- ऑक्सफोर्ड के वैक्सीन ने शुरुआती चरण में लोगों में उम्मीद जगाई है
- इस वैक्सीन को लेकर शुरुआती प्रयोग सफल रहे हैं
- अगर आप जानना चाहते हैं कि ये वैक्सीन कैसे काम करता है, तो पढ़ें विस्तार से
कोविड-19 का कहर जब से पूरे विश्व में कोहराम मचाने शुरू किया, तब से ही इसकी दवा के लिए विश्वभर में काम शुरू हुआ। अब ऑक्सफोर्ड ने लोगों में एक उम्मीद जगा दी है। ऐसी उम्मीद कि लोग इस संक्रमण से अब बच सकते हैं। जब से प्रारंभिक चरण के परीक्षण के परिणाम लैंसेट द्वारा जारी किए गए, तब से ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की चर्चा विश्वस्तर पर होने लगी।
दुनियाभर के लोग बस यही जानना चाहते हैं कि आखिर कब इसकी वैक्सीन आएगी, किस दाम पर ये बिकेगा और तो और कौन इसे पहले खरीद पाएगा। ऑक्सफोर्ड के वैक्सीन कैंडिडेट के शुरूआती चरण के परिणाम ने लोगों में आशा की किरण भर दी है। इस अंंधेरे में भी लोगों को रोशनी नजर आ रही है।
कोरोना वायरस के खिलाफ कैसे काम करता है ऑक्सफोर्ड का AZD122
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का वैक्सीन कैंडिडेट जेनेटिकली इंजीनियर्ड वायरस से बना है। इन वायरस को एडेनोवायरल वैक्टर भी कहा जाता है। वैक्सीन का काम हमारे शरीर को यह विश्वास दिलाना है कि एक फॉरेन पैथोजन ने शरीर में प्रवेश किया है और अगर इसकी देखभाल नहीं की गई, तो यह बीमारी पैदा करेगा।
- - इस मामले में, एडेनोवायरल वैक्टर, SARS-CoV-2 से एक जीन को शटल करने के लिए डिजाईन किए गए हैं, जो वायरस हमारे शरीर में COVID-19 रोग का कारण बनता है, जहां हमारी कोशिकाएं इसे पढ़ेगी और कोरोनवायरस वायरस प्रोटीन बनायेंगी।
- - ये स्व-निर्मित स्पाइक प्रोटीन हमारे शरीर को किसी भी वास्तविक कोरोनावायरस संक्रमण का पता लगाने और उसे समाप्त करने के लिए प्रशिक्षित करेंगे, इससे पहले कि वायरस संक्रमित, गुणा, और शरीर को नुकसान पहुंचाने में सक्षम हो।
- - इम्यून सिस्टम के दोनों आर्म्स को वैक्सीन ट्रिगर करता है। इसके अलावा, शोधकर्ताओं ने पाया कि टीका शरीर की टी-कोशिकाओं (T-cell) में प्रतिक्रिया का कारण बनता है जो कोरोनावायरस से लड़ने में मदद करते हैं। बढ़ते प्रमाण बताते हैं कि SARS-CoV-2 संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए एक टी-सेल प्रतिक्रिया के साथ-साथ एंटीबॉडी भी महत्वपूर्ण हो सकते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि टीकाकरण के 14 दिन बाद टी-कोशिकाओं का स्तर चरम पर था, जबकि एंटीबॉडी का स्तर 28 दिनों के बाद बढ़ गया। निष्कर्ष दर्शाते हैं कि वैक्सीन इम्यून सिस्टम को वायरस को पहचानने और हमला करने के लिए प्रशिक्षित कर सकता है।
- - सबसे पहले, कोरोनावायरस स्पाइक प्रोटीन के आनुवंशिक कोड की पहचान की जाती है।
- - वैक्सीन में चिम्पांजी एडेनोवायरस एक कमजोर और आनुवंशिक रूप से संशोधित रूप में होता है, इसलिए यह मनुष्यों को संक्रमित नहीं करता है और स्पाइक प्रोटीन का उत्पादन करता है।
- - वैक्सीन शरीर में स्पाइक प्रोटीन का उत्पादन करने में मदद करता है जो इम्यून सिस्टम को उनके खिलाफ एंटीबॉडी उत्पन्न करने का कारण बनता है। एक बार जब इम्यून सिस्टम स्पाइक प्रोटीन को पहचान लेती है, तो यह कोरोनावायरस संक्रमण का मुकाबला कर सकती है।
दुनियाभर की निगाहें अब बस इसी ओर टिकी हैं कि कब कोरोना की दवा बने और दुनिया इस महामारी से निजात पा सके। कोविड-19 ने विश्वस्तर पर तबाही मचा रखी है। जब तक दवा नहीं बन जाती तबतक आप अपना और परिवार का विशेष ध्यान रखें।