महसूस हुई
- कपिल देव ने राहुल द्रविड़ को कोचिंग में हाथ आजमाने की सलाह दी थी
- द्रविड़ ने कहा कि भारत में युवा क्रिकेटर के रूप में उभरना आसान नहीं है
बेंगलुरु: टीम इंडिया के पूर्व कप्तान राहुल द्रविड़ सबसे मजबूत मानसिकता वाले क्रिकेटरों में से एक माने जाते हैं। एनसीए के मौजूदा अध्यक्ष द्रविड़ ने भारतीय महिला क्रिकेट टीम के हेड कोच डब्ल्यूवी रमन के साथ बातचीत करते हुए अपने और देश में क्रिकेट के भविष्य से जुड़े कई सवालों के जवाब दिए। द्रविड़ ने अंडर-19 और इंडिया ए के सेट अप से लेकर कपिल देव द्वारा दी कोचिंग अपनाने की टिप्स का खुलासा किया। उन्होंने इस दौरान यह भी बताया कि वह खुद को कैसे क्रिकेट से स्विच ऑफ रखने में कामयाब होते थे, जिसने करियर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
राहुल द्रविड़ ने 24,000 से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय रन बनाने के बाद संन्यास लिया और इसके बाद से उन्होंने भारतीय अंडर-19 व ए टीमों की जिम्मेदारी बतौर कोच उठाई। इसके बाद कई युवा खिलाड़ी सीनियर टीम में अपनी जगह बनाते हुए दिखे। द्रविड़ ने पूर्व भारतीय क्रिकेटर डब्ल्यूवी रमन से बातचीत में कहा, 'मेरे अंतरराष्ट्रीय करियर खत्म करने के बाद कई विकल्प थे, लेकिन मुझे पक्का नहीं पता था कि क्या करना है। जब मैं अपने करियर के अंतिम पड़ाव पर था तब कपिल देव ने मुझे यह सलाह दी थी कि कोचिंग करूं।'
द्रविड़ ने बताया कि मैं कहीं कपिल देव से मिला तो उन्होंने कहा, 'राहुल किसी एक चीज के लिए प्रतिबद्ध नहीं हो जाता। जाना और कुछ साल बिताने के बाद पता करना कि तुम्हें वाकई में पसंद क्या है। मेरे ख्याल से यह सलाह थी और मैं थोड़ा भाग्यशाली भी था कि अपने करियर के अंतिम पड़ाव पर मुझे राजस्थान रॉयल्स के साथ कप्तान-कोच की जिम्मेदारी एकसाथ मिली।'
खुद पर होने लगा था शक: द्रविड़
राहुल द्रविड़ ने खुलासा किया कि जब 1998 में भारतीय वनडे टीम से बाहर किया गया तो उन्हें बतौर वनडे खिलाड़ी अपने ऊपर शक होने लगा था। इसकी वजह उनका स्ट्राइक रेट था। द्रविड़ ने कहा, 'मेरे इंटरनेशनल करियर में ऐसे चरण रहे जब असुरक्षा महसूस हुई। मुझे 1998 में भारतीय वनडे टीम से बाहर कर दिया गया। मैं एक साल तक भारतीय टीम से दूर रहा। कुछ असुरक्षा मन में आई कि मैं वनडे के लिए अच्छा हूं या नहीं क्योंकि मैं हमेशा से टेस्ट खिलाड़ी बनना चाहता था। मेरी कोचिंग टेस्ट खिलाड़ी ने की। उन्होंने बताया कि मैदान से सटा हुआ शॉट खेलो, हवा में खेलने की जरूरत नहीं। इस तरह की कोचिंग मिली। आपको चिंता होने लगती है कि आपमें वनडे खेलने की क्षमता है या नहीं।'
बता दें कि राहुल द्रविड़ ने वनडे टीम में धमाकेदार वापसी की और 1999 विश्व कप में भारत की तरफ से सबसे ज्यादा रन (461) बनाने वाले बल्लेबाज रहे। द्रविड़ उस कैलेंडर ईयर में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज भी रहे। दाएं हाथ के बल्लेबाज ने आगे चलकर 2003 विश्व कप में टीम इंडिया का प्रतिनिधित्व किया जबकि 2007 विश्व कप में वह कप्तान थे।
भारत में उभरना आसान नहीं
राहुल द्रविड़ ने इस दौरान भारत में युवा क्रिकेटर के रूप में आगे बढ़ने को लेकर असुरक्षा के चरण पर भी ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा, 'मैं अपने करियर के दौरान कई बार असुरक्षा के माहौल से गुजरा हूं। भारत में युवा क्रिकेटर के रूप में उभरना आसान नहीं है। वहां बहुत प्रतिस्पर्धा है और जब मैं बढ़ रहा था तब खुद को साबित करने के लिए केवल रणजी ट्रॉफी मुकाबला था। तब आईपीएल नहीं था। रणजी ट्रॉफी में तब पैसा भी बहुत कम था, जो लगातार एक चुनौती थी। आप पढ़ाई से करियर त्यागते हो। मैं पढ़ाई में खराब नहीं था तो आसानी से एमबीए या कुछ और करता। मैंने क्रिकेट में करियर बनाने के लिए उसे छोड़ा और अगर क्रिकेट मुझे आगे नहीं बढ़ाता तो नहीं पता कि भविष्य क्या होता। तो उस उम्र में कई असुरक्षाएं रहती हैं। इससे मुझे मदद मिली कि जब मैं युवाओं से बात करता हूं तो उनकी असुरक्षा को समझ पाता हूं कि वह किससे गुजर रहे हैं।'
असुरक्षा पर कैसे पाएं काबू
राहुल द्रविड़ ने बताया कि असुरक्षा से उबरने में क्या किया जाए। 47 वर्षीय द्रविड़ ने कहा, 'असुरक्षा से उबरने के कई तरीके हैं कि इसे कैसे नियंत्रित किया जाता है। बाद में मुझे एहसास हुआ कि कुछ चीजें आपको ज्यादा असुरक्षित करती हैं और कुछ चीजें आपके नियंत्रण से बाहर होती हैं। आप उन चीजों के बारे में चिंता करते हैं, जो नियंत्रण से बाहर होती है। कभी सफलता और विफलता भी आपके नियंत्रण में नहीं होती। आपके नियंत्रण में होता है प्रयास, कड़ी मेहनत, ध्यान लगाने की क्षमता, स्विच ऑन और स्विच ऑफ की क्षमता, संतुलित रहने की क्षमता। मेरे ख्याल से इन चीजों को आप नियंत्रित कर सकते हैं। कुछ लोगों को फिल्में देखकर सुकून मिलता है तो कुछ को दोस्तों के साथ घूमकर। मेरे साथ ऐसा है कि जब किताब पढ़ता हूं तो असुरक्षा की भावना खत्म हो जाती है।'