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IAS Success Story:पिता के अंतिम संस्‍कार में जाने को नहीं थे पैसे, दिव्‍यांगता और गरीबी के बावजूद IAS बने रामू

Updated Feb 27, 2020 | 13:15 IST

IAS Success Story of ramesh gholap: मेहनत से हर समस्‍या पर विजय प्राप्‍त की जा सकती है। इस बात को सच साबित कर द‍िया है रमेश घोलप रामू ने। पैर में पोलियो, घर में गरीबी और आंखों में आईएएस बनने का सपना था।

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Ramesh Gholap

IAS Success Story of ramesh gholap: मेहनत से हर समस्‍या पर विजय प्राप्‍त की जा सकती है। इस बात को सच साबित कर द‍िया है रमेश घोलप रामू ने। पैर में पोलियो, घर में गरीबी और आंखों में आईएएस बनने का सपना था। इसी सपने के साथ रामू ने हर उस मुश्‍किल को हराया जो उनके जीवन में थीं। महाराष्ट्र के महागांव के रहने वाले रामू ने मां के साथ चूड़ियां बेचीं। तंगहाल घर की जरूरतें पूरी कीं और अपनी पढ़ाई का इंतजाम किया। दृढ़ हौंसले के चलते उन्‍होंने देश की सर्वश्रेष्‍ठ परीक्षा पास की। 

रामू के पिता गोरख घोलप साइकिल की दुकान चलाते थे और शराब पीने के आदी थे। उनके परिवार में चार लोग थे। पिता ठीक ठाक कमा लेते थे लेकिन सारी कमाई की शराब पी जाते थे। अधिक शराब पीने के चलते रामू के पिता बीमार हे गए और अस्पताल में भर्ती हो गए। कुछ वक्‍त बाद अच्‍छे इलाज के अभाव में पिता का निधन हो गया। मां भी चूड़ियां बेचती थीं। उनके साथ रमेश घोलप रामू भी जाता और दर-दर की ठोकरें खाता। 

प्रारंभिक शिक्षा महागांव में हुई और उसके बाद की पढ़ाई के लिए वह बरसी स्थित चाचा के घर चले गए। मां को और पूरे परिवार को गरीबी के दलदल से न‍िकालने के लिए उन्‍होंने शिक्षा का रास्‍ता चुना। 

पिता जब गुजरे थे तब वह 12वीं की मॉडल परीक्षा में था। की तैयारी में जुटा था तभी उसके पिता की मौत की खबर आ गई। उस दौरान बरसी से महागांव जाने के लिए बस का किराया सात रुपए था और विकलांग प्रमाण पत्र पर पांच रुपये माफ थे। यानि रामू को दो रुपये किराया देना था। उनके पास उस वक्‍त दो रुपये नहीं थे। 

पड़ोसियों की मदद से वह पिता के अंतिम संस्कार में पहुंचे। पिता के न‍िधन से सदमा दिया, बावजूद इसके वह  12वीं की परीक्षा में 88.5 प्रतिशत अंक से पास हुए। बारहवीं के बाद डिप्लोमा किया और 2009 में टीचर की जॉब करने लगे। छह माह के लिए नौकरी छोड़कर वह यूपीएससी की परीक्षा देने चले गए। पुणे आकर उन्‍होंने सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी की लेकिन 2010 में सफलता नहीं मिली। 

उन्‍होंने तय किया कि वह जब तक अफसर नहीं बनेगा, तब तक गांव नहीं जाएगा। आखिरकार 2012 में रमेश घोलप ने यूपीएससी की परीक्षा में 287वीं रैंक हासिल की। आज वह तमाम युवाओं के ल‍िए प्रेरणा हैं।