लाइव टीवी

IAS Success Story: बचपन परेशानियों में गुजरा, लेकिन मुश्किलों को मात देकर ये बन गए IAS ऑफिसर

Updated May 09, 2020 | 19:18 IST

IAS Success Story in Hindi: किसी के पिता सिक्‍योरिटी गार्ड तो किसी के ऑटो चालक। बचपन में सुविधाओं की कमी होने के बावजूद हिम्‍मत नहीं गंवाई और एक लक्ष्‍य पर आगे बढ़े। मेहनत सफल हुई और दूर हुई चिंताएं।

Loading ...
यूपीएससी
मुख्य बातें
  • आईएएस अधिकारी बनने के लिए इन लोगों ने कड़ी मेहनत की
  • किसी के पिता सिक्‍योरिटी गार्ड तो किसी के ऑटो चालक
  • इन लोगों ने अपना पूरा ध्‍यान एग्‍जाम पर लगाया और सफलता हासिल करके ही दम लिया

Success stories of the officers whose Childhood went through troubles: सफलता और असफलता के बीच का फर्क लोग दिखाते हैं। सफल व्‍यक्ति वो है, जो खुद पर पड़ रहे पत्‍थरों से भी घर बना लेगा। वहीं असफल व्‍यक्ति रास्‍तों में पड़े पत्‍थर का दुखड़ा मनाने में उलझ जाता है। लोगों के जीवन में परेशानियां नहीं होती क्‍या? ऐसा नहीं है। परेशानियां तो हर किसी के जीवन में हैं। किसी के जीवन में ज्‍यादा तो कहीं कम हैं। इन परेशानियों से लड़कर आगे बढ़ने वाले कम ही बिरले होते हैं, जो बड़ा मुकाम हासिल करने में सफल होते हैं। आज हम आपको ऐसे ही युवाओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनकी कहानी काफी संघर्षों से भरी हुई है। इन युवाओं ने अपनी राह में गरीबी को कभी अपनी सफलता की राह में रोड़ा नहीं बनने दिया और विपरीत हालातों के बावजूद अपने सपने पूरे किए।

टेलर का बेटा बना अफसर

मध्‍यप्रदेश के भिंड जिले के एक छोटे से गांव मऊ के रहने वाले नीरीश राजपूत ने कड़ी मेहनत के सटीक उदाहरण हैं। टेलर के बेटे नीरीश की शुरुआती पढ़ाई सामान्‍य स्‍कूल और कॉलेज से हुई। नीरीश का मन यह नहीं जानता था कि बड़े सपने देखने या उनको पाने की राह में गरीबी बाधा बन सकती है। उन्‍हें इसी बात का अंदाजा था कि सच्‍ची लगन से कुछ भी संभव हो सकता है। नीरीश का सपना लगा सपना ही रह जाएगा क्‍योंकि वह तीन बार यूपीएससी परीक्षा में असफल रहे। नीरीश ने अपने आप पर भरोसा रखा और उन्‍हें बड़े भाइयों का बखूबी साथ मिला। नीरीश के बड़े भाइयों पेशे से सामान्‍य शिक्षक थे- अपने भाई के लिए पूरी पूंजी लगा दी। नीरीश ने चौथे प्रयास में 370वीं रैंक के साथ यह परीक्षा पास की और अपनी मंजिल पाई। नीरीश ने बताया कि अगर मन में कोई संकल्‍प कर लो तो फिर सारी बाधाओं को पार करके भी मंजिल हासिल की जा सकती है।

सिक्‍योरिटी गार्ड हैं पिता

कुलदीप द्विवेदी के पिता लखनऊ यूनिवर्सिटी में सिक्‍योरिटी गार्ड हैं। गरीबी के बीच घर के चार भाई-बहनों में सबसे छोटे कुलदीप ने यूपीएससी का सपना पाल लिया था। कुलदीप के बारे में बताया जाता है कि बचपन से ही वह सिविल सर्विजेस में जाना चाहते थे। 2009 में ग्रेजुएशन और 2011 में पोस्‍ट ग्रेजुएशन पास करने वाले कुलदीप ने यूपीएससी परीक्षा में 242वीं रैंक हासिल की। कुलदीप ने गरीब होने के बावजूद जितना संभव था, अपने पिता का सहयोग किया। शायद इसलिए परिणाम आने पर किसी को विश्‍वास नहीं हो रहा था कि यह सच हो सकता है। कुलदीप की खासियत ये है कि उन्‍होंने कभी अभावों पर ध्‍यान नहीं दिया और लक्ष्‍य हासिल किया।

