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IAS UPSC Success Story: IAS बनीं पांच महिलाओं की कहानी, त्याग-समर्पण और संघर्ष की दास्तां

Updated Sep 14, 2020 | 14:08 IST

IAS UPSC Success Story: IAS के लिए बहुत लोग तैयारी करते हैं लेकिन कामयाबी चंद लोगों को ही मिलती है। आइए हम उन पांच महिलाओं के बारे में बता रहे हैं जिन्होंने कड़ी मेहनत कर ये मकाम हासिल किया।

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तस्वीर साभार:&nbspTimes Now
IAS UPSC Success Story: पांच महिलाओं की सफलता की कहानी जिन्होंने कड़े संघर्ष के बाद ये मकाम हासिल किया।
मुख्य बातें
  • IAS बनने का सपना त्याग-समर्पण और कड़ी मेहनत के बाद प्राप्त होती है
  • कुछ लोग पहले प्रयास में और कुछ चंद कोशिशों के बाद ये कामयाबी हासिल करते हैं
  • इस लेख में पांच महिलाओं के बारे में बताया गया है जिन्होंने ये कामयाबी हासिल की है

नई दिल्ली:  जिंदगी में कुछ करने के लिए आगे बढ़ने के लिए हमको किसी न किसी प्रेरणा की जरूरत पड़ती है। आज हम आपको पांच ऐसी आईएस महिला ऑफिसर्स की कहानी बताएंगे जिन्होंने सभी बाधाओं को दूर कर अपनी जिंदगी में एक बड़ा मुकाम हासिल किया । इनकी कहानी आपको अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगी।

श्वेता अग्रवाल

पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के भद्रेश्वर में एक रूढ़िवादी मारवाड़ी परिवार में जन्मी श्वेता का जन्म ऐसे समय में हुआ जब परिवार का हर सदस्य किसी लड़के के आने की उम्मीद कर रहा था। उनके माता-पिता के अलावा उनके परिवार में उनको सपने देखने के लिए किसी ने प्रोत्साहित नहीं किया। उनके दादा-दादी का मानना था कि लड़कियों को केवल घरेलू काम आने चाहिए और उन्हें सिर्फ घर संभालना चाहिए। इन तमाम बाधाओं के साथ श्वेता ने एक बड़ा सपना देखा और उसे वास्तविकता में बदलने की दिशा में कड़ी मेहनत करनी शुरू कर दी। उनके घर में 15 बच्चे थे जिनमें श्वेता सबसे छोटी थीं उसके बाद भी श्वेता अपने घर की पहली महिला थी जिन्होंने ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की थी। उनके चचेरे भाई-बहनों की जिस उम्र में शादी हो रही थी उस उम्र में श्वेता किताबों में व्यस्त थीं। उनकी यही मेहनत थी कि उन्होंने UPSC क्लियर की।

पूविथा सुब्रमण्यन

तमिलनाडु के करुरु जिले में एक डेयरी किसान के यहां जन्म लेने वाली पुविथा अपने परिवार की पहली ग्रेजुएट थीं। उन्होंने अपने निजी जिंदगी में जातिगत भेदभाव दहेज और लैंगिक असमानता जैसी बुराइयों को बेहद करीब से देखा। इन्हीं सब बुराइयों ने उन्हें परिवर्तन लाने के लिए दृढ़ संकल्पी बना दिया। उनके माता-पिता चाहते थे कि ग्रेजुएशन के बाद उनकी शादी कर दी जाए। लेकिन उन्होंने अपने माता-पिता को समझाया और यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी करने के लिए मना लिया। पुविथा ने अपनी कड़ी मेहनत से UPSC में 175 वीं रैंक हासिल की और लोगों को बता दिया कि आपके सामने कितनी भी बाधाएं अगर आपने उन्हें हराने का दृढ़ संकल्प बना लिया है तो आप को कोई नहीं रोक सकता।

