- गरीबी में कई बार बिना खाए भी रहना पड़ा था
- जय कुमार वैद्य की मां सिंगल मदर हैं
- 11 साल की उम्र में बन गए टीवी मैकेनिक
मुंबई के कुर्ला के रहने वाले जय कुमार वैद्य का बचपन संघर्षों में बीता है। कभी स्कूल में फीस जमा करने को पैसे नहीं थे तो कभी खाने को, लेकिन इन सब के बावजूद एक सपना उन्होंने कभी नहीं टूटने दिया कि वह अपनी मां को एक बेहतर जिंदगी देंगे। इसके लिए उन्होंने और उनकी मां तमाम चुनौतियों को पार किया। जय की मां का सपना उन्हें एक बड़ा आदमी बनाने का था और इसके लिए वह दिन-रात मेहनत करती रहीं। जय आज अपनी लगन और मेहनत के बल पर अमेरिका में ग्रेजुएट रिसर्च असिस्टेंट बन चुके हैं, लेकिन यहां तक पहुंचने का उनका सफर आसान नहीं था।
फीस न भर पाने से परीक्षा से रह गए थे वंचित
कुर्ला मुंबई के रहने वाले 27 जय की मां नलिनी सिंगल हैं। तलाक के बाद उन्होंने बहुत ही मेहनत से अपने बेटे जय को पढ़ाया लिखाया, लेकिन कई बार ऐसे दिन भी आए जब मां बेटे को कुछ राते भूखे या वड़ा पाव खा के गुजारनी पड़ी। नलिनी एक पैकेजिंग फर्म में 8000 की नौकरी पर काम कर घर चला रही थीं, लेकिन अचानक ये नौकरी हाथ से चली गई। ऐसे में जय के पास एक बार फीस भरने को भी पैसे नहीं थे जिस कारण उन्हें परीक्षा देने से वंचित होना पड़ा था।
11 साल की उम्र में बन गए टीवी मैकेनिक
घर की आर्थिक दिक्कत को देखते हुए जय ने 11 साल की उम्र में तय किया कि वह अपनी मां का हाथ बटाएंगे और वह टीवी मैकेनिक का काम करने लगे। पढ़ाई भी साथ में जारी रही। इस बीच उनकी मां ने भी बहुत मेहनत की और जय की पढ़ाई सुचारु चलती रही।
मंदिर ट्रस्ट और संस्थाओं से मिली मदद
आगे की पढ़ाई के लिए उनकी मदद मंदिर ट्रस्ट ने की और उनके लिए ट्रस्ट ने केवल फीस ही नहीं बल्कि कपड़ा, राशन की भी व्यवस्था की। साथ ही उन्हें इंडियन डेवलपमेंट फाउंडेशन से इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन लेने के लिए बिना ब्याज के कर्ज भी मिल गया। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि मुश्किल के दिनों में कुछ लोगों और कुछ संस्थाओं ने उनकी बहुत मदद की है।
रोबोटिक्स में मिल चुका है नेशनल लेवल पर पुरस्कार
इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान ही उन्हें उन्हे रोबोटिक्स में प्रदेश और नेशनल लेवल के एक नहीं बल्क चार पुरस्कार मिले और इस पुरस्कार ने उनका मनोबल ऐसा बढ़ाया कि उनका रुझान नैनोफिजिक्स की ओर हो गया और उन्हें टूब्रो और लार्सन में इंटर्नशिप का अवसर मिल गया. इसके बाद टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल में जूनियर रिसर्च एसोसिएट की नौकरी भी मिल गई।
नौकरी के साथ ही उन्होंने जीआरई और टोफल के एग्जाम की तैयारी भी शुरू कर दी। साथ ही वह डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक्स, सर्किट एंड ट्रांसमिशन लाइंस एंड सिस्टम तथा कंट्रोल सिस्टम पर युवाओं को कोचिंग देने लगे। इसी बीच इंटरनेशनल जर्नल्स में दो रिसर्च पेपर पब्लिश हो गए और इन पेपर्स के आधार पर उन्हें वर्जीनिया यूनिवर्सिटी (अमेरिका) से बुलावा आ गया।