किसान का बेटा

गरीबी को किस कदर इस व्‍यक्ति ने महसूस किया, यह इनसे बेहतर कोई और नहीं बता सकता। ओडिशा के केंद्रपाड़ा जिले के सुदूर गांव अंगुलाई के रहने वाले ह्दय कुमार के पिता किसान थे। गरीबी का ऐसा आलम कि बीपीएल धारक और इंदिरा आवास योजना के तहत मिले आवास में निवास। कोई बैकग्राउंड, कोई बैकअप और कोई सपोर्ट न होने के बावजूद ह्दय कुमार ने साल 2014 में 1079वीं रैंक के साथ यूपीएससी परीक्षा पास की। कुमार बाकी दावेदारों की तरह हमेशा से पढ़ाई में होनहार नहीं थे। न ही सिविल सेवा में जाने का उनका कोई सपना था। सरकारी स्‍कूल में पढ़ने वाले कुमार ने दूसरी श्रेणी में 12वीं पास की। कुमार क्रिकेट अच्‍छा खेलते थे, लेकिन उन्‍हें इसमें आगे नहीं बढ़ने का एहसास था। उन्‍होंने सिविल सर्विसेस की तरफ ध्‍यान लगाया। पहले दो प्रयासों में असफल होने के बावजूद उन्होंने पूरी लगन से तीसरा प्रयास दिया और उसे पास भी कर लिया। ह्दय की कहानी बताती है कि जीवन की दिशा बदलने के लिये जरूरी मेहनत करने को अगर आप तैयार हैं तो फिर नयी शुरुआत करने के लिये कभी देर नहीं होती।

ऑटो चालक पिताजी

अंसार अहमद शेख के पिता ऑटो चलाते थे और भाई मैकेनिक है। महाराष्‍ट्र के जालना गांव के अंसार का मत पढ़ाई में ज्‍यादा था। बढि़या बात यह रही कि अंसार को अपने परिवार से भरपूर समर्थन मिला क्‍योंकि परिवार ने कभी उन्हें अजीविका कमाने की इस जंग में नहीं डाला और वे लगातार लगन और कड़ी मेहनत से पढ़ते रहे। उन्होंने राजिनीति शास्‍त्र से बीए किया और यूपीएससी की परीक्षा दी। अंसार ने अपने दम पर पहले ही अटेम्पट में जीत हासिल की। अंसार ने मात्र 21 वर्ष की उम्र में 361वीं रैंक के साथ यह परीक्षा पहली बार में पास की और अपने परिवार के भरोसे को सही साबित कर दिखाया।

मां-बाप की लाडली का कमाल

भद्रेश्‍वर की श्‍वेता अग्रवाल के पिता की पंसारी की दुकान थी। श्‍वेता को घर वालों ने हमेशा पढ़ने के लिए प्रोत्‍साहित किया और कभी तंगी का जिक्र उनके आगे नहीं किया। श्‍वेता ने स्‍कूली शिक्षा सेंट जोसेफ बंदेल से पूरी की। उनकी उच्‍च शिक्षा सेंट जेवियर्स कॉलेज से हुई। श्‍वेता को पढ़ाने के लिए मां-बाप ने अन्‍य खर्चों में कटौती की। अपने मां-बाप के इस त्याग का महत्व समझते हुये श्वेता ने भी कामयाबी की नई इबारतें लिखीं। श्वेता ने कुल तीन बार यूपीएससी परीक्षा दी पर दो बार मन का पद न मिलने पर अगली बार फिर प्रयास करने की ठानी। उन्हें आईएएस बनना था और जब तक वर्ष 2015 में 19वीं रैंक लाकर श्वेता ने अपना लक्ष्य पूरा नहीं कर लिया वे बार-बार दोगुनी मेहनत से लगी रहीं। उन्होंने अपने मां-बाप के भरोसे को सही साबित कर दिखाया।