सुरभि गौतम

एक मिडिल क्लास जॉइंट फैमिली में पली-बढ़ी सुरभि ने UPSC क्लियर करने के लिए बहुत संघर्ष किया है। शुरू से ही सुरभि के लिए अंग्रेजी काफी संघर्षपूर्ण विषय रहा है उन्हें हमेशा से सब्जेक्ट में दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। हालांकि इसे सुधारने के लिए उन्होंने दोगुनी मेहनत की जिसके बाद उन्होंने अपने सपने को साकार किया और AIR 50 के साथ 2015 में UPSC क्लियर की। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा कि मुझे अपने गांव में चीजों को सही तरीके से करने की गहरी समझ थी‌। मैं चाहती थी कि मेरे गांव में अच्छी चिकित्सा सेवाएं हों, घर-घर में बिजली हो, तत्कालिक बुनियादी सुविधाएं हों, जिसके लिए मैंने कलेक्टर बनने का सफर शुरू किया।

प्रांजल पाटिल

मात्र 7 वर्ष की आयु में दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से अपनी दोनों आंखों की दृष्टि खोने वाली प्रांजल पाटिल ने अपनी इस कमजोरी को अपने सपनों के आड़े कभी नहीं आने दिया। ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि किसी व्यक्ति के साथ अगर ऐसी घटना हो जाए तो वह निराश और उदास हो जाता है अपने जीवन में खुद को हारा हुआ मानने लगता है। लेकिन प्रांजल और उनके माता-पिता ने उन्हें अपने सपनों की उड़ान भरने के लिए मजबूत और स्वतंत्र लड़की बनाने का बीड़ा उठाया। प्रांजल यूपीएससी की तैयारी करना चाहती हैं, अपने सपने के बारे में उन्होंने कभी भी किसी से बात नहीं की लेकिन अंदर ही अंदर उसके लिए तैयारी करती रहीं।

एमफिल इन टेक्नोलॉजी की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने एक बड़ा सॉफ्टवेयर (JAWS) बनाया जो नेत्रहीन और दृष्टिबाधित उपयोगकर्ताओं को स्क्रीन पर टेक्स्ट टू स्पीच आउटपुट के साथ एक रिफ्रेशेबल ब्रेल डिसप्ले के साथ स्क्रीन पढ़ने की सुविधा देता है। यूपीएससी क्लियर करना उनके लिए एक लंबी और कठिन प्रक्रिया थी लेकिन प्रांजल ने इस लड़ाई को लड़ने का पूरा मन बना लिया था। साल 2016 में उन्होंने 773 वीं अखिल भारतीय रैंक के साथ अपने पहले प्रयास में ही UPSC क्लियर कर ली।

अनु कुमारी

हरियाणा के एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी अनु कुमारी शुरू से ही अच्छी शिक्षा का महत्व समझती थी इसलिए उन्होंने अपने स्कूली दिनों से ही कड़ी मेहनत करके अच्छी शिक्षा प्राप्त करने का काम किया। उन्हें पता था कि अगर इस शिक्षा के बल पर उन्हें कोई बेहतर नौकरी मिल जाती है तो वह अपने परिवार को सामाजिक स्थिति के साथ-साथ आर्थिक रूप से भी सुखी और मजबूत कर पाएंगी।

अनु को शुरू से ही समाज के कुछ रूढ़िवादी नियमों में बदलाव करने की एक ललक थी जिसके चलते उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा के लिए तैयारी करनी शुरू कर दी। हालांकि इस दौरान में एक कॉर्पोरेट सेक्टर में नौकरी कर रही थीं। लेकिन उन्हें पता था कि अगर समाज में बदलाव लाना है तो उन्हें समाज के साथ जुड़ना होगा। अनु ने जिस वक्त यूपीएससी की तैयारी करना शुरू किया उस वक्त उनके पास एक छोटा बच्चा था जिसके साथ उन्होंने अपनी यूपीएससी की तैयारी की और अपने दूसरे प्रयास में ही इस परीक्षा को पास कर लिया। उन्होंने इस परीक्षा में दूसरे स्थान पर ऑल इंडिया रैंक भी हासिल की।

हमें उम्मीद है कि आपको इन महिलाओं की कहानियों से जरूर प्रेरणा मिलेगी और आप भी अपनी जिंदगी में कुछ बड़ा कुछ बेहतर करने के लिए अभी से ही पुरजोर कोशिश करना शुरू कर देंगे। याद रखिए बेहतर परिणाम हमेंशा कड़े संघर्ष और बड़ी मेहनत से मिलता